बरेली: कृषि वैज्ञानिकों की ये सलाह नहीं मानी तो खेत में बन जाएगा आलू का कचालू

न्यूज टुडे नेटवर्क। पिछले 2 सप्ताह से मौसम में लगातार बदलाव हो रहा है। कभी ज्यादा ठंड तो कभी धूप। ऐसे में आलू को खेत में कचालू होने से बचाना है तो वैज्ञानिकों की सलाह अपनानी होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू की फसल में झुलसा रोग लगने का खतरा बढ़ गया है। आलू
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बरेली: कृषि वैज्ञानिकों की ये सलाह नहीं मानी तो खेत में बन जाएगा आलू का कचालू

न्‍यूज टुडे नेटवर्क। पिछले 2 सप्ताह से मौसम में लगातार बदलाव हो रहा है। कभी ज्‍यादा ठंड तो कभी धूप। ऐसे में आलू को खेत में कचालू होने से बचाना है तो वैज्ञानिकों की सलाह अपनानी होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू की फसल में झुलसा रोग लगने का खतरा बढ़ गया है। आलू पर फफूंदी लगने से फैलने वाले इस रोग को लेकर आईवीआरआई के वैज्ञानिक काफी चिंतित है।

पछेती झुलसा फाइटोप्‍थोरा इनफेसटेंस नामक फफूंदी से होता है जो विभिन्न कारकों से फैलता है। प्रतिकूल मौसम होने पर यह बड़े पैमाने पर फसल को नुकसान पहुंचाता है। 2 से 4 दिन के भीतर ही पूरी फसल पर आक्रमण कर सकता है।

इसलिए समय पर इससे बचाव जरूरी है। भारतीय पशु चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान के कृषि विकास केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. रंजीन सिंह ने बताया कि इस बार मंडल में आलू की फसल बहुत अच्छी चल रही है। अभी तक झुलसे रोग का प्रकोप बहुत कम देखा गया है लेकिन मौसम में अचानक बदलाव के कारण पछेती झुलसा रोग के लगने की पूरी संभावना है।

इसे देखते हुए आलू किसानों  को यह सलाह दी जाती है कि यदि उन्होंने अपने खेत में बचाव कारक के रूप में मैनकोजेब का छिड़काव नहीं किया है तो इस फफूंदीनाशक को 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आवश्यक पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दें जिन खेतों में 5% से अधिक रोग फैल चुका है उन खेतों के लिए साइमोक्‍सलीन नामक दवा का ढाई किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

यदि इस दवा का असर दिखाई न दे और अधिक तीव्रता से फैल जाए तो इसका दोबारा छिड़काव न करें। इसके स्‍थान पर कॉपर हाइड्रोक्‍साइड का तीन किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से स्प्रे करें।

हवा का रुख देखकर हल्का धुआं करें

वैज्ञानिक डॉ रंजीन सिंह का कहना है फसल को पाले से बचाने के लिए सिंचाई करें। रात्रि 12:00 बजे के बाद हवा की दिशा को देखते हुए हल्का धुआ करें। खेत में इस समय जड़ों में आलू बैठने लगा है। जड़ पर मिट्टी चढ़ाएं। माहू के नियंत्रण के लिए थायो मैथाक्‍एग्‍जाम नामक दवा का 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। फसल की नियमित निगरानी करते रहें। खेत में स्वयं व मजदूरों को बीड़ी, खैनी, तंबाकू का सेवन करने से रोकें। ऐसा करने से आलू में पीला वर्ण रोग फैलने की संभावना बढ़ जाती है। रोग और प्रकृति के प्रकोप से बचाव के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों व राज्य कृषि विभाग व कृषि के विशेषज्ञों से लगातार सलाह लेते रहें।