रोशनी लेने गए थे अस्पताल आंखें दे बैठे, जानिए, डाक्टर की लापरवाही से क्या हुआ इन दो मरीजों का हाल
न्यूज टुडे नेटवर्क। जिला अस्पताल के नेत्र सर्जन की लापरवाही से दो लोगों के मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद आंख की रोशनी नहीं लौटी। लगातार अस्पताल जाने के बावजूद भी डॉक्टर के ध्यान न देने पर आंखें खराब होने का आरोप लगाया गया है।
आरोप है कि कई दिनों बाद जब चिकित्सक ने नेत्र परीक्षण किया तो हाथ खड़े कर दिए और बरेली के एक निजी अस्पताल रेफर कर दिया। पीड़ितों ने एसडीएम से कार्रवाई की मांग की है।
शहर से सटे पकड़िया नौगवां के निवासी जागन लाल सागर पुत्र बलदेव प्रसाद और सूरजपाल सागर पुत्र रूप राम सागर ने सदर एसडीएम से शिकायत की कि उन लोगों को आंखों से धुंधला दिखाई पड़ता था।
लेंस के नाम पर मांगे थे डेढ़ हजार रुपये
4 जुलाई को जिला अस्पताल के नेत्र विभाग में तैनात नेत्र सर्जन डॉ. एके चावला को दिखाया। परीक्षण के बाद डॉक्टर ने कहा कि उनकी एक आंखों में मोतियाबिंद है जो ऑपरेशन करके ठीक हो जाएगा। अगर 15-15 सौ रुपए देंगे तो बढ़िया लेंस डाल देंगे। पीड़ितों ने गरीब होने का वास्ता देकर एक-एक हजार रुपए में बात तय की।
8 जुलाई को खोली पट्टी
7 जुलाई को जिला अस्पताल में डॉ चावला से ऑपरेशन करवा लिया। 8 जुलाई को डॉक्टर ने पट्टी खोली तब एक आंख की रोशनी बिल्कुल नहीं थी। डॉक्टर ने दवाई लिख दी फिर 10 जुलाई को वे पुनः डॉक्टर के पास गए तब भी डॉक्टर ने उनकी नहीं सुनी और न ही आंख का परीक्षण किया। डॉक्टर बोले धीरे धीरे आंखों की रोशनी आ जाएगी।
बाद में कहा-रोशनी की जिम्मेदारी नहीं
परेशानी बढ़ती देखकर वे लोग 12 जुलाई को फिर से अस्पताल गए तो पता चला कि डॉक्टर अगले दिन आएंगे। लगातार 13 से 17 जुलाई तक अस्पताल गए लेकिन डॉक्टर नहीं मिले जिसके बाद 18 जुलाई को डॉक्टर अपने केबिन में मिले।
बिना आंख देखें उन्होंने 22 जुलाई को नेत्र परीक्षण करने के लिए अस्पताल बुलाया तब उन्होंने परीक्षण के बाद बताया कि आंख की रोशनी कि अब उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है।