देहरादून - मुख्यमंत्री से मिला उपनल कर्मचारी संयुक्त मोर्चा, सरकार से की यह मांग CM धामी ने दिया यह आश्वासन
उत्तराखंड - प्रदेश में लम्बे समय से उपनल कर्मी समान काम समान वेतन के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बता दें कि 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा उपनल कर्मियों के नियमित एवं समान कार्य के लिए समान वेतन के निर्देश दिए थे, इसके अगेंस्ट उत्तराखंड सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई। 15 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार की एसएलपी खारिज कर दी गई और उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेशों को यथावत रखा। जिस दौरान हाई कोर्ट ने निर्णय दिया, तब उत्तराखंड में उपनल कर्मचारी की संख्या करीब 18 हजार थी, जो अब बढ़कर करीब 22 हजार पहुंच गई है.
मुख्यमंत्री से मिला उपनल कर्मचारी संयुक्त मोर्चा -
उपनल कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के प्रदेश संयोजक विनोद गोदियाल के नेतृत्व में उपनल कर्मियों के प्रतिनिधि मंडल ने आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एवं कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत व पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के साथ ही उपनल के एमडी से भेंट कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू कर कर्मचारियों के नियमितीकरण एवं समान कार्य के लिए समान वेतन की कार्यवाही का अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने उपनल कर्मियों के प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन देते हुए कहा कि उपनल कर्मियों के हितों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार जल्दी ही कोई रास्ता निकाल कर इस पर सकारात्मक कार्रवाई की जाएगी।
उपनल कर्मचारियों के समर्थन में कूदे रामदास आठवले -
उपनल कर्मचारियों को नियमित करने, समान काम का समान वेतन देने को हाईकोर्ट के आदेश को लागू किए जाने को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को हाईकोर्ट के आदेश को लागू किए जाने को पत्र लिखा है।
नियमित ना करने के पीछे रहता है वित्तीय बोझ का तर्क-
वित्तीय बोझ का तर्क देकर सरकार उपनल कर्मचारियों को नियमित करने से बचती रही है. सरकार का दावा रहा है कि राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है और ऐसी स्थिति में यदि बड़ी संख्या में कर्मचारियों को नियमित किया जाता है तो सरकार पर वित्तीय बोझ बन जाएगा.उत्तराखंड इस समय करीब 80 हजार करोड़ के कर्ज में है. ऐसी स्थिति में जब उत्तराखंड का 80 फीसदी बजट अयोजनागत मद में खर्च हो रहा है, तब सरकार और ज्यादा वित्तीय बोझ सहने की स्थिति में नहीं है. उधर, तमाम ऐसे कर्मचारी संगठन वित्तीय बोझ के तर्क के सामने विधायकों की तनख्वाह बढ़ाई जाने और तमाम सरकार के फैसलों पर सवाल खड़े करते हुए इस तर्क को खारिज करते हैं.