जब भ्रष्ट्राचारियों की नहीं चली तो ऐसे शुरू हुआ सीएम त्रिवेन्द्र के खिलाफ जहर फैलाने का माहौल

वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कुर्सी पर बैठते ही पहले छह महीने और हर छह महीने बाद सरकार को अस्थिर करने का जो खेल शुरू हुआ है, जो अब तक चल रहा है। विधायकों के अपने निहायत ही व्यक्तिगत कारणों की नाराजगी को मुख्यमंत्री से नाराजगी से बताकर अस्थिरता का माहौल खड़ा
 | 
जब भ्रष्ट्राचारियों की नहीं चली तो ऐसे शुरू हुआ सीएम त्रिवेन्द्र के खिलाफ जहर फैलाने का माहौल

वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कुर्सी पर बैठते ही पहले छह महीने और हर छह महीने बाद सरकार को अस्थिर करने का जो खेल शुरू हुआ है, जो अब तक चल रहा है। विधायकों के अपने निहायत ही व्यक्तिगत कारणों की नाराजगी को मुख्यमंत्री से नाराजगी से बताकर अस्थिरता का माहौल खड़ा किया जा रहा है। सवाल उठता है कि आखिर इस राज्य को कैसा सीएम चाहिए। अस्थिरता फैलाने वाला एक खास गैंग जो पहले से ही ऐसा माहौल तैयार करने में जुट जाता है। अस्थिरता फैलाने वालों के सबसे पहले निशाने पर आए प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी स्वामी। कभी उन्हें बाहरी कहकर माहौल खड़ा किया गया तो किसी ने उनके आसपास के लोगों को लेकर उनके राजकाज पर सवाल उठाए। दूसरे सीएम भगत सिंह कोश्यारी को बहुत ज्यादा मौका नहीं मिल पाया और वो उनकी विदाई चुनाव में हुई पार्टी की हार के बाद स्वयं हो गई। लेकिन इसके बाद आए तमाम मुख्यमंत्रियों को समय जरूर मिला, लेकिन हर शख्स को यहां खारिज कर दिया गया तो ऐसे में मौजूदा सीएम त्रिवेंद्र रावत कहां कि इस गैंग विशेष से बच सकते हैं।

देहरादून-उत्तराखंड को मिली बड़ी सफलता, स्टार्टअप रैंकिंग-2019 में लगाई छलांग

पूर्व सीएम हरीश रावत से हटकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने काम संभाला। सबसे पहले जिस सीएम आवास में जाने की हिम्मत कोई नया सीएम नहीं कर पाया, उसी में गृह प्रवेश कर अंधविश्वास को मिटाया। सीएम आवास और सचिवालय से अनावश्यक भीड़ को समाप्त किया। हालांकि इसके लिए उन्हें कई अपने प्रिय, परिचितों की नाराजगी झेलनी पड़ी हो। अब बिना किसी काम के आवास, ऑफिस में भीड़ नजर नहीं आती। इसका फायदा उनके विरोधी उनकी कम लोकप्रियता बताकर दुष्प्रचार किया जबकि यही लोग पूर्व सीएम के यहां लगने वाली इसी भीड़ को मच्छी भीड़ करार देते रहे। आज ये भीड़ सचिवालय परिसर तक गायब है। अब अनुभागों और सचिव कार्यालयों में फाइल के पीछे भागते सफेदपोशों और लॉबिस्टों की भीड़ नजर नहीं आती। अनुभाग से लेकर सचिवालय के हर पटल पर कर्मचारी राहत में हैं। सीएम सचिवालय में आज एक भी ऐसा ओएसडी आपको नजर आता है, जिसके कहने भर से अधिकारी उसकी बात मान काम कर दे। पूर्व मुख्यमंत्रियों के समय जो जलवा जलाल आर्येंद्र शर्मा, पीके सारंगी, द्विवेदी, साकेत, रंजीत रावत, राजीव जैन, राकेश शर्मा का था, क्या आज वो बात धीरेंद्र, खुल्बे, उर्बा समेत किसी दूसरे में है।

नौकरशाही में भले ही ओमप्रकाश, राधिका झा, केएस पंवार के असर की बात की जाती हो, लेकिन वो तेवर और असर यहां भी नजर नहीं आते। आज हर किसी ओएसडी, सलाहकार, नौकरशाह की एक सीमा है और एक दायरा।
पहले जहां एक जिलाधिकारी का कार्यकाल साल भर हो जाता था, तो उसे रिकॉर्ड मांगते हुए उनकी विदाई की तैयारी हो जाती थी। आज डीएम को पूछना पड़ रहा है कि साहब हमें वापस बुलाना भूल तो नहीं गए। जिस तबादला एक्ट को सख्त जनरल बीसी खंडूडी लागू नहीं करा पाए, वो त्रिवेंद्र सरकार में लागू हुआ। इसके आने से तबादला उद्योग चलाने वाले बेरोजगार हैं। इसी बेरोजगारी से मीडिया के उन रसूखदार लोगों को भी जूझना पड़ रहा है, जिनकी एंट्री पिछली सरकारों में चौथे तल से लेकर सीएम आवास में बेडरूम तक थी। आज बेडरूम तो दूर वेटिंग रूम तक ये भीड़ नजर नहीं आती। आप उम्मीद कर सकते हैं कि हर सरकार में हमेशा चौथे तल पर रहने वाला मृत्युंजय मिश्रा जैसा शख्स आज जेल की सलाखों के पीछे हो। यूपी निर्माण निगम अपनी दुकान समेट रहा हो, ब्रिडकुल जैसी राज्य की कार्यदायी संस्था आगे बढ़ रही हो। जल निगम जैसे संस्थान को दिल्ली में उत्तराखंड निवास का 90 करोड़ का काम आवंटित हो। बड़े छोटे निर्माण कार्यों में रिवाइज इस्टीमेट के नाम पर दुकान चलाने वालों के शटर डाउन है। आज रिवाइज इस्टीमेट तो दूर तय लागत से भी कम में काम हो रहे हैं। डॉटकाली टनल, अजबपुर, मोहकमपुर फ्लाईओवर लागत से भी कम में तैयार हुए।

देहरादून और हल्द्वानी में पेयजल संकट को दूर करने को जिस सौंग बांध और जमरानी बांध पर किसी मुख्यमंत्री ने हाथ डालने की हिम्मत न की हो, उस पर काम शुरू करा दिया। बल्कि सूर्यधार झील समेत राज्य में कई नई झीलों पर काम शुरू होने के साथ ही खत्म होने की कगार पर है। टिहरी में हर सरकार के गले की फांस बनने वाले डोबरा चांठी पुल का निर्माण पूरा हो चुका है। अटल आयुष्मान जैसी हेल्थ स्कीम को शुरू कर जनता को बड़ी राहत पहुंचाई गई। स्वास्थ्य सेक्टर में डॉक्टरों के खाली पदों को बड़ी संख्या में भरवाया। सहकारिता जैसे विभाग, जहां हमेशा घपले घोटाले के ही किस्से मीडिया की सुर्खियां बनते थे। आज वहां 3500 करोड़ की एनसीडीसी परियोजना शुरू कराई।

अब दूसरे राज्य भी इसी मॉडल पर काम कर रहे हैं। देवस्थानम बोर्ड गठन जैसा साहसिक फैसला, जिसे लेने में दिग्गज एनडी तिवारी तक पीछे हट गए थे। उसे तमाम दबावों के बावजूद न सिर्फ लिया, बल्कि लागू कराया। इसके बाद भी अस्थिरता फैलाने वाले बाज नहीं आ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह इस बार भी सीएम की कुर्सी हिलाने को मदारी गैंग बेताब है। जबकि मार्च 2017 से लेकर आज तक हुए सभी छोटे बड़े चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की। अभी तक के कार्यकाल में सरकार के ऊपर किसी घोटाले तक का दाग नहीं है। सरकार के स्तर पर कुछ कमियां भी हैं। लेकिन वो ऐसी हैं, जिसका नुकसान राज्य की बजाय सीएम को स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर उठाना पड़ रहा है। उनके पास अपनी टीम में वो मजबूत चेहरे नहीं है, जैसे पुराने सीएम के पास रही। हालांकि जो चेहरे हैं, वो काबिल न सही, लेकिन उन पर दाग भी नहीं हैं। नौकरशाही के कुछ धड़े जरूर जरूरत से ज्यादा हावी है। लेकिन भ्रष्टाचार की हिम्मत उनकी भी नहीं। अंत में यही कहना चाहूंगा कि आखिर इस राज्य को कैसा सीएम चाहिए।