जानिए, बरेली में महाभारत काल के कौन से मन्दिर से नवाब शुजाउद्दौला को मिला था चश्मो-चिराग, जो अवध नवाब के नाम से हुआ मशहूर

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न्यूज टुडे नेटवर्क। बरेली के सात नाथों में एक महाभारत काल का धोपेश्वरनाथ मन्दिर अपने आप में अनुपम इतिहास समेटे हुए है। मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांचों पांडवों ने यहां पूजा अर्चना की थी। द्रौपदी के गुरू धूम्र ऋषि ने यहां हजारों साल तक तपस्या की थी। तभी से इस स्थान का नाम धोपेश्वरनाथ मन्दिर पड़ा। धूम्र ऋषि ने यहां अपने प्राण त्यागे थे। धूम्र ऋषि की समाधि के ऊपर ही माता द्रौपदी ने भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग स्थापित किया था। पहले इस मन्दिर का वर्णन धोमेश्वरनाथ के रूप में मिलता है। माता द्रौपदी ने जब इस मन्दिर में शिवलिंग की स्थापना की तभी से इस स्थान का नाम द्रौपदी से जुड़कर धोपेश्वरनाथ कहलाने लगा। कई श्रद्धालु प्रेम से इसे धोपा मन्दिर भी बोलते हैं।

मन्दिर की शक्ति की अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब सन 1700 में नवाब शुजाउद्दौला ने रूहेलखंड की रियासत पर अपना पूर्ण अधिकार कर लिया। तब नवाब अवध अपनी बेगम के साथ इस मन्दिर में दर्शन करने आए। नवाब की बेगम के कोई संतान नहीं थी, बेगम ने यहां संतान प्राप्ति की मन्नत मांगी थी। जिसके बाद अवध नवाब शुजाउद्दौला के घर में बेटे का जन्म हुआ जो बाद में नवाब आसिफउद्दौला के नाम से मशहूर हुए और अवध नवाब की गद्दी संभाली उनकी बेगम की मुराद यहीं पूरी हुयी थी। इसी खुशी में नवाब शुजाउद्दौला ने मन्दिर के परिसर में एक प्राचीन तालाब की सीढ़ियों को पक्का कराया। मन्दिर में भगवान शिव के अलावा कई अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं, जिनका प्राचीन काल से पूजन होता चला आ रहा है। मन्दिर में एक गोशाला भी एक अन्य प्राचीन मन्दिर भी यहां मान्यता का केन्द्र है जिसका निर्माण महाभारत काल के बाद हुआ है।

मंदिर की विशेषता

मंदिर में बना सरोवर श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें स्नान सरोवर में स्नान करने से चर्म रोग एलर्जी जैसे रोगों से मुक्ति मिलती है। नाथनगरी के सात नाथ मन्दिरों में धोपेश्वरनाथ मन्दिर का अपना अलग इतिहास है।

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