बरेली: फाइलेरिया अभियान का कल होगा अंतिम दिन, छूटे लोग खाएं दवा
इस बार डीईसी एवं अल्बेंडाजोल के साथ दी जा रही है आइवरमेक्टिन

न्यूज टुडे नेटवर्क। बरेली जिले में चल रहे फाइलेरिया उन्मूलन अभियान में इस बार डीईसी एवं अल्बेंडाजोल के साथ आइवरमेक्टिन भी दी जा रही है। फाइलेरिया में इस ट्रिपल ड्रग थेरेपी से परजीवियों के खात्मे पर 97 प्रतिशत ज्यादा प्रभाव पड़ता है। मंगलवार को इस अभियान का आखिरी दिन है। जिन लोगों ने अभी तक दवा नहीं खाई है, वे जरूर खाएं।

बरेली जिला अस्पताल के चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ त्रिभुवन प्रसाद ने बताया कि आइवरमेक्टिन एंटी-पैरासिटिक दवा है। यह परजीवियों के कारण होने वाले संक्रमणों के लिए इस्तेमाल की जाती है। ये परजीवी संक्रमण शरीर को कई नुकसान पहुंचाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है।

उन्होंने बताया कि आइवरमेक्टिन परजीवी को नष्ट कर देता है। यह कुछ समय के लिए वयस्क परजीवियों को लार्वा बनाने से भी रोकता है। इस प्रकार यह प्रभावी रूप से परजीवी संक्रमण का इलाज करता है। यह दवा परजीवी को मल के रास्ते निकाल देता है। इन परजीवियों के खत्म होते ही शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है।
वेक्टर बार्न डिसीज के नोडल डॉ आरपी मिश्रा के मुताबिक दो साल तक सिंगल डोज आईडीए (डीईसी, अल्बेंडाजोल, आइवरमेक्टिन) की खा ली जाए तो 97 प्रतिशत इस बीमारी को खत्म किया जा सकता है। फाइलेरिया की बीमारी के कारण हाथी पांव, स्तनों में सूजन, हाइड्रोसिल, घात रोग जैसी समस्याएं होती हैं। इस बीमारी के बढ़ने पर मरीज विकलांग हो सकता है। जनपद में 158 फाइलेरिया के मरीज हैं।
उन्होंने बताया कि शरीर में वूचेरिया पैरासाइट के प्रवेश करने पर शुरुआत में लक्षणों को समझकर अगर सही इलाज और सही सलाह दी जाए तो मरीज को गंभीर परिणामों से बचाया जा सकता है। फाइलेरिया क्यूलेक्स नामक मादा मच्छरों के काटने से फैलती है। यह मच्छर रात में ही काटते हैं और गंदे पानी में जन्म लेते हैं। मच्छर काटने पर एक धागे समान परजीवी शरीर में प्रवेश कर जाता है मगर इस बीमारी के लक्षण 8 से 10 वर्ष के उपरान्त ही दिखाई देते हैं।