पाताल लोक का अद्भुत रहस्य, जहां आज भी मौजूद है भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर

पाताल लोक- हिमालय की वादियों के बीच एक दुर्गम स्थान पर ऐसी गुफा मौजूद है, जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने गणेशजी का सिर यहीं काटा था। लेकिन बाद में माता पार्वती के निवेदन पर पाताल लोक में गणेशजी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया। घने जंगलों और झाडिय़ों में
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पाताल लोक का अद्भुत रहस्य, जहां आज भी मौजूद है भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर

पाताल लोक- हिमालय की वादियों के बीच एक दुर्गम स्थान पर ऐसी गुफा मौजूद है, जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने गणेशजी का सिर यहीं काटा था। लेकिन बाद में माता पार्वती के निवेदन पर पाताल लोक में गणेशजी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया। घने जंगलों और झाडिय़ों में स्थित ये गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है। 90 मीटर गहरी इस गुफा में उतरने के लिए 88 से ज्यादा सीढय़िां बनी हुई हैं। गुफा में प्रवेश करने के लिए 3 फीट चौड़ा और 4 फीट लंबा मुंह बना हुआ है।

पाताल लोक का अद्भुत रहस्य, जहां आज भी मौजूद है भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर

मान्यता है कि जो यहां श्रद्धापूर्वक आता है, वही इसमें प्रवेश कर पाता है। कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। पाताल भुवनेश्वर (पाताल लोक) गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इन मंदिरों का निर्माण बारहवीं शताब्दी में चंद और कत्यूरी राजाओं के शासन काल में किया गया था। इस मंदिर के बाई ओर एक धर्मशाला है जिसके आँगन में हनुमान जी की एक विशाल प्राचीन मूर्ति है। स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्वर की गुफा आज भी देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

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पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर की कहानी

पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर अतिप्राचीन और धार्मिक स्थान है। इस स्थान के अलावा ऐसा कोई स्थान नही है जहा पर एक साथ चारो धाम के दर्शन किए जा सकते हैं। पाताल भुवनेश्वर गुफा बहुत ही पवित्र और रहस्यमयी गुफा है, जो अपने में सदियों पुराने रहस्य समेटे हुए है। प्राचीन काथाओं के अनुसार भगवान शिवजी ने पांडवो के साथ यहां चौपड़ खेली थी। हिन्दू धर्म की प्राचीन कथाओं अनुसार भगवान शिवजी ने क्रोध में आकर भगवान गणेश जी का सिर काट दिया था लेकिन माता पार्वती के कहने पर हाथी का सिर भगवान गणेश जी को लगा दिया। माना जाता है कि भगवान गणेश का कटा हुआ सिर आज भी इस गुफा में स्थापित है।

पाताल लोक का अद्भुत रहस्य, जहां आज भी मौजूद है भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर

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यहां विराजित है गणेशजी का कटा मस्तक

  • हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोधवश गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, वह शिव ने इस गुफा में रख दिया।

पाताल लोक का अद्भुत रहस्य, जहां आज भी मौजूद है भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर

  • कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला लेकिन तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है।
  • कदलीवन नामक मार्ग है मान्यता अनुसार यहां हनुमान-अहिरावण संग्राम हुआ था और हनुमान जी ने पाताल विध्वंस किया था इसके साथ ही एक मार्कण्डेय पुराण की भी रचना की थी।

 

गुफा में मौजूद हैं केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ भी

यहीं पर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

पाताल लोक का अद्भुत रहस्य, जहां आज भी मौजूद है भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर

6736 साल पहले हुई थी इस गुफा की खोज

  • गुफा के पुजारी नीलम भंडारी ने बताया कि अयोध्या के राजा ऋतुपर्णा भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने ही इस गुफा की खोज की थी।
  • अगर पौराणिक इतिहास से जुड़ी अलग-अलग किताबों पर नजर डालें तो पता चलता है कि राजा ऋतुपर्णा का साम्राज्य ईसा पूर्व 4720 के आसपास यानी आज से 6736 साल पहले था।

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  • जलयुक्त सप्तकुंड का दृश्य निर्मित है जिसमें दिखाया गया है कि कुंड का जल सर्पों के अतिरिक्त अन्य कोई न पी सके। ब्रह्मा ने इसकी पहरेदारी के लिए एक हंस की नियुक्ति की है। मान्यता है कि एक बार यह हंस स्वयं पानी पी गया जिसके बाद मिले श्राप के कारण इसका मुंह टेढ़ा हो गया।
  • इस पास में स्थित एक जगह पर भगवान शंकर की जटाओं से गंगा की धारा निकल रही है. इसके नीचे तैंतीस करो? देवी-देवता लिंगों के रूप में आराधना करते हुये नजर आते हैं।

पाताल लोक का अद्भुत रहस्य, जहां आज भी मौजूद है भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर

  • मध्य में नर्मदेश्वर महादेव का लिंग विद्यमान है। इसके आस-पास नंदी और विश्वकर्मा कुंड बना हुआ है. यहीं पर आकाश गंगा और सप्तऋषि मंडल का दृश्य दिखाई देता है।

पौराणिक महत्व

स्कन्दपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आते हैं। यह भी वर्णन है कि त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफ़ा में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस गुफ़ा के भीतर महादेव शिव सहित 33 कोटि देवताओं के साक्षात दर्शन किये। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु आदि शंकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफ़ा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया।

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पत्थर बताता है कब होगा कलयुग का अंत

इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।

पाताल भुवनेश्वर में खाने के लिए प्रसिद्ध स्थानीय भोजन

पाताल भुवनेश्वर में मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है और इसीलिए इसे ‘भारत का मंदिर शहर’ कहा जाता है। यहां अधिकांश व्यंजन चावल के होते हैं क्योंकि यह इस क्षेत्र की मुख्य फसल है। इस क्षेत्र के अधिकांश लोग मांसाहारी हैं और मछली, केकड़े, भेड़ के बच्चे और चिकन से बने व्यंजन को पसंद करते हैं। यहां के लौकप्रिय भोजन मक्का घंटा, क्रेब कालिया, भिन्डी भाजा, चुडा और पोहा, खिचड़ी, मुर्ग सग्वाला, रसमलाई और मालपुआ प्रमुख हैं।

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पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर कैसे जाये

पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर पहुंचने के लिए आप हवाई जहाज, रेल या फिर बस या टेक्सी किसी भी साधन का उपयोग कर सकते हैं।

हवाई जहाज से यात्रा- यदि आपने हवाई मार्ग से पाताल भुवनेश्वर जाने की योजना बनाई है तो हम आपको आसानी से पाताल भुवनेश्वर हवाई मार्ग से जा सकते है। पाताल भुवनेश्वर के लिए निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है। पंतनगर हवाई अड्डा पाताल भुवनेश्वर से 244 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पंतनगर हवाई अड्डे से पाताल भुवनेश्वर के लिए टैक्सी आसानी से उपलब्ध है।

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ट्रेन से कैसे पहुँचे- यदि आपने ट्रेन से पाताल भुवनेश्वर जाने की योजना बनाई है तो हम आपको बता दें कि ट्रेन से पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर आसानी से पहुँच जाएंगे। पाताल भुवनेस्वर से टनकपुर रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 154 किलोमीटर हैं। यह सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं यहां से आप स्थानीय साधनों के माध्यम से पाताल भुवनेश्वर मंदिर आसानी से पहुंच जाएंगे। टनकपुर रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख शहरो जैसे – दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता और आगरा से बहुत अच्छी तरह से जु?े हुए हैं।

कैसे पहुँचे बस से – यदि आपने बस के माध्यम से पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर में पहुँचने की योजना बनाई है तो आप सडक़ मार्ग से पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर में पहुंचा जा सकता है। आमतौर पर बसें पिथौरागढ़, लोहाघाट, चंपावत और टनकपुर तक जाती है, जहां से कोई भी टैक्सी ले सकता है या वांछित गंतव्य तक पहुंचने के लिए बस की सवारी कर सकता है।