देहरादून - मुख्यमंत्री धामी ने कहा 'बुके नहीं, बुक' की पहल को बढ़ाया जाय, बोले लोकभाषाओं के लिए किया जायेगा यह काम 

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देहरादून - उत्तराखंड में अब "बुके के बदले बुक" की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सचिवालय में उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की साधारण सभा एवं प्रबन्ध कार्यकारिणी समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए यह बात कही। उन्होंने प्रदेशवासियों से अपील की कि उपहार में फूलों के गुलदस्ते की बजाय पुस्तकें भेंट की जाएं, ताकि ज्ञान और संस्कृति दोनों को बढ़ावा मिल सके।

मुख्यमंत्री ने उत्तराखण्ड की लोकभाषाओं, लोकगीतों, लोककथाओं और साहित्य के डिजिटलीकरण की दिशा में व्यापक कार्ययोजना पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि इनका संग्रहण, ई-लाइब्रेरी के ज़रिये हर व्यक्ति तक पहुंचाया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को लोककथाओं पर आधारित ऑडियो-विज़ुअल कंटेंट और स्कूलों में स्थानीय भाषाओं पर आधारित गतिविधियों को बढ़ाने के निर्देश भी दिए।

इस अवसर पर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान की राशि बढ़ाकर ₹5.51 लाख कर दी गई है। वहीं दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान ₹5 लाख की राशि के साथ दिया जाएगा। ‘युवा कलमकार प्रतियोगिता’ की शुरुआत भी की जाएगी जिसमें 18-24 और 25-35 आयु वर्ग के युवाओं को शामिल किया जाएगा।

राज्य के दूरस्थ इलाकों तक सचल पुस्तकालय (Mobile Libraries) पहुंचाए जाएंगे और बड़े प्रकाशकों से सहयोग लेकर लोगों को विविध साहित्य उपलब्ध कराया जाएगा। बच्चों में स्थानीय भाषाओं के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे वीडियो भी बनाए जाएंगे।

बैठक में यह भी तय हुआ कि जौनसार बावर की पौराणिक पंडवाणी परंपरा ‘बाकणा’ का अभिलेखीकरण किया जाएगा। इसके साथ ही गोविंद बल्लभ पंत के समग्र साहित्य का संकलन, उत्तराखंड के पुराने साहित्यकारों की रचनाओं का पुनः संकलन, और उच्च हिमालयी एवं जनजातीय भाषाओं पर शोध परियोजनाएं चलाई जाएंगी।

दो साहित्य ग्राम बनाए जाएंगे, जहां प्रकृति के बीच साहित्यकार रचना, संवाद और विचार-विमर्श कर सकेंगे। भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि उत्तराखंड में भाषा एवं बोली के संरक्षण के लिए बीते तीन वर्षों में कई महत्वपूर्ण पहल की गई हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के लिए निरंतर प्रयासरत है।

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