गैरसैंण-भईया जी स्माइल, ये गैरसैंण है।

गैरसैंण-ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण अब सूबे की तीसरी कमिश्नरी भी बन गई है। गैरसैंण को लेकर सीएम त्रिवेंद्र द्वारा उठाए गए इस अप्रत्याशित व साहसिक फैसले से आमजन और खासतौर से गैरसैंण के वासियों में जहां हर्ष की लहर है तो विपक्षी चारों खाने चित। दिलचस्प यह कि विपक्ष के साथ ही तमाम विघ्नसंतोषी सदमे में
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गैरसैंण-भईया जी स्माइल, ये गैरसैंण है।
गैरसैंण-ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण अब सूबे की तीसरी कमिश्नरी भी बन गई है। गैरसैंण को लेकर सीएम त्रिवेंद्र द्वारा उठाए गए इस अप्रत्याशित व साहसिक फैसले से आमजन और खासतौर से गैरसैंण के वासियों में जहां हर्ष की लहर है तो विपक्षी चारों खाने चित। दिलचस्प यह कि विपक्ष के साथ ही तमाम विघ्नसंतोषी सदमे में हैं। मातम मनाने वाली स्थिति बनी हुई है। जहां आमजन में इस साहसिक निर्णय को लेकर तमाम सकारात्मक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं तो मातमी कैसे भी त्रिवेंद्र को गलत साबित करने के लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं।
चूंकि गैरसैंण गढ़वाल और कुमांउ दोनों का ही केंद्र बिंदु है तो नई कमिश्नरी में गढ़वाल के चमोली व रूद्रप्रयाग एवं कुमांउ से अल्मोड़ा और बागेश्वर को शामिल किया गया है। ऐसे में भौगोलिक संतुलन भी बिल्कुल सटीक बैठाया गया है। एक साल में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने से लेकर कमिश्नरी तक के सफर में भले कोई इसे राजनीतिक चश्मे से देखें परंतु अंततोगत्वा इसका लाभ गैरसैंण और इसके पास बसे लोगों को ही मिलेगा।
एकदम यूं कह देना कि ऐसा करने से क्या होगा, वैसा करने से क्या होगा से केवल किसी की बौखलाहट ही नजर आती है। यह वही लोग हैं जो पहाड़ की राजधानी पहाड़ में जैसी बातें करते रहे हैं। आज जबकि त्रिवेंद्र इस मामले में कदम दर कदम आगे बढ़ रहे हैं तो भी विघ्नसंतोषियों को यह रास नहीं आ रहा। ऐसे में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि भईया, आखिर चाहते क्या हो।