Loksabha Election - थाली में सजा था प्रधानमंत्री पद, नैनीताल सीट से ND तिवारी इस कारण हार गए थे चुनाव, नहीं बन पाए PM

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Nainital Lok Sabha constituency/ ND Tiwari Election Biography - राजनीति में कुर्सी का ही तो खेल है, नेता इस कुर्सी के लिए साम, दाम, दंड, भेद सब अपनाने को तैयार रहते हैं, लेकिन एक कहावत है, किस्मत जो न कराए ......इस कहावत पर कोई यकीन करे या न करे लेकिन राजनीति में किस्मत भी एक बड़ी भूमिका अदा करती है। लिहाजा उत्तराखंड उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख़्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी को नैनीताल लोकसभा सीट ने ऐसा चुनावी जख्म दिया कि वह ताउम्र इस किस्मत के खेल को कभी नहीं भूल पाए। इस बात को एनडी तिवारी से बेहतर भला कौन समझ सकता है। लिहाजा हम आपको फ़्लैश बैक यानि साल 1991 में लेकर चलते हैं, जब देश में 10वें लोकसभा चुनावों का आगाज जोर - शोर पर हो रहा था, और इसी साल किस्मत ने एनडी तिवारी के साथ अजीबोगरीब खेल खेला और प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में वह असफल रहे, और यह टीस उन्हें अंतिम समय तक सताती रही। चलिए अब आपको बताते हैं इस चुनाव के पीछे की पूरी इनसाइड स्टोरी ------ 


साल 1991 के आम चुनाव - 
साल 1991 के आम चुनावों में नैनीताल उधम सिंह नगर सीट तब नैनीताल बहेड़ी लोकसभा सीट का हिस्सा हुआ करती थी, दरअसल इस जनरल इलेक्शन में कांग्रेस नेता ND तिवारी की जीत लगभग तय मानी जा रही थी, मगर लोकसभा चुनावों के नतीजे ND तिवारी के पक्ष में नहीं आये, इस बात को सुनकर तिवारी को चाहने वालों को बड़ा झटका था... महज 31 साल के युवा भाजपा नेता बलराज पासी ने तिवारी जैसे सियासी धुरंधर को पटखनी दे दी। हार के साथ ही अब प्रधानमंत्री बनने का सुनहरा मौका भी ND तिवारी अपने हाथ से गवां चुके थे। लिहाजा तिवारी इससे पहले साल 1980 और इसके बाद 1996, 99 में इसी लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे। 


राजीव गांधी की हत्या के बाद दौड़ रहा था PM के लिए नाम - 
वर्ष 1991 का लोकसभा चुनाव पार्टी कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में लड़ रही थी। दरअसल मई 1991 में चुनाव प्रचार के लिए राजीव गांधी तमिलनाडु गए थे। जहां मानव बम धमाके में उनकी हत्या हो गई। चुनावी माहौल के बीच हुई इस हत्या से कांग्रेस के पाले में सहानुभूति की लहर दौड़ पड़ी. और यही लहर आम चुनावों के समय वोट में भी तब्दील हो गई। इन आम चुनावों में 232 सीटों के साथ देश में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। राजीव गांधी की हत्‍या के बाद कांग्रेस में उस दौरान कोई दूसरा नाम तैर रहा था तो वह थे नारायण दत्त तिवारी। लिहाजा तब दिग्गज कांग्रेसी नेता एनडी तिवारी का पीएम बनना लगभग तय माना जा रहा था, मगर जिंदगी में तमाम चुनाव जीतने वाले एनडी तिवारी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा की सहानुभूति वाले इस माहौल में नए-नवेले भाजपाई चेहरे बलराज पासी से चुनाव हार जाएंगे। 


अभिनेता युसुफ खान उर्फ़ दिलीप कुमार से प्रचार करवाना ND तिवारी को पड़ा भारी - 
उस चुनाव में सभी विधानसभा सीटों पर तिवारी ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया, मगर बहेड़ी विधानसभा में मिले कम वोट ने उन्हें भाजपा के बलराज पासी से हरा दिया। कहा जाता है इस चुनाव में तिवारी अपने प्रचार के लिए अभिनेता दिलीप कुमार को बहेड़ी लाए , लेकिन दिलीप कुमार का मुस्लिम होना एनडी के लिए बैकफायर कर गया। एक इंटरव्यू में एनडी तिवारी ने हार का ठीकरा अभिनेता दिलीप कुमार के सिर पर ही ठीकरा फोड़ा था जिसकी वजह से थाली में सजा प्रधानमंत्री पद पीवी नरसिम्हा राव को आसानी से मिल गया. तिवारी के मुताबिक उन्हें नहीं मालुम था कि दिलीप कुमार का असली नाम युसुफ खान है. बाद में बहेड़ी इलाके में बात फैल गई कि मुस्लिम अभिनेता उन्हें जिताने की अपील कर रहे हैं. इन्हीं दिनों देशभर में अयोध्या में राम मंदिर का आंदोलन चल रहा था इस आंदोलन में बलराज पासी भी सक्रिय थे जिससे हिन्दू वर्ग के वोटों का तिवारी को नुकसान झेलना पड़ा । 


11429 वोट से चुनाव हार गए ND तिवारी - 
लिहाजा नारायण दत्त तिवारी 11429 वोट से अपना चुनाव हार गए .....बलराज पासी को 1,67,509 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस के एनडी तिवारी को 1,56,080 वोटों में संतुष्ट होना पड़ा।  इस चुनाव ने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और कई बार केंद्रीय मंत्री रहे एनडी तिवारी के पीएम बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया।  पीवी नरसिम्हा राव के बिना चुनाव लड़े भी पीएम बनने का ND तिवारी को जिंदगी भर रश्क रहा। 


बलराज पासी उसके बाद नहीं जीते चुनाव - 
तकदीर ने यहां एक खेल और खेला। बलराज पासी ने भले ही एनडी तिवारी जैसे सियासी धुरंधर को पटकनी देकर उनसे प्रधानमंत्री पद का मौका छीन लिया, लेकिन पासी भी खुद उस चुनाव के बाद कोई चुनाव नहीं जीत पाए। हालाँकि यह बात अलग है की वह पूर्व और वर्तमान में भी दर्जा राज्य मंत्री हैं, राज्य अलग होने के बाद ND तिवारी उत्तराखंड के पहली निर्वाचित सरकार में मुख्यमंत्री बने और पूरे पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने का रिकॉर्ड भी अभी तक तिवारी के नाम ही है। 18 अक्टूबर 2018 को 93 साल की उम्र में तिवारी का निधन हो गया था। 

 

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