हल्द्वानी - कहां मर गई संवेदनाएं, भाई की डेथ बॉडी ले जाने के लिए नहीं मिली एम्बुलेंस, टैक्सी की छत पर पहाड़ ले गई शिवानी
हल्द्वानी - स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर पहाड़ के लोगों के जीवन में दुख ही लिखा है। पिथौरागढ़ तक बेटे के शव ले जाने के लिए एक परिवार के पास पैसे नहीं थे। एंबुलेंस चालकों ने 10 से 12 हजार रुपये तक की मांग कर दी। ऐसे में परिवार ने अपने गांव के बोलेरो चालक को बुलाया और शव को बोलेरो की छत पर बांधकर पिथौरागढ़ ले गए। वित्तीय वर्ष 2023-24 में उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग के लिए 4,217.87 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, पर यह बजट पहाड़ के किसी काम नहीं आ रहा है.
तमोली ग्वीर के बेरीनाग, पिथौरागढ़ निवासी शिवानी हल्द्वानी काम करने आई थी। वह हल्दूचौड़ में एक कंपनी में करीब छह महीने से काम कर रही थी। घर में माता-पिता एक व एक बहन है। पिता गोविंद प्रसाद बुजुर्ग हैं और पहाड़ में ही खेतीबाड़ी करते हैं। उसने अपने 20 वर्षीय भाई अभिषेक कुमार को भी कंपनी में काम करने बुला लिया। दो महीने पहले ही अभिषेक हल्दूचौड़ पहुंचा।
रेलवे पटरी के पास बेसुध गिरा मिला भाई -
शिवानी ने बताया कि शुक्रवार सुबह वह और भाई दोनों काम करने गए थे। एक घंटा काम करने के बाद अभिषेक ने सिर दर्द कहकर कंपनी से छुट्टी लेकर घर गया। इसके बाद उसकी बहन ने उसे कई बार काल की, लेकिन अभिषेक ने काल नहीं उठाई। दिन में खाना खाने के समय शिवानी घर गई। तो वहां दवाई की बदबू आ रही थी। मगर घर में कोई नहीं था। करीब ढाई बजे पुलिस ने शिवानी को सूचना दी कि उसका भाई रेलवे पटरी के पास बेसुध गिरा है।
पुलिस की मदद से अभिषेक को सुशीला तिवारी अस्पताल लाया गया। जहां डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। सूचना के बाद रिश्तेदार भी बेरीनाग से पहुंच गए। शनिवार को पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराकर स्वजन को सौंप दिया। शिवानी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह शव को एंबुलेंस में घर ले जा सके। उसने एंबुलेंस वालों से पूछा तो किसी ने 10 तो किसी ने 12 हजार रुपये मांगे। इस पर शिवानी ने पैसे की कमी के कारण अपने गांव के टैक्सी मालिक से संपर्क किया। इसके बाद शव को टैक्सी के उपर बांधकर बेरीनाग ले जाया गया।
घर का इकलौता चिराग बुझा -
अभिषेक दो बहनों का इकलौता भाई था। उसकी मौत से घर का इकलौता चिराग बुझ गया है। स्वजन का रो रोकर बुरा हाल है। मां व पिता को बेटे की मौत के बारे में कुछ नहीं बताया। क्योंकि दोनों वृद्ध हैं। बेटे की मौत का सदमा लग सकता है।
सिस्टम को कोसकर गई शिवानी -
शिवानी का कहना था कि उसके भाई की मौत हो गई। वह अकेले कई एंबुलेंस चालकों के पास गई। हर किसी के आगे गिड़गिड़ाई। मदद मांगी। कम पैसे में शव को घर तक छोड़ने के लिए कहा। मगर कोई नहीं माना। पैसे नहीं हुए तो मजबूरी में उसके गांव वाले ही काम आए।
यह घटना न केवल दुखद है, बल्कि हमारे समाज और व्यवस्था की संवेदनहीनता को भी उजागर करती है। ऐसी स्थितियां पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों की समस्याओं को और बढ़ा देती हैं, जहां सुविधाओं का पहले से ही अभाव है। शिवानी और उसके परिवार को इस कठिन समय में जो संघर्ष करना पड़ा, वह इस बात की निशानी है कि हमें अपने सिस्टम और समाज में करुणा और मदद की भावना को मजबूत करना होगा। यह घटना एक चेतावनी है कि हमें अपने समाज और व्यवस्था में बदलाव की सख्त जरूरत है। दुःख की इस घड़ी में परिवार के साथ संवेदना व्यक्त करते हुए, यह भी आवश्यक है कि हम ऐसी समस्याओं को भविष्य में रोकने के लिए प्रयासरत रहें।
कुछ विचारणीय बिंदु -
एंबुलेंस सेवाओं का अनियंत्रित शुल्क
आपातकालीन सेवाओं का इतना महंगा होना उन परिवारों के लिए असंभव स्थिति पैदा कर देता है, जो पहले से ही आर्थिक रूप से कमजोर हैं। सरकार को इस दिशा में नियम बनाने और कड़े प्रावधान लागू करने की आवश्यकता है ताकि गरीब परिवारों को सस्ती और त्वरित सेवाएं मिल सकें।
संवेदनहीनता का स्तर -
शिवानी जैसे परिवारों को सहानुभूति और मदद की आवश्यकता होती है, लेकिन उनका गिड़गिड़ाना सुनकर भी मदद के लिए हाथ न बढ़ाना हमारे समाज की गिरावट को दर्शाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव -
पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं और परिवहन सेवाओं की कमी लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। राज्य सरकार को विशेष रूप से इन इलाकों में बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना चाहिए।
आर्थिक असमानता -
गरीब परिवार अपनी मूलभूत जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाते हैं। अभिषेक के परिवार के पास शव को ले जाने तक के पैसे नहीं थे। यह दर्शाता है कि गरीबों के लिए स्वास्थ्य और आपातकालीन सेवाएं अभी भी एक सपना हैं।
समाधान के संभावित सुझाव -
सरकार को एंबुलेंस सेवाओं की कीमत तय करनी चाहिए और इसे सख्ती से लागू करना चाहिए।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए ऐसी सेवाएं मुहैया करानी चाहिए।
गांवों और कस्बों में सामुदायिक सहयोग से आपातकालीन फंड की स्थापना की जा सकती है।
लोगों को संवेदनशील और मददगार बनने की शिक्षा दी जानी चाहिए।