अब हाकिम ही बताएं ! कब तक ट्रालियों पर सवार लोग गंवाते रहेंगे जान, क्यों नहीं जारी हो जाता कोई फरमान 

बरेली बहेड़ी मार्ग पर हादसे का वीडियो देखें, जिसमें छह लोगों की दर्दनाक मौते हो गयी थी (VIRAL VIDEO)

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न्यूज टुडे नेटवर्क। सड़क पर चलना अगर मौत को दावत देना है तो सिस्टम की आंख को यह देखना होगा कि क्या ठीक है और क्या गलत। रोजाना हो रहे एक्सीडेंट की रिपोर्ट हाकिमों के पास भी पहुंचती होगी। वेदना संवेदनाओं की चीखपुकार की आवाज भी सरकारी तंत्र को झकझोरती होगी लेकिन असर शायद होता ही नहीं है। दिनों दिन बढ़ते जा रहे सड़क हादसों का दंश दिन प्रतिदिन कई लोगों को मौत की नींद सुला रहा है। मगर हाकिम हैं कि जागते ही नहीं।

बीते दिन बरेली के बहेड़ी की सिरसा चौकी पर हुए हादसे में ट्रैक्टर ट्राली में सवार छह लोगों ने दर्दनाक तरीके से अपनी जान गंवा दी। भीषण हादसे में मृत सभी लोग ट्रैक्टर ट्राली में सवार थे। लेकिन सवाल यह है कि क्या ट्राली को परिवहन का वाजिब साधन माना जा सकता है। जब परिवहन विभाग डग्गामार वाहनों पर कार्रवाई करता है तो आखिर ट्राली में सवार होकर इतने लोग सवार होकर हाईवे पर निकले, तब परिवहन विभाग क्या कर रहा था।

हालांकि, हादसे में मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजे का ऐलान भी हो गया है। लेकिन इसके बाद इस तरह के हादसे नहीं होंगे इसकी क्या गारंटी है। दरअसल, ट्रैक्टर ट्राली खेती किसानी के कामों के लिए बनायी गयी है परिवहन के लिए नहीं। ना ही ट्राली का परिवहन विभाग में कोई रजिस्ट्रेशन होता है। फिर भी सड़कों पर सवारियों से भरी ट्रालियां आए दिन दिख ही जाती हैं।

सवाल यह भी है कि क्या इस तरह के हादसों में बीमा कंपनियां क्लेम देंगी। आखिर लोग ट्रैक्टर में सफर करते ही क्यों हैं। यदि यह मजबूरी है तो क्या यह मान लिया जाये कि आजादी के 75 बरस बाद भी आज तक गांव देहात तक सरकारी परिवहन की व्यवस्था नहीं पहुंच पायी है। हालांकि यह सच भी है कि अभी भी कई ग्रामीण इलाकों में आवागमन के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हैं।

धार्मिक जमावड़ों में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों के लोग ट्राली में सफर करना बेहतर समझते हैं। उनके लिए शायद यह मजबूरी भरा फैसला हो लेकिन सरकारी तंत्र के लिए इस सफर को मान्यता देना मजबूरी नहीं हो सकता। यदि तमाम नियम कायदे कानूनों के बाद भी परिवहन विभाग इस तरह के खतरनाक परिवहन को इजाजत देता है तो निश्चित रूप से यह लापरवाही की श्रेणी में ही गिना जायेगा।

इसके इतर राजनैतिक रैलियों और चुनावी जनसभाओं आदि में भी बड़ी संख्या में ट्रालियों का इस्तेमाल किया जाता है। यहां भी जिम्मेदारों की फौज सब कुछ देखकर भी अनजान बनी रहती है। ऐसे में इस तरह के हादसों से आमजनों को रूबरू होते रहना पड़ेगा। हां यदि नियम कायदे कानूनों का पालन कराने वाले हाकिम इस पर नजर डालें तो शायद ऐसे हादसों पर लगाम कसी जा सके। 

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