नैनीताल - देवगुरु बृहस्पति धाम पहुचीं पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती, जानिए ओखलकांडा में स्थित यह मंदिर क्यों है विश्व प्रसिद्ध 

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Dev Guru Brahaspati Temple Nainital  - देवभूमि उत्तराखंड को देवी - देवताओं की राजधानी के रूप में जाना जाता है. आज भी कहा जाता है यह भूमि देवताओं की शक्तियों से अभिभूत है. यहां कण - कण में भगवान विराजमान रहते हैं. आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताएंगे जहां अपने शीश झुकाने से और देवगुरु की पूजा करने से धन लाभ, राजनीति में पद-प्रतिष्ठा और जीत मिलती है. साथ ही इस मंदिर से जुड़ी स्थानीय कथाओं के अनुसार मंदिर में पूजा के बाद कई लोगों की मनोकामनाएं पूरी हुई हैं. बृहस्पति देव की पूजा करने से कुंडली में इस ग्रह का अशुभ असर खत्म हो जाता है. विवाह में देरी और दाम्पत्य जीवन में परेशानियाें को दूर करने के लिए कई लोग यहां पूजा करने आते हैं.

 

उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में ओखलकांडा ब्लॉक के खूबसूरत और हरे- भरे पेड़ पौधों के बीच पहाड़ की ऊंची सुरम्य चोटी पर स्तिथ यह देव गुरु बृहस्पति मंदिर (Dev Guru Brahaspati Temple Okhalkanda Nainital) आध्यात्मिक चिंतन के लिए जाना जाता है. ओखलकांडा क्षेत्र में देवगुरु बृहस्पति का यह मंदिर "देवगुरु पर्वत" की चोटी पर स्थित है. इस मंदिर को देवगुरु बृहस्पति की तपस्थली माना जाता है. कहा जाता है यहां बृहस्पति देव ने तपस्या की थी. इसलिए इस पर्वत को देवगुरु पर्वत कहा गया है. मंदिर के आस-पास के गांवों में लोग देवगुरु बृहस्पति को ही आराध्य देव के रुप में पूजते हैं. 

 

देवगुरु बृहस्पति धाम पहुंचीं उमा भारती - (Uma Bharti reached Devguru Brihaspati Dham in Okhalkanda) 
पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने गुरुवार को ओखलकांडा ब्लॉक के बृहस्पति देवगुरु धाम मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना की.  उमा भारती डोल आश्रम से शहरफाटक, मौरनौला होते हुए नाई से कोटली पहुंची, वहां से ग्रामीणों के साथ पांच किलोमीटर पैदल यात्रा कर मंदिर तक पहुंची। मंदिर में पूजा अर्चना के बाद उन्होंने गुफा में रहने वाले स्वामी प्रेमानंद महाराज से मुलाकात की। महाराज ने उन्हें बताया कि यह उत्तर भारत का एकमात्र बृहस्पति देवगुरु धाम मंदिर है जो ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। 


मानसखंड में जोड़ने के लिए PM को लिखूंगी पत्र - 
उमा भारती ने कहा कि देवगुरु बृहस्पति धाम आध्यात्म का बहुत बड़ा केंद्र है। साथ ही कहा कि ध्यान लगाकर उन्हें आध्यात्मिक शांति मिली है। उन्होंने कहा कि इस धाम को मानसखंड से जोड़ने के लिए वह प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगी। साथ ही दोबारा आने की बात कहीं है। इसके बाद वह वापस लौट गई। अप्रैल 2022 में यहां मशहूर आईएएस दीपक रावत ने भी देवगुरु बृहस्पति धाम के दर्शन को पहुंचे थे. 

अंग्रेज भी मानते थे देवगुरु का चमत्कार - 
देवगुरु के चमत्कारों से अंग्रेज भी भली - भांति वाकिफ थे. देवगुरु पर अंग्रेजों की भी गहरी आस्था थी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देवगुरु की इच्छा से यह मंदिर खुले आकाश के नीचे है. भक्तों ने यहां मंदिर निर्माण की बात सोची लेकिन सभी की इच्छाएं धरी की धरी रह गईं. क्योंकि देवगुरु की इच्छा खुले आकाश के नीचे विराजमान रहने की थी. बताते हैं कि कई लोगों ने पूर्व में यहां पर भव्य मंदिर निर्माण की बात सोची व प्रयास भी किये, परन्तु देवगुरु की इच्छा के आगे सभी के प्रयास विफल हो गए.


मंदिर निर्माण करने पर निकल आया सापों का झुंड - 
अनंत रहस्यों को अपने में समेटे इस दरबार की बड़ी मान्यता है, स्थानीय श्रद्धालु बताते हैं कि एक बार मंदिर के पुजारी केशव दत्त जी ने इसे बड़ा बनाने के उद्वेश्य से कुछ दूरी पर पत्थर का खुदान करवाया. इस खुदाई में हर पत्थर के नीचे सांपों का झुण्ड निकला. पत्थर इतने वजनदार हो गये कि उन्हें कोई उठा तक नहीं पाया. देवगुरु के सभी भक्त प्रभु के संकेत को समझ गये कि उनका मंदिर खुला रहेगा. बताते हैं कि रात्रि में विधिपूर्वक यहां देवगुरु का ध्यान लगाने पर पहाड़ियों से कानों में संगीत के स्वर गूंजते हैं.


उत्तर भारत का एक मात्र देव गुरु बृहस्पति मंदिर - (The only Dev Guru Brihaspati temple of North India) 
ओखलकांडा क्षेत्र में स्थित देव गुरु बृहस्पति भगवान का एकमात्र मंदिर है, कहा जाता है कि सतयुग में एक बार देवराज इन्द्र ब्रह्म हत्या के पाप से घिर गये थे. पाप से मुक्ति के लिए वे यहां के घने जंगलों की गुफाओं में तपस्या करने लगे. उनके अचानक स्वर्ग छोड़ देने के कारण सभी देवता परेशान हो गए. काफी खोजबीन के बाद भी जब देवराज इन्द्र का पता नहीं चला तो सभी देवगण निराश होकर अपने गुरु बृहस्पति महाराज की शरण में गये. उन्होंने देवगुरु से इन्द्र को खोजने का अनुरोध किया. देवताओं की विनती पर देवगुरु ने इन्द्र की खोज आरम्भ की. वे उन्हें खोजते-खोजते भू-लोक में पहुंचे. यहीं एक गुफा में उन्होंने देवराज इन्द्र को भयग्रस्त अवस्था में व्याकुल देखा. देवगुरु ने इन्द्र की व्याकुलता दूर कर उन्हें अभयत्व प्रदान कर वापस भेज दिया. तत्पश्चात इस स्थान के सौंदर्य व पर्वतों की रमणीकता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो तपस्या में लीन हो गए. तभी से यह स्थान पृथ्वी पर देवगुरु धाम के नाम से प्रसिद्व हुआ. आज भी वह गुफा यहां मौजूद है. 


कैसे पहुचें ओखलकांडा देवगुरु बृहस्पति मंदिर - (How to reach Okhalkanda Devguru Brihaspati Temple) 
नैनीताल जिले के ओखलकांडा में स्थित इस मंदिर की ऊंचाई समुद्र तल से आठ हजार फुट है. यहां पहुंचने के लिए सड़क रास्ते से काठगोदाम से हैड़ाखान खनस्यूं, पतलोट होते हुए देवली तक जाना पड़ता है. देवली पहुंचकर देव गुरु पर्वत के लिए चार किलोमीटर की पैदल चढ़ाई चढ़नी होती है. जिसे आप आसानी से तय कर लेंगे, हल्द्वानी से इस मंदिर की दूरी महज 90 किलोमीटर पड़ती है. ये मंदिर पहाड़ी पर घने जंगलों के बीच है. आप प्राकृतिक सौंदर्य का लुफ्त उठाकर अपना सफर और आसान बना सकते हैं. इस जगह से तीर्थराज कैलाश मानसरोवर के भी दर्शन होते हैं. 

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