सैलानियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं कुल्लू-मनाली, जीवन में जरूर करें एक बार यहां की यात्रा

हिमांचल प्रदेश-न्यूज टुडे नेटवर्क : दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला हिमालय, हिमाचल प्रदेश से गुजऱती हैै। खूबसूरत और आकर्षक हिल स्टेशनों वाला यह राज्य भारत का टॉप पर्यटन स्थल है। पर्यटक अगर घूमने के लिए कहीं जाने के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले उसके जेहन में जो नाम उभरता
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सैलानियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं कुल्लू-मनाली, जीवन में जरूर करें एक बार यहां की यात्रा

हिमांचल प्रदेश-न्यूज टुडे नेटवर्क : दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला हिमालय, हिमाचल प्रदेश से गुजऱती हैै। खूबसूरत और आकर्षक हिल स्टेशनों वाला यह राज्य भारत का टॉप पर्यटन स्थल है। पर्यटक अगर घूमने के लिए कहीं जाने के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले उसके जेहन में जो नाम उभरता है वह है कुल्लू-मनाली। सैलानियों का स्वर्ग कहलाने वाली इस जगह में वे सारी खूबियां हैं जो किसी भी पर्यटन स्थल में होनी चाहिए। कुल्लू मनाली जाने के लिए सबसे अच्छा समय मार्च का माना जाता है, क्योंकि इस माह में मौसम बहुत सुहावना होता है। अगर पर्यटक कुल्लू-मनाली में राफ्टिंग और पैराग्लाइडिंग का लुफ्त उठाना चाहते हैं तो जनवरी से मध्य अप्रैल के बीच जाएं तो ज्यादा बेहतर होगा।

सैलानियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं कुल्लू-मनाली, जीवन में जरूर करें एक बार यहां की यात्रा

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हिमाचल प्रदेश में सर्दियां बेहद कड़ाके की होती हैं और गर्मियों के मौसम में ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती। हिमाचल प्रदेश घूमने का सबसे अच्छा समय वसंत का है जो कि फरवरी से अप्रैल का होता है। यहां कल-कल बहती निर्मल नदियां तेज चाल से जब चलती बढ़ती हैं तो आपके जीवन की सारी थकान हर लेती हैं। झीलें को देखना किसी सम्मोहन से कम नहीं है। आप घंटों इनके किनारे बैठकर सुकून पा सकते हैं। इस अंचल से कई गाथाएं, दंतकथाएं जुड़ी हुई हैं। यहां आप नजारे देखें या फिर पर्वतारोहण करें या पैराग्लाइडिंग, स्कीइंग, बर्फ की चोटी पर स्केटिंग या फिर गोल्फ का आनंद लें हिमाचल प्रदेश बाहें फैलाकर आपका स्वागत करने के लिए तैयार है।

देवताओं की घाटी कुल्लू

यहां पर प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है, कहीं भी चले जाइए आपको निराश नहीं होना पड़ेगा यहां कुल्लू घाटी सुंदर ही नहीं विशाल भी है और इसकी चैड़ाई दो किलोमीटर और लंबाई करीब आठ किलोमीटर है। कुल्लू की घाटी को देवताओं की घाटी भी कहा जाता है। बसंत के मौसम में तो कुल्लू जैसी जगह लाजवाब हो जाती है। यहां जब गुलाबी और सफेद फूल चारों तरफ खिल जाते हैं तो जो दृश्य उपस्थित होता है उसको शब्दों में बयान करना कठिन है। ढलानों के ऊपर की तरफ जहां तक नजर दौड़ाएं चटख रोडेन्ड्रॉन फूलों के रंग सब तरफ बिखरे दिखाई देते हैं।

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जब शरद ऋतु आती है तो नीला आसमान एकदम निर्मल दिखाई देने लगता है। दिसंबर महीने तक हरियाली चली जाती है, लेकिन अब भी जंगल में लंबे-चौड़े देवदार के ऊंचे पेड़ सिर उठाए खड़े रहते हैं। सर्दियां आने पर पहाड़ों की ढलानों पर बर्फ की सफेद चादर-सी बिछ जाती है। इस बात में कोई शक नहीं कि यह पश्चिमी हिमालय की सबसे खुशनुमा जगह है। इसे मानव बस्तियों की अंतिम सीमा मानने के कारण इसे प्राचीन समय में कुलांतपीठ भी कहा जाता था। लेकिन महाकाव्यों-रामायण, महाभारत और विष्णु पुराण में इसका उल्लेख इसी नाम से हुआ है। पूजा स्थलों में काली बाड़ी मंदिर, रघुनाथ मंदिर, बिजली महादेरु मंदिर और वैष्णो देवी मंदिर अवश्य देखें।

मनोरम पर्यावरण स्थल ‘मनाली’

मानवालय यानी मनु के आवास से मनाली का नाम पड़ा है। मनु जो मानव जाति के पिता कहे जाते हैं, उन्होंने अपने आवास के लिए बहुत ही मनोरम पर्यावरण को चुना। मनाली अभी भी अपने आकर्षण और सुंदरता को उसी तरह से संजोए हुए है। यहां पर कोठी, वन विहार, तिब्बती बाजार और माल, रहाला प्रपात, रोहतांग दर्रा, सोलांग घाटी, हिडिंबा देवी मंदिर, जगतसुख मंदिर इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं।

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एक तरफ हिमालय की शान, नगर के बीचों बीच से गुजरती व्यास नदी, घास के मैदानों से सजी बलखाती हरी-भरी घाटी उसमें चरती बकरियां, सेबों के बागान और लोक गीत इसकी छटा में चार चांद लगा कर किसी भी पर्यटक का मन मोह लेते हैं। मनाली और उसके आसपास के हरे-भरे क्षेत्र एक तरफ तो आपको सैर करने की दावत देते हैं तो दूसरी ओर ऊंचे-ऊंचे पर्वत पर्वतारोहकों को चुनौती देते हुए लगते हैं। अगर आप अपनी छुट्टियों में और अधिक रोमांच के क्षण चाहते हैं, तो आपके लिए हेली स्कीइंग के सर्वाधिक लोकप्रिय स्थल भी यहां पर हैं।

नेचुरल वाटर फॉल : यह एक नेचुरल वाटर फॉल है जो नीचे कुल्लू घाटी से होकर बीस रिवर को मिलता है यह स्थल काबकी देवी जोगिनी का पवित्र स्थल है। और साथ ही महिला शक्ति का स्थल भी माना जाता है इसीलिए इस जगह को शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। इस वॉटर फॉल्स के नीचे रहकर आप पहाड़ों और वादियों को देखते हुए रोमांचक नजारे का मजा ले सकते हैं। इस झरने के नीचे मंदिर और उसके नीचे एक और मुख्य मंदिर बना हुआ है, जहां पर अनुष्ठानों का आयोजन होते रहता है।

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पिन वैली नेशनल पार्क: स्पिटी घाटी में स्थित इस नेशनल पार्क की स्थापना सन 1987 में हुई थी और 675 किलोमीटर स्क्वायर में फैला यह नेशनल पार्क हिमाचल प्रदेश का इकलौता ऐसा पार्क है जो ठंडे रेगिस्तान में फैला हुआ है। यह पार्क मुख्य रूप से लुप्त जंगली जीव हिम तेंदुए के संरक्षण के लिए जाना जाता है। लेकिन साथ ही साथ आप यहां पर बहुत सारे विलुप्त हो रहे जंगली जानवर देख सकते हैं। यह नेशनल पार्क 400 से भी ज्यादा वनस्पतियों और पौधों का गढ़ माना जाता है। और इस नेशनल पार्क में आप परमिशन लेकर ही जा सकते हैं।

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हिडिंबा देवी टेंपल : यह मंदिर मॉल रोड से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर की रचना सन 1553 में कुल्लू के राजा बहादुर सिंह ने करवाई थी और ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के पूर्ण निर्माण के बाद राजा ने सभी कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे। यह मंदिर एक ही पत्थर में गुफानुमा आकार में बना हुआ है। हर साल 14 मई को इस मंदिर में देवी का जन्मदिन मनाया जाता है जिसे देखने दूर दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं। और इसमें होने वाली पूजा को गौर पूजा के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर चारों तरफ से सिद्वार के जंगलों से घिरा हुआ है।

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हिमाचल प्रदेश में देखने लायक स्थान

शिमला : यह राजधानी शहर होने के साथ साथ पर्यटन के लिहाज से देश में सबसे मशहूर जगह है। ब्रिटिश काल से ही शिमला एक लोकप्रिय हिल स्टेशन रहा है। कई पुरानी इमारतें शानदार ब्रिटिश वास्तुकला की याद दिलाती हैं और आज के इस आधुनिक शहर को पुराना फ्लेवर भी देती हैं।

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रोहतांग दर्रा : मनाली से 150 किलोमीटर की दूरी पर और एक हजार एक सौ ग्यारह मीटर की उंचाई पर केलोंग हाईवे पर रोहतांग दर्रा स्थित है। यहां आकर आपको महसूस होगा कि दुनिया में सबसे ऊपर विशाल हिमालय पर्वत बांहे फैलाए आपका स्वागत कर रहा है।

चंबा : यह एक लुभावना हिमालयी शहर है और हिमाचल प्रदेश के कई आकर्षणों में से एक है। यह खूबसूरत शहर डलहौजी से 50 किलोमीटर की दूरी पर है। इस शहर में ना सिर्फ सुंदर लैंडस्केप बल्कि कुछ बेहतरीन नक्काशीदार मंदिर भी हैं।

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कांगड़ा : धार्मिक भाव रखने वाले लोगों के लिए यह पसंदीदा जगह है। कांगड़ा अपने प्राचीन मंदिरों के लिए मशहूर है। कांगड़ा के राजा भूमिचंद कटोच ने इस पवित्र स्थान को सपने में देखा था और फिर यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर देवी के ज्वलंत चेहरे को समर्पित है। जिसे ज्वालामुखी कहते हैं और यहां माँ की मूर्ति की बजाय लौ की पूजा की जाती है। यह मंदिर शांत पहाडय़िों से घिरा हुआ एक शक्ति-पीठ है क्योंकि यहाँ पर देवी सती की जीभ गिरी थी।

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कांगड़ा किला : कांगड़ा किले को नगर कोट के नाम से भी जाना जाता है। जिसका निर्माण काँगड़ा के मुख्य साही परिवार ने कराया था। ये कांगड़ा शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, ये किला जितना सुन्दर है उतना ही इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है। इस किले का वर्णन महाभारत में भी है साथ ही ये भी कहा गया है की जब महान यूनानी शासक अलेक्जेंडर ने यहाँ आक्रमण किया तब भी ये किला यहाँ मौजूद था। ये किला 4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है।

धर्मशाला

धर्मशाला को कांगड़ा घाटी का प्रवेश मार्ग माना जाता है। यहां की बर्फ से ढके धौलाधार पर्वत श्रृंखला इस जगह को बेहद खास बनाते हैं। धर्मशाला को दलाई लामा के पवित्र निवास स्थान के रूप में भी जाना जाता है। दलाई लामा और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के मुख्यालय का घर है जिसका पहले नाम भगतू था। फिर 2017 में शिमला के बाद धर्मशाला को हिमाचल प्रदेश की दूसरी राजधानी घोषित कर दिया गया था। यह छोटा सा शहर ऊपरी कंगड़ा घाटी में स्थित है और धौलाधर पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है। यह शंकुधारी जंगलों, बर्फ से ढकी हुई पहाडय़िों और आश्चर्यजनक मठों का शहर है।

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ग्यूतो मठ : 1474 में तिब्बत में वास्तविक ग्यूतो मठ की स्थापना की गई थी। अंतिम बौद्ध वंशावली से महान संत और विद्वान, त्सोंगखपा जो जेलं 6 वंशावली से थे, जिन्होंने विभिन्न मठों में तांत्रिक शिक्षा विकसित की थी। धर्मशाला का यह मठ उसी विद्वान द्वारा तांत्रिक साधना, अनुष्ठान और बौद्ध दर्शन के लिए शुरू किया गया।

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टी-गार्डेन : धर्मशाला के हरे-हरे चाय के बागान पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। आप यहाँ तस्वीरों के लिए रुककर कुछ समय के लिए आराम भी कर सकते हैं और घर ले जाने के लिए चाय भी खरीद सकते हैं।

मसरूर मंदिर : हिंदू धर्म के देवताओं शिव, विष्णु, देवी और सौर परंपराओं को समर्पित 8वीं शताब्दी का यह रॉक कट मंदिर नागारा शैली वास्तुकला से बना है जिसमें एक पवित्र सरोवर भी शामिल है। यह एक बुद्धिमान डिजाइन का प्रदर्शन है।

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धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम : समुद्र तल से 1,457 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह क्रिकेट स्टेडियम दुनिया का सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित एकलौता स्टेडियम है जिसकी पृष्ठभूमि में सुंदर बर्फ से ढकी हुई चोटियां स्टेडियम के रंगों में वलीन होती जान पड़ती हैं। इस स्टेडियम पर आने का कार्यक्रम प्रत्येक पर्यटक के यात्रा कार्यक्रम में जरूर होना चाहिए।

मनीकरन : यहां पुराना हिंदू मंदिर और गुरुद्वारा है। मनाली से 85 और कुल्लू से 45 किलोमीटर दूर पर्वती घाटी में पवित्र तीर्थस्थल है। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव की पत्नी पार्वती के कान का खोया हुआ झुमका यही से मिला था इसीलिए इस जगह का नाम मनीकरन पड़ा है। यहां पार्वती नदी के बर्फ की तरह ठंडे पानी के साथ-साथ गरम पानी का चश्मा है। हजारों लोग इस गरम पानी के चश्में में डुबकी लगाते हैं। यह चश्मा कई बीमारियों को दूर करने के लिए विख्यात है। यह पानी इतना गरम होता है कि दाल, चावल इसमें उबाले जा सकते हैं।

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डलहौजी : छह हज़ार से नौ हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित डलहौजी हिमालय की सुंदरता को बहुत अच्छी तरह प्रदर्शित करता है। हिमाचल प्रदेश में डलहौजी हिल स्टेशन धौलाधार पर्वत श्रृंखला की पश्चिमी सीमा पर पांच पहाड़ों के आसपास फैला है। डलहौजी स्कॉटिश और विक्टोरियन वास्तुकला की बहुतायत वाला एक असाधारण हिल स्टेशन है। मार्च से जून का महीना इस घाटी को घूमने आने का सबसे अच्छा समय है, लेकिन अगर कोई हिमालय की सर्दियों के मजे लेना चाहे तो दिसंबर से फरवरी के बीच भी आ सकता है। हरे भरे घास के मैदान, तेज बहते झरने, पहले कभी ना देखे ऐसे फूल और कुल मिलाकर सारा नज़ारा कुल्लू को धरती का स्वर्ग बनाता है।

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कैसे जाएं –

रेल मार्ग – नजदीक के रेलवे स्टेशन चंडीगढ़, शिमला, जोगिन्दर नगर है।

सडक़ मार्ग – टैक्सी और लग्जरी बसें दिल्ली, चंडीगढ और कुल्लू से चलती हैं। मनाली से वापस आने के लिए बस सेवा उपलब्ध है।

सैलानियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं कुल्लू-मनाली, जीवन में जरूर करें एक बार यहां की यात्रा

हवाई मार्ग – नजदीक का हवाई अड्डा भुंतर है। यह कुल्लू से 10 किलोमीटर और मनाली से 50 किलोमीटर दूर है।

कहां ठहरें- होटल मनाल्सू, एचपीटीडीसी लॉग हट्स में। सरवरी कुल्लू, होटल कैसला नग्गर, होटल कुंजम मनाली तथा मनाली हट्स, दूसरे होटलों के लिए मनाली स्थित पर्यटन केंद्र से संपर्क करें।

तापमान – गर्मियों में अधिकतम 26 डिग्री सेल्सियस, न्यूनतम 12 डिग्री सेल्सियस, सर्दियों में अधिकतम 12 डिग्री सेल्सियस, न्यूनतम शून्य से कम।