मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो...! वाली लीला के लिए बरेली के बाजार में स्पेशल मटकियां हैं तैयार...

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न्यूज टुडे नेटवर्क। जन्माष्टमी के त्यौहार की धूम अब चारों ओर छा गयी है। कोविड संकट के दो साल बाद अब सब कुछ खुलने के बाद पूरी छूट के साथ इस बार जन्माष्टमी का यह पहला त्यौहार मनाया जा रहा है। बाजार गुलजार हो गए हैं, दुकानों पर खरीददारों की भीड़ उमड़ रही है। जन्माष्टमी का पर्व हर्षोल्लास का पर्व है इसलिए सभी अपने अपने तरीके से इसे मनाते हैं। ठाकुर जी के स्वागत के लिए लोग तरह तरह की तैयारियां करते हैं। घरों में बहुरंगी संजावटें की जाती हैं, तो वहीं एक से बढ़कर एक पकवान भी बनाए जाते हैं।

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कान्हा को माखन चोर भी कहा जाता है, इसीलिए जन्माष्टमी के मौके पर ठाकुर जी की माखन लीला का भी अलग महत्व है। माखन लीला में काम आने वाली कान्हा जी की माखन मटकी भी बाजार में उपलब्ध है। हालांकि साधारण मटकी मिट्टी से बनी होती है, लेकिन बाजार में इस बार फैंसी मटकियों का खूब क्रेज है। मटकी की गोटे और लैस से सजाकर बेहतरीन चमकीली सजावट के साथ बाजार में ये मटकियां बिक रही हैं।

कन्हैया की बाल माखन लीला के लिए मटकी विशेष तौर पर मंगवायी जाती है। कन्हैया की बाल लीलाओं में से एक प्रमुख माखन लीला का वर्णन तो पुराणों में भी किया गया है। भगवान कृष्ण को बाल्यावस्था में माखन विशेष प्रिय था। इसके लिए कई बार उंचे स्थान पर रखी मटकी को फोड़कर कन्हैया लाल माखन खुद भी खाया करते थे और अपने बाल सखाओं को भी खिलाया करते थे। इसीलिए आज भी भगवान की माखन लीला को लोग बेहद पसन्द करते हैं। इसीलिए जन्माष्टमी के मौके पर कई स्थानों पर मटकी फोड़ कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। जिसके अनुसार एक उंचे स्थान पर दही मक्खन मिश्री दूध आदि को एक मटकी में भरकर लटका दिया जाता है। फिर कन्हैया और उनके सखाओं के रूप में सजे बच्चे व युवा एक के उपर एक चढ़कर अपने अपने प्रयासों से मटकी को फोड़ते हैं और वही मटकी का प्रसाद कान्हा की माखन लीला का भोग माना जाता है।

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