हल्द्वानी का यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना की चिंगारी बना, वकील राकेश किशोर ने क्या बताया?
नई दिल्ली/हल्द्वानी - सुप्रीम कोर्ट में बीते सोमवार को उस समय सनसनी फैल गई जब 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। अदालत की सुरक्षा व्यवस्था में हुई इस बड़ी चूक के पीछे जो नाराज़गी सामने आई है, उसका एक सिरा उत्तराखंड के हल्द्वानी अतिक्रमण मामले से जुड़ा है।
आरोपी वकील राकेश किशोर ने घटना के बाद मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्हें हल्द्वानी की रेलवे ज़मीन पर अतिक्रमण के मामले में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका से गहरा दुख पहुंचा है। उनका आरोप है कि, "जब मामला किसी विशेष समुदाय से जुड़ा होता है, तो कोर्ट की प्रतिक्रिया बिल्कुल अलग होती है।"
क्या है हल्द्वानी मामला?
तीन साल पहले उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर कथित अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई थी। यह इलाका हजारों लोगों का घर था, जिनमें से अधिकांश एक विशेष समुदाय से थे। प्रशासन ने जब अतिक्रमण हटाने का प्रयास किया, तो सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल उस पर रोक लगा दी थी, जो अब तक लागू है।
वकील किशोर का कहना है कि, "हजारों हिंदुओं को उजाड़ दिया गया, किसी ने कुछ नहीं कहा। लेकिन हल्द्वानी में जब दूसरे समुदाय की बस्ती पर कार्रवाई हुई, तो अदालत ने तुरंत दखल दिया और कार्रवाई पर रोक लगा दी। यही दोहरा रवैया मेरे भीतर आक्रोश का कारण बना।"
नुपूर शर्मा और पीआईएल पर टिप्पणी से भी आहत -
राकेश किशोर ने इस बात पर भी गुस्सा जताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले नुपूर शर्मा के मामले में भी "अनुचित टिप्पणी" की थी। साथ ही उन्होंने दावा किया कि 16 सितंबर को एक धार्मिक पीआईएल पर मुख्य न्यायाधीश ने "मूर्ति से सिर वापस मांगने" जैसी टिप्पणी की, जिसे उन्होंने “भावनाओं का अपमान” बताया।
उन्होंने कहा, "मैं हिंसा के सख्त खिलाफ हूं, लेकिन आपको समझना चाहिए कि एक शिक्षित, शांतिप्रिय व्यक्ति को इस तरह का कदम उठाने पर क्यों मजबूर होना पड़ा। ये सिर्फ मेरा नहीं, पूरे समाज का प्रश्न है।"
बार काउंसिल ने तुरंत निलंबित किया लाइसेंस -
वकील किशोर की इस हरकत पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने तत्काल प्रभाव से उनका लाइसेंस सस्पेंड कर दिया है और जांच शुरू कर दी गई है। सुप्रीम कोर्ट परिसर में इस घटना को बेहद गंभीर माना जा रहा है।
सवाल उठते हैं -
इस पूरी घटना ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या देश की न्यायपालिका में धर्म आधारित भेदभाव की धारणा बनती जा रही है? क्या हल्द्वानी अतिक्रमण मामला, अदालतों के निर्णय में पक्षपात का उदाहरण बन गया है? या फिर यह सिर्फ एक वकील की व्यक्तिगत नाराजगी और अतिवादी प्रतिक्रिया थी?
