आजम खां के सियासी सफर का अंत ना बन जाए आजम फैमिली की सजा, अब शायद ही लड़ पाएं कोई चुनाव

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न्यूज टुडे नेटवर्क। रामपुर की स्पेशल MP-MLA कोर्ट ने फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट मामले में आजम खान, उनकी पत्नी तंजीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला को 7-7 साल की सजा सुनाई है। अदालत के इस फैसले के बाद तीनों को हिरासत में ले लिया गया है। जिस रामपुर में कभी आजम खान की तूती बोलती थी, आज हालत यह है कि शायद इस सीट पर अब वह कभी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

रामपुर में आजम के सियासी रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह यहां से 10 बार विधायक और एक बार सांसद रहे। उनकी पत्नी तंजीन फातिमा भी विधायक बनीं और बेटा अब्दुल्ला आजम 2 बार विधायक रहा। रामपुर की सियासत से जुड़े सबसे बड़े परिवार के राजनीतिक अस्त की कहानी बेहद दिलचस्प है। इसमें पैसा है...पावर है। रसूख है और ध्वस्त होती राजनीति की बेबसी है।

कहानी शुरू होती है साल 1967 से...देश की आजादी के बाद यूपी में 3 चुनाव हो चुके थे। ये वो वक्त था जब रामपुर की सियासत में नवाब परिवार ने कदम रखा। शुरुआती दौर में रामपुर के नवाबों ने कांग्रेस को अपने लिए सबसे बेहतर समझा। 1967 में रामपुर के नवाब रहे जुल्फिकार अली खान उर्फ मिकी मियां संसद पहुंचे। मिकी मियां का रामपुर में ऐसा रसूख था कि वह जो बात कह देते उनके खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत तक नहीं करता था। यह दबदबा 8 साल कायम रहा। फिर, साल 1975 में आपातकाल घोषित होने के बाद रामपुर के हालात बदलने लगे।

शहर के एक साधारण से टाइपराइटर मुमताज का बेटा आजम खान जेल से छूटकर रामपुर लौटा। तेज-तर्रार आजम शहर लौटते ही पढ़ाई के लिए अलीगढ़ चले गए। वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी AMU में वकालत पढ़ने गए जहां पर उन्हें कॉलेज पॉलिटिक्स पसंद आने लगी। छात्रों के समर्थन की बदौलत आजम AMU में छात्र संघ के सेक्रेटरी बने। इस पद पर रहते हुए उन्होंने देश में लगी इमरजेंसी के खिलाफ सड़क पर प्रोटेस्ट किया। यह विरोध इतना तीखा था कि उन्हें 19 महीने जेल में डाल दिया गया।

साल 1977 में जेल से छूटते ही आजम ने जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा। उनके सामने थे कांग्रेस के मंजूर अली खान उर्फ शन्नू मियां। आजम ने कम उम्र में पहला चुनाव लड़ा। पैसे नहीं थे... इसलिए उतना दबदबा बना नहीं पाए। पहला विधानसभा चुनाव हार गए। लेकिन बुरी हार के बावजूद हौसला नहीं टूटा।

साल 1980 में रामपुर विधानसभा सीट पर फिर चुनाव हुआ। आजम ने फिर से किस्मत आजमाई। इस बार रिजल्ट उनके पक्ष में रहा। आजम रामपुर के किंग बन गए। पहली बार विधायकी हाथ लगी तो आजम ने फिर पलटकर नहीं देखा। साल-दर-साल वह यूपी में मुस्लिमों की सियासत का बड़ा चेहरा बनते गए।

यूपी में आजम के सियासी रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी राजनीति को देख सपा संस्थापक मुलायम भी उनके फैन बन गए थे। आजम रामपुर सीट से 10 बार विधायक और एक बार सांसद रहे। उनके बाद पत्नी तंजीन फातिमा भी विधायकी जीत गईं।

आजम सपा में रहते हुए मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी नेताओं में रहे। पार्टी में उनका वर्चस्व CM अखिलेश यादव के समय में भी कम नहीं हुआ। सपा सरकार के बड़े फैसलों में आजम की अहम भूमिका रहती थी। पार्टी में उनका कद मुलायम के सगे भाई शिवपाल जैसा हो गया था।

अखिलेश यादव अल्पसंख्यकों के मुद्दे से लेकर चुनावी गुणा-भाग में आजम की सलाह जरूर लेते थे। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन साल 2017 में यूपी की सियासत के साथ-साथ आजम की किस्मत ने भी करवट ले ली। योगी के सीएम बनते ही आजम पर संकट के बादल मंडराने लगे।

इसी साल आजम के बेटे अब्दुल्ला आजम स्वार सीट से सपा के विधायक चुने गए। लेकिन चुनाव जीतने के बाद उन पर उम्र के गलत दस्तावेज लगाने का आरोप लगा। अब्दुल्ला के सामने BSP से चुनाव लड़े नवाब काजिम अली खान ने नॉमिनेशन के समय अब्दुल्ला की उम्र 25 साल से कम होने का आरोप लगाया।

जांच बैठी तो पता चला कि अब्दुल्ला आजम ने फर्जी आयु प्रमाण पत्र पर चुनाव लड़ा था और वो नामांकन के समय 25 साल के नहीं थे। इसके बाद अब्दुल्ला का निर्वाचन रद्द कर दिया गया। उनकी सदस्यता भी चली गई। इस केस में अब्दुल्ला के साथ पिता आजम और मां तंजीन फातिमा को भी जेल जाना पड़ा।

साल 2019 के हेट स्पीच मामले में आजम की विधायकी रद्द कर दी गई। उन्हें 3 साल जेल की सजा हुई। यहीं पर उनके सियासी सफर का पहला ब्रेक लगा। अदालत से सजायाफ्ता होने की वजह से आजम न तो चुनाव लड़ सके ना ही वोट डालने जा पाए। सूबे की राजनीति से दूर रहते हुए रामपुर की पॉलिटिकल विरासत आजम के हाथों से फिसलती चली गई।

साल 2022 में रामपुर सदर सीट से लोकसभा उपचुनाव का ऐलान हुआ। जेल में रहते हुए आजम चुनाव नहीं लड़ सकते थे। इसलिए उन्होंने अपना सियासी उत्तराधिकारी आसिम रजा को बनाया। आसिम को उपचुनाव में उतारने से आजम खान के तमाम मजबूत सिपहसलार नाराज हो गए। कई सपा नेता उनका साथ छोड़कर भाजपा के गुट में चले गए। इसका नतीजा रहा कि आसिम चुनाव हार गए। बीजेपी के घनश्याम लोधी ने आसिम को 42 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया।

लोकसभा उपचुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में कमल खिलाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। विधानसभा चुनाव से पहले सीएम योगी से लेकर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक तक रामपुर में रैलियां करने पहुंचे। रामपुर की गद्दी पर जमने के लिए बीजेपी नेता सुरेश खन्ना, दानिश रजा अंसारी और जितिन प्रसाद तक ने जिले में अपने कैंप लगा दिए।

उधर, लोकसभा उपचुनाव में मिली हार के बावजूद सपा ने विधानसभा उपचुनाव में फिर से आसिम रजा पर दांव खेला। वोटिंग से पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने खुद रामपुर पहुंचकर आजम का हौसला बढ़ाया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

चुनाव हुए...बीजेपी से आकाश सक्सेना ने विधायक बनकर इतिहास रच दिया। 8 दिसंबर 2022 को आए नतीजों में आकाश ने सपा के आसिम रजा को 34 हजार से ज्यादा वोटों से पटकनी दे दी। आकाश रामपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतने वाले पहले हिंदू उम्मीदवार बन गए।

तमाम मुश्किलों के बावजूद साल 2022 में आजम खान के लिए एक राहत भरी खबर आई। स्वार विधानसभा सीट से अब्दुल्ला दोबारा जीत गए। लेकिन ये खुशी बहुत दिनों के लिए नहीं थी। इस बार भी अब्दुल्ला को सरकारी कामकाज में खलल डालने के एक मुकदमे में सजा हुई। उनकी सदस्यता भी रद्द हो गई।

मई 2023 में स्वार सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे आए तो भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) के शफीक अहमद अंसारी को जीत मिली। शफीक ने सपा की अनुराधा चौहान को 8,724 वोटों से हराया था। इस तरह आजम फैमिली के कब्जे से स्वार सीट भी निकल गई।

स्वार विधानसभा सीट गंवाने के बाद जब भी सुर्खियों में आजम का नाम आता, तो उसके साथ एक और शब्द जुड़ा रहता...जेल। एक के बाद एक केस में फंसते आजम की सियासी जमीन भी खिसकती जा रही थी। बीते 4 महीनों में 2 तारीखें ऐसी रहीं, जिसमें आजम सबसे ज्यादा याद किए गए। 15 जुलाई 2023 को  आजम खान को हेट स्पीच मामले में रामपुर की कोर्ट ने 2 साल की सजा सुनाई। अब 18 अक्टूबर को आजम के बेटे अब्दुल्ला के फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट मामले में आजम खान, पत्नी तंजीन फातिमा और अब्दुल्ला को 7-7 साल की सजा सुनाई गई है। अब्दुल्ला के 2 बर्थ सर्टिफिकेट मामले में आजम फैमिली को रामपुर की स्पेशल MP/MLA कोर्ट ने दोषी करार दिया है पहले हेट स्पीच में 2 साल की सजा और अब बेटे के फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट मामले में आजम को 7 साल की सजा मिल चुकी है। यानी वह अब साल 2030 तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। आजम ना तो 2024 के लोकसभा चुनाव में खड़े हो पाएंगे न ही 2027 का विधानसभा चुनाव ही लड़ सकेंगे। ऐसे में अगर साल 2031 तक सब कुछ ठीक रहा तो वह फिर चुनावी मैदान में उतरेंगे।

आजम खान 75 साल के हैं। साल 2031 में वह 82 साल के हो जाएंगे। तब तक यूपी की सियासत भी काफी हद तक बदल चुकी होगी। आजम को सांस से जुड़ी कई बीमारियां भी हैं, जिनका इलाज दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में चल रहा है। यानी कि इतने सालों बाद फिर से चुनाव लड़ना आजम के लिए कठिन होगा। लिहाजा...यह कह सकते हैं कि रामपुर कोर्ट का ये फैसला आजम खान के सियासी सफर का अंत हो सकता है।"  

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