नैनीताल - जहां टॉस और सहमति से चुना जाता है ग्राम प्रधान, झड़गांव मल्ला और तल्ला वर्धों में फिर बनी अनोखी मिसाल

नैनीताल - बेतालघाट/ओखलकांडा - जहां देशभर में पंचायत चुनावों के दौरान भारी खर्च, खेमेबंदी और प्रचार का शोर होता है, वहीं नैनीताल जिले के दो गांव तल्ला वर्धों और झड़गांव मल्ला लोकतंत्र की एक सादगीपूर्ण और प्रेरणादायक तस्वीर पेश कर रहे हैं। इन गांवों में ग्राम प्रधान का चयन बिना चुनाव के, सर्वसम्मति या कभी-कभी टॉस से किया जाता है।

झड़गांव मल्ला में निर्विरोध बना प्रधान -
29 जून 2025 को ओखलकांडा ब्लॉक की ग्राम पंचायत झड़गांव मल्ला में प्रकाश चंद्र भट्ट को ग्राम प्रधान पद के लिए निर्विरोध चुना गया। न कोई मतदान हुआ, न कोई प्रचार—बस ग्रामसभा की आम बैठक में सभी ग्रामीणों ने एकमत होकर उनका समर्थन किया। इससे गांव में शांति, भाईचारा और विश्वास की भावना और मजबूत हुई है।

तल्ला वर्धों, जहां टॉस करता है निर्णय -
नैनीताल जनपद के दूरस्थ विकासखंड बेतालघाट की ग्राम पंचायत तल्ला वर्धों एक अनूठी मिसाल पेश कर रही है। यहां आज़ादी के बाद से अब तक ग्राम प्रधान का कोई औपचारिक चुनाव नहीं हुआ। गांव के लोग हर बार सर्वसम्मति से अपना प्रधान चुन लेते हैं। कभी-कभी दो उम्मीदवार सामने आने पर टॉस से निर्णय किया जाता है।
गांव की पूर्व ग्राम प्रधान गीता मेहरा, नंदन सिंह और हरीश सिंह मेहरा सहित कई बुजुर्गों का कहना है कि यह परंपरा गांव की एकता, भाईचारे और विकास का प्रतीक है। उनका मानना है कि चुनाव से गांव में फूट पड़ने की आशंका रहती है, इसलिए सभी मिल बैठकर एक नाम पर सहमति बनाते हैं।
टॉस से चुना गया प्रधान -
पिछले वर्ष ग्राम पंचायत तल्ला वर्धों में दो उम्मीदवार सामने आए – गीता मेहरा और अर्जुन सिंह। जब कोई सहमति नहीं बन सकी, तो गांव की परंपरा को निभाते हुए चुनाव कराने के बजाय टॉस किया गया। टॉस गीता के पक्ष में गया और वह ग्राम प्रधान चुन ली गईं। इससे गांव ने न केवल चुनावी खर्च से बचाव किया, बल्कि आपसी सौहार्द भी बनाए रखा।
हर वर्ग की भागीदारी -
दोनों गांवों में जब भी सीट आरक्षित होती है – महिला, सामान्य या अनुसूचित जाति – तब वरिष्ठों और युवाओं की बैठक बुलाकर सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। तल्ला वर्धों में 65 से अधिक परिवार रहते हैं, और इस संख्या के बावजूद हर बार सर्वसम्मति बनाना एक मिसाल है।
लोकतंत्र की सच्ची तस्वीर -
इन गांवों ने साबित कर दिया कि लोकतंत्र केवल वोटिंग मशीनों और प्रचार रैलियों तक सीमित नहीं है। असल लोकतंत्र वहीं होता है जहां एकता और सहमति से नेतृत्व चुना जाए और विकास को प्राथमिकता मिले। ग्रामीणों का कहना है कि इस प्रणाली से विकास कार्यों में गति, टकराव से दूरी और सामाजिक सौहार्द बना रहता है।