रोबोट जैसी हरकतें करना भी हो सकता है सिजोफ्रेनिया के लक्षण, जानें बचाव व उपचार के तरीके

झाड़ फूंक या टोने टोटके से सही नहीं होते ऐसे मरीज

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न्यूज टुडे नेटवर्क। सिजोफ्रेनिया एक बीमारी का नाम है। इस बीमारी की चपेट में आने वाला व्यक्ति अजीब हरकतें करने लग जाता है। अक्सर ऐसे मामलों में जानकारी का अभाव होने की वजह से लोग झाड़ फूंक और तंत्र मंत्र का सहारा भी लेने लग जाते हैँ। ऐसे मामलों में चिकित्सकों की राय जरूर लेनी चाहिए। कुछ ऐसे ही मामलों के बारे में आज हम आपको बता रहे हैं, तो खबर को अंत तक जरूर पढ़ें।

बरेली की फरीदपुर की महिला शादी के कुछ ही दिनों बाद अचानक से रोबोट जैसी हरकतें करने लगी। वह घंटों धूप में खड़ी रहती थी। घरवालों को लगा कि गांव वालों ने उनकी बहू को नजर लगा दी तो झाड़-फूंक कराया। कुछ लोगों के समझाने पर जिला अस्पताल लाया गया तो मनोरोग विशेषज्ञ ने बताया कि उसे  कैटोटोनिया सिजोफ्रेनिया (रेयर) है। अब उसकी हालत काफी बेहतर है।

केस-2

बाजार में बेकार की चीजों को बटोर के रखने वाले गाजियाबाद के लड़के को जब पुलिस ने जिला अस्पताल में भर्ती कराया तो पता चला कि वह हेबेफ्रेनिया सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है। वह बीटेक का छात्र है और उसके माता-पिता उसकी तलाश कर रहे थे। अब वह स्वस्थ है और सफलतापूर्वक अच्छी कंपनी में कार्य कर रहा है। उसकी दवाई चल रही है।

केस-3

पुराने शहर निवासी 13 साल की बच्ची अक्सर छत पर चली जाती थी। उसे लगता था कि अंतरिक्ष से कोई उसे ले जाएगा। माता-पिता ने उसे डॉ. आशीष को दिखाया तो पता चला कि उसे पैरानॉइड सिजोफ्रेनिया है जो उसके माता-पिता को भी रहा है। बच्चा अब ठीक है।

जिला अस्पताल के मनोरोग चिकित्सक डॉ. आशीष कुमार ने बताया  कि देश की शहरी आबादी में प्रति हजार लोगों में 10 से 20 इसकी चपेट में हैं। जिला अस्पताल में हर महीने 80 से 90 मरीज आते हैं। इस बीमारी में पुरुष-महिला का अनुपात 2 अनुपात 1 है। 18 से 25 वर्ष आयु वर्ग के लोग सिजोफ्रेनिया के ज्यादा शिकार होते हैं। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 24 मई को विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है।

उन्होंने बताया कि यह बीमारी बढ़ने पर लोग आत्महत्या तक का प्रयास करते हैं। जल्द से जल्द इलाज मिलने पर काफी हद तक मरीज को ठीक किया जा सकता है। कुछ केस में मरीजों को रोज दवा खाने की जरूरत नहीं होती है। मरीज को एक इंजेक्शन देने पर वह काफी समय तक कार्य करता है। अगर घर या आसपास किसी के व्यवहार में बदलाव आ रहा हो तो घबराएं नहीं। अपना समय किसी झाड़-फूंक में व्यर्थ न करें। ऐसे में रोगी को सही-गलत का ज्ञान  न दें। बीमारी के ठीक होने के साथ ही व्यक्ति का व्यवहार फिर से सामान्य हो जाता है।

डॉ. आशीष के अनुसार बीमारी का कारण डोपामाइन न्यूरोट्रांसमीटर की अनियमितता होता  है। डोपामाइन को मोटीवेशन हॉर्मोन भी कहा जाता है। यह एक ऐसा हार्मोन है जो प्रेरणा और मानसिक एकाग्रता देता है। यह न्यूरो हार्मोन है जो ध्यान, एकाग्रता और प्रेरणा जैसी मानसिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होता है। यह बीमारी वर्किंग मेमोरी को प्रभावित करती है जैसे जो व्यक्ति जिस काम में माहिर है वह काम नहीं कर पाता है जिससे उसकी आय पर भी असर आता है। शोध के अनुसार हमारे आहार में मिलने वाले एंटी ऑक्सीडेंट से सिजोफ्रेनिया की होने की संभावना कम हो जाती है।

सिजोफ्रेनिया के लक्षण

रोगी अकेला रहने लगता है। वह अपनी जिम्मेदारियों तथा जरूरतों का ध्यान नहीं रख पाता। रोगी को कुछ ऐसी आवाजें सुनाई देना जो अन्य लोगों को न सुनाई दे। कुछ ऐसी वस्तुएँ, लोग या आकृतियाँ दिखाई देना जो औरों को न दिखाई दे या शरीर पर कुछ न होते हुए भी सरसराहट या दबाव महसूस होना।

रोगी को ऐसा विश्वास होने लगता है कि लोग उसके बारे में बातें करते हैं, उसके खिलाफ हो गए हैं या उसके खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हों। लोग उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं  या फिर उसका भगवान से कोई सम्बन्ध हो।

रोगी असामान्य रूप से अपने आप में हंसने, रोने या अप्रासंगिक बातें करने लगता है। वह कुछ अजीब हरकतें करने लगता है जिसके बारे में पूछने पर वह जवाब देने से कतराता है। समस्या बढ़ने पर रोगी का नहाना धोना बंद कर देना, गंदगी का अनुभव नहीं होना और लोगों पर शक करना।