चुनावी सियासत: मुस्लिम बूथों पर भी इस बार भाजपा ने दिखाया कमाल, वोटों से हुयी मालामाल

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न्यूज टुडे नेटवर्क। चुनावी पिच पर भाजपा लगातार मजबूत होती जा रही है, इसके पीछे का सच आपको हम बरेली के एक बूथ से समझाने की कोशिश करते हैं। बरेली महानगर का बंडिया इलाका मुस्लिम बहुल है। पूर्व में जितने भी चुनाव होते थे, यहां भाजपा को वोटों के मामले में दहाई का आंकड़ा भी पकड़ना मुश्किल होता था। बंडिया के दो बूथों का इस बार का वोट गणित हैरान कर देने वाला है। मुस्लिम मतदाता बाहुलय एक बूथ पर भाजपा उम्मीदवार डॉ. उमेश गौतम सपा समर्थित उम्मीदवार डा. आईएस तोमर के 503 वोटों के मुकाबले 387 और दूसरे बूथ पर डा. तोमर को मिले 436 मतों की तुलना में 122 वोट हासिल करने में सफल हुए। बंडिया वार्ड तो एक उदाहरण है। भाजपा ने इस बार के मेयर चुनाव में ऐसे ही उन इलाकों में भी ठीक-ठाक सेंधमारी करके दिखाई है, जहां उसको न के बराबर वोट मिलते नजर आते थे। यह कमाल यूं ही नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे भाजपा सरकार, संगठन और कार्यकर्ताओं की पांच साल की साधना है।

अनुशासित संगठन और शानदार बूथ मैनेजमेंट का ही नतीजा है कि ज्यादातर वार्डों में खुलकर या चोरी छिपे बगावत होने के बाद भी पार्टी का वोट गणित नहीं गड़बड़ाया। बरेली मेयर चुनाव में पिछली बार के मुकाबले 4 फीसदी वोटिंग कम होने के बाद भी भाजपा ने न सिर्फ सबसे बड़ी जीत का रिकार्ड बनाया, बल्कि अपना वोट परसेंटेज भी बढ़ा लिया। कम मतदान होने के बावजूद भी भगवा बिग्रेड महानगर में अपनी ताकत का विस्तार करने में सफल हुई है। बड़ी बात ये है कि पांच साल के अंदर बरेली महानगर में भाजपा के वोटों में सात फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है। चुनाव आयोग के आंकड़ों में देखें तो 2017 के नगर निगम चुनाव में भाजपा के पक्ष में 40.73 फीसदी मतदाताओं ने वोटिंग की थी इस बार यह ग्राफ बढ़कर 47.54 फीसदी हो गया। वह भी तब, जबकि 2017 की तुलना में इस बार मतदान प्रतिशत कम हुआ है।

दरअसल, वोट बढ़ने के पीछे की कड़वी सच्चाई ये है कि नगर निगम चुनाव में भाजपा की रणनीति विरोधियों पर हर मामले में भारी पड़ी। भाजपा न सिर्फ अपने परंपरागत वोटरों को साधने में कामयाब रही, वहीं मुस्लिम और दलित वोटों में सेंधमारी में उसे अबकी बार सफलता हासिल हुई है। मेयर मुकाबले में भाजपा उम्मीदवार डॉ. उमेश गौतम की 56 हजार से अधिक वोटों की जीत का राज भी यही है कि उन्हें हर वर्ग तबके में कम- ज्यादा वोट जरूर मिले जिसमें मुस्लिम मतदाता भी शामिल हैं। पिछले चुनाव में मेयर के दंगल में भाजपा की जीत का अंतर महज 12 हजार के आसपास था अबकी बार यह अंतर साढ़े चार गुना से ऊपर जा पहुंचा है।

मिशन 2024 की तैयारी में जुटी भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव को पूर्वाभ्यास के रूप में लिया और जमीनी स्तर पर अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बरेली की ही बात करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य के अलावा कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद, प्रभारी मंत्री जयवीर सिंह, वन मंत्री अरुण कुमार, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सांसद संतोष गंगवार, चुनाव प्रभारी सलिल बिश्नोई की प्रचार योजना ने चुनावी रण में भाजपा उम्मीदवार का ऐसा रंग जमाया कि विरोध कहीं के नहीं रहे। बरेली नगर निगम मेयर चुनाव में भाजपा के मुकाबले सपा समर्थित उम्मीदवार डा. आईएस तोमर सहित 14 अन्य उम्मीदवार सामने थे। जानकर हैरानी होगी कि डा. तोमर को छोड़कर कांग्रेस, बसपा, एआईएमआईएम, आप सहित बाकी प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई।

बरेली नगर निगम चुनाव में इस बार 8 लाख 47 हजार 890 वोटरों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। जिसमें अकेली भाजपा के पक्ष में रिकार्ड 47.54 प्रतिशत वोटिंग हुई। पिछली बरेली के सदन में भाजपा के सिर्फ 38 पार्षद जीते थे, जिनकी संख्या अबकी बार 52 तक जा पहुंची है। इसके पीछे की कहानी ये भी है कि भाजपा बागियों की वजह से होने वाला डैमेज कंट्रोल करने में कामयाब रही और बाकी पार्टियां रणनीतिक तौर पर फ्लाप साबित हुईं।

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