नैनीताल हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर कुमाऊं में हंगामा, गौलापार नहीं बनेगा HC, ऋषिकेश में हाईकोर्ट की बेंच क्यों?

 | 

नैनीताल -  उत्तराखंड हाई कोर्ट इन दिनों खुद अपने लिए न्याय मांग रहा है, जिसने राज्य बनने के बाद हजारों लाखों लोगों के साथ नैनीताल में ब्रिटिश काल के समय गौथिक शैली वाले इस भवन से न्याय किया होगा, इन दिनों वह अपने आशियाने को तलाशने के लिए जस्टिस की लड़ाई लड़ रहा है. 


उत्तराखंड राज्य को बने 24 साल हो गए लिहाजा आज तक न तो प्रदेश को स्थाई राजधानी मिल सकी, और ना ही पर्वतीय राज्य की मूल संरचना पर विचार - विमर्श हो सका, राज्य आन्दोलनकारियों की मूल अवधारणा और जनता को दरकिनार कर नेताओं और अधिकारियों की सांठगांठ ने अपने मन मुताबिक योजनाएं बनाकर इस प्रदेश में खूब मौज काटी।


पहाड़ों में एक नया संस्थान बनाना तो छोड़िए, बना -बनाये संस्थान भी एक - एक कर सब अपनी सुविधा के मुताबिक शहरों में पंहुचा दिए, अब तो हद हो गई हाई कोर्ट की बेंच को भी नैनीताल जिले से ऋषिकेश शिफ्ट करने की बात चल रही है.  हो सकता है एक बेंच को आधार बनाकर पूरा हाई कोर्ट वहीं पंहुचा दिया जाए, यह मामला इन दिनों उत्तराखंड में जोर गरमा उठा है. कुमाऊं में वकीलों का विरोध तो गढ़वाल के अधिवक्ता इसके समर्थन में खड़े हो गए हैं. 


ऋषिकेश के इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (IDPL) में हाईकोर्ट की बेंच खोलने के बाद नैनीताल हाईकोर्ट और जिलों की बार से जुड़े अधिवक्ताओं में जंग छिड़ गई है। अधिवक्ता, कुमाऊं और गढ़वाल दो खेमों में बंटते जा रहे हैं।  कुमाऊं वाले हाईकोर्ट गढ़वाल में नहीं जाने देना चाहते और गढ़वाल वाले हाईकोर्ट की बेंच ऋषिकेश में खोलने के लिए लामबंद हो गए हैं। ऋषिकेश में बेंच खोलने के अलावा हाईकोर्ट को नैनीताल से शिफ्ट करने का मसला भी साथ - साथ चल रहा है। 


हाईकोर्ट बार में भी इसे लेकर खेमेबंदी हो गई है। इस पूरे प्रकरण में सरकार की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी है, लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने पूरा हाईकोर्ट, ऋषिकेश शिफ्ट करने की मांग करके इस पर कुमाऊं-गढ़वाल की सियासत को नई चिंगारी दे दी।  

इधर कुमाऊं के अधिकांश विधायक हाई कोर्ट को नैनीताल से और कहीं शिफ्ट किये जाने के विरोध में खड़े हो गए हैं. देर-सबेर अन्य नेता भी जिन्हें गैरसैण में सदन चलाने में ठण्ड लगती है, इस मसले पर सियासी मजबूरियों के हिसाब से वह भी अपना रुख साफ कर ही देंगें।


हाईकोर्ट एक न्यायिक संस्थान है। राज्य की पांच फीसदी आबादी का वास्ता हाईकोर्ट से बमुश्किल पड़ता होगा। ज्यादातर सरकारी महकमों से जुड़े मामले ही यहां तक पहुंचते हैं। ऐसे में हाईकोर्ट कहीं भी खुले, राज्य की अधिकतर आबादी का इससे कोई तालुक नहीं है। लेकिन अधिवक्ताओं, न्यायिक अधिकारियों पर इसका असर जरूर पड़ता है। 


कुमाऊं के अधिवक्ताओं को लगता है कि, यदि ऋषिकेश में हाईकोर्ट की बेंच खुली तो सरकार और गढ़वाल मंडल से जुड़े केस वहां चले जाएंगे। जबकि गढ़वाल के वकीलों को लगता हैे कि, उन्हें नैनीताल की थकाऊ और महंगी आवाजाही से मुक्ति मिल सकेगी। 


इस मामले में तीसरा पक्ष वह न्यायिक अधिकारी हैं, जिन्हें नैनीताल के मुकाबले ऋषिकेश में ज्यादा सुख - सुविधाएं नजर आती हैं। इन तीन पक्षों के बीच चल रही खींचतान में अनचाहे ही सही, यह मामला कुमाऊं और गढ़वाल बनता जा रहा है।  कुमाऊं के लोग कहते हैं कि, क्षेत्रीय संतुलन को देखते हुए राज्य बनाते समय राजधानी गढ़वाल में बनाई गई और हाईकोर्ट कुमाऊं में खोला गया था। हाईकोर्ट भी अब गढ़वाल ले जाकर कुमाऊं के लोगों को उपेक्षित किया जा रहा है। 


हालांकि, गढ़वाल के आम लोगों में हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं है। लेकिन वहां के वकीलों ने इसकी शुरुआत कर दी है। देर-सबेर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना (धसमाना) की तरह अन्य नेता भी इस मामले में जरूर कूदेंगे, उस एकता को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास करेंगे, जो अलग राज्य का आंदोलन और राज्य बनने के बाद मजबूत होती गई है।  इसलिए राज्यभर के अधिवक्ताओं को इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम उठाने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियां उन्हें उत्तराखंड की एकता को तार-तार करने का गुनहगार न समझने लगे।

 

हल्द्वानी शहर से लगे बेचारे गौलापार को तो न जाने किसकी नजर लग गई, यहाँ जब भी विकास की बात होती है सिर मुड़वाने से पहले ओले पड़ना जैसा है पहले ISBT पर रोक लगी, यहाँ के अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम का तो आँखों देखा हाल है. और अब हाई कोर्ट ने भी यहाँ से मुँह मोड़ लिया, नैनीताल हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि वह गौलापार में हाईकोर्ट की शिफ्टिंग के पक्ष में नहीं है।  इसके पीछे कोर्ट ने यह तर्क दिया है कि गौलापार में जिस वन भूमि का चयन उच्च न्यायालय की स्थापना के लिए किया गया है वहां घना जंगल है और पेड़ काटने के बाद हाईकोर्ट की स्थापना करना उचित नहीं है।


हाई कोर्ट ने अब सुविधाओं की शर्तें रखकर सरकार के सामने भी मुसीबतें खड़ी कर दी, हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से कहा की एक हफ्ते के भीतर,14 मई तक पोर्टल बनायें, जिसमें अधिवक्ताओं और जनता के इस विषय पर सुझाव लिए जा सकें, वह हाई कोर्ट शिफ्टिंग के पक्ष में हैं या फिर नहीं, मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को एक माह का समय दिया है उन्हें 7 जून तक कोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी। 


कोर्ट ने अपनी शर्तों में कहा है - 
हाईकोर्ट की स्थापना के लिए, न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों के लिए आवास, कोर्ट रूम, कॉन्फ्रेंस हॉल की वयस्था के लिए पर्याप्त जमीन हो. 

जगह इतनी हो जहाँ कम से कम सात हजार वकीलों के लिए चैम्बर, कैंटीन, पार्किंग स्थल की पर्याप्त सुविधायें उपलब्ध हों, 

वह भूमि ऐसी हो जहाँ अच्छी चिकित्सा सुविधाएं और बेहतर कनेक्टिवटी भी उपलब्ध हो, 

लगता है कोर्ट ने जिस तरह की शर्तें रखी हैं, तय है, नैनीताल जिले में कहीं भी हाई कोर्ट शिफ्ट करने लायक संसाधन नहीं मिलेंगे। ऋषिकेश, ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार, या देहरादून में ही यह मौज वाली सुविधाएं मिल सकती हैं। 

हालांकि, मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष कुमाऊं से हैं. ऐसे में सरकार अपने सियासी नफा-नुकसान को देखते हुए कोर्ट को गढ़वाल मंडल में शिफ्ट करने का प्रस्ताव देने पर जरूर हिचकेगी। 


न्यायिक अधिकारियों ने सुविधाओं की कमी और नैनीताल पर बढ़ते बोझ को देखते हुए हाईकोर्ट को शिफ्ट करने पर सरकार से नया प्रस्ताव मांगा है। लेकिन यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि, जिस भवन में आज हाईकोर्ट संचालित हो रहा है, साल 1862 में नैनीताल को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। इस भवन से गर्मियों में ब्रिटिश हुकूमत वाली सरकार पूरे नार्थ-वेस्ट रीजन में चलती थी. 


वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रयाग पांडे ने अपनी पुस्तक ‘नैनीताल-एक धरोहर‘ में लिखा है कि, लेफ्टिनेंट गवर्नर से लेकर सचिव, लिपिक समेत सैंकड़ों कर्मचारी गर्मियों में नैनीताल से पूरे नार्थ-वेस्ट प्राविंसेस की सरकार का संचालन करते थे। हर साल मार्च आखिरी हफ्ते में सचिवालय नैनीताल आ जाता था तो सर्दियाँ शुरू होते ही पहली नवंबर को आगरा चला जाता था।


हालांकि, तब और अब के नैनीताल में काफी बदलाव आ चूका है। लेकिन एक सवाल है, जब अंग्रेज नैनीताल से सात महीने उतने बड़े सूबे की सरकार चला सकते हैं, तो अब हाईकोर्ट का संचालन क्यों नहीं हो सकता? कई अधिवक्ताओं ने नैनीताल के कुछ और स्थानों का अधिग्रहण करके कोर्ट को यहीं बनाए रखने का सुझाव भी दिया है।


इसके साथ ही बड़ा सवाल खड़ा होता है की, जब कई राज्यों में कोई उच्च न्यायालय नहीं है.

तेलंगाना ने अपने लिए हाई कोर्ट की मांग की जिस पर केंद्र ने भारी खर्च के आधार पर इंकार कर दिया.

पंजाब और हरियाणा जैसे दो राज्यों और केंद्र शासित चंडीगढ़ का भी एक ही हाई कोर्ट है. 

यूपी के अधिवक्ताओं ने मेरठ में एक बेंच की मांग को लेकर दशकों तक हर शनिवार एक साथ हड़ताल की, जो अब तक नहीं मानी गई, हालांकि मांग राज्य के आकार और दूरियों को ध्यान में रखते हुए उचित भी कहीं जा सकती थी. 

हिमाचल प्रदेश के शिमला का भी नैनीताल जैसा ही हाल है, नैनीताल की तुलना में शिमला में पर्यटकों की संख्या काफी अधिक होती है. तब भी इसे शिफ्ट करने की वहां कोई मांग नहीं है.

 

लिहाजा नैनीताल की भौगोलिक परिस्थियों के मुताबिक कोर्ट को शिफ्ट किया जाना तो समझा जाता है, अब आप ही बताईये 13 जिलों वाले छोटे से प्रदेश में अलग बेंच बनाना यह प्रदेश के संसाधनों का महज दोहन और खानपूर्ति नहीं तो और क्या? लोगों का मानना है अगर हाई कोर्ट शिफ्ट ही करना है तो यह पहाड़ के किसी अन्यत्र स्थान पर ही शिफ्ट होना चाहिए, वर्ना सरकारों की पर्वतीय जिलों से पलायन रोकने जैसी बातें बेईमानी साबित होंगीं।


Tags - Where is Nainital High Court shifting?, Why is Uttarakhand High Court in Nainital?, Who is the current chief justice of Nainital High Court?, नैनीताल हाई कोर्ट कहां शिफ्ट हो रहा है?, Who made Nainital High Court?, Where is the Uttarakhand High Court shifting?, उत्तराखंड हाई कोर्ट शिफ्टिंग का मामला, नैनीताल हाई कोर्ट शिफ्टिंग मामला, हल्द्वानी गौलापार में हाई कोर्ट क्यों नहीं बनेगा,  क्या ऋषिकेश में नया हाई कोर्ट बनेगा,  उत्तराखंड का नया हाई कोर्ट कहाँ बन रहा है, 
 

WhatsApp Group Join Now