नैनीताल - हाईकोर्ट ने सरकार से चार दिन में पंचायत चुनाव प्रोग्राम पेश करने के दिए निर्देश, जनहित याचिका पर हुई यह सुनवाई

नैनीताल - उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में पंचायत चुनाव में देरी को लेकर सख्त रुख अपनाया है। ग्राम पंचायतों में चुनाव न कराकर निवर्तमान ग्राम प्रधानों को प्रशासक नियुक्त करने के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह 20 मई तक पंचायत चुनाव की रूपरेखा अदालत में पेश करे। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया संविधानिक जिम्मेदारी है, जिससे सरकार बच नहीं सकती।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, तो प्रशासक नियुक्त करना असंवैधानिक है। सरकार को चुनाव कराने की दिशा में स्पष्ट योजना बनाकर उसे प्रस्तुत करना होगा। अदालत इस मामले की अगली सुनवाई भी 20 मई को ही करेगी।
क्या है मामला?
पूर्व ग्राम प्रधान विजय तिवारी सहित कई अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार ने पहले जिला पंचायतों में निवर्तमान अध्यक्षों को प्रशासक नियुक्त किया और अब यही प्रयोग ग्राम पंचायतों में भी किया जा रहा है। सरकार ने ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद चुनाव नहीं कराए और निवर्तमान ग्राम प्रधानों को प्रशासक बनाकर उन्हें वित्तीय अधिकार भी दे दिए।

याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यदि ग्राम सभा को भंग किया गया हो, तभी प्रशासक नियुक्त किए जा सकते हैं, और उस स्थिति में भी छह महीने के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य होता है। लेकिन उत्तराखंड में यह सीमा भी पार हो चुकी है।
राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से कोर्ट को बताया गया कि चुनाव कराने की पूरी तैयारी है और संबंधित कार्यक्रम पहले ही सरकार को भेज दिया गया है। अब सरकार को तय करना है कि आरक्षण की व्यवस्था कहाँ लागू होगी और कहाँ नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पंचायत चुनाव संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं, और सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती। अगर कार्यकाल समाप्त हो चुका है तो प्रशासक नियुक्त करने का कोई औचित्य नहीं है। इससे चुनावी प्रक्रिया प्रभावित होती है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के विरुद्ध है।