जानिए, 500 साल पुराने इस मन्दिर का इतिहास, जहां आज भी मौजूद हैं मुगलकालीन शिल्पकला के नमूने

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न्यूज टुडे नेटवर्क। भगवान शिव के प्रिय सावन माह में हजारों शिवभक्त भोलेनाथ के मन्दिरों में जाकर अपने आराध्य के दर्शन करते हैं। इस मौके पर आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे प्राचीन शिव मन्दिर के बारे में जहां भगवान भोलेनाथ खुद जमीन से प्रकट हुए। बाद में इस शिवलिंग को विधिवत उसी स्थान पर प्रतिष्ठित कर दिया गया। हम बात कर रहे हैं बरेली से सटे पीलीभीत जिले में स्थित प्राचीन श्री गौरीशंकर मन्दिर की। यह मन्दिर पीलीभीत ही नहीं आसपास के जिलों में भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। सावन और शिवरात्रि के मौके पर इस प्राचीन मन्दिर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु भोले के दर्शनों को आते हैं। श्री गौरीं शंकर मन्दिर के दिवंगत महंत पंडित शिव शंकर शर्मा के वंशजों को करीब 500 सालों पहले बंजारे द्वारिकादास ने यह शिवलिंग सौंपा था। हालांकि आर्कियोलाजिकल डिपार्टमेंट के सर्वे में यह शिवलिंग दो हजार साल पुराना बताया गया है।

बंजारे द्वारिकादास को खेतों में खुदाई के दौरान यह दुर्लभ शिवलिंग मिला था। प्राचीन कथा के अनुसार खेतों में खुदाई करते समय बंजारे द्वारिकादास की कुदाल अचानक किसी पत्थर से टकरायी। खेत से पत्थर निकालने की जिद में द्वारिकादास बंजारे ने पत्थर पर कुदाल से कई वार किए लेकिन पत्थर टस से मस नहीं हुआ। तब बंजारे ने देखा कि खेत की जमीन में दबे पत्थर से खून निकल रहा है। जिसे देखकर वह घबरा गया और अपने साथियों को यह बात बतायी। तब इस शिवलिंग को निकालकर वहीं उसकी पूजा अर्चना आरंभ की गयी।

बाद में उसी स्थान पर एक शिव मन्दिर का निर्माण किया गया। रूहेला सरदार हाफिज रहमत खां ने इस मन्दिर के मुख्य दरवाजों का निर्माण कराया। दरवाजों पर मुगलकालीन शिल्पकला का नमूना आज भी देखने को मिलता है।

इस मंदिर में लगा शिवलिंग अपने आप में बहुत अनूठा है. इसलिए इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं के मन में विशेष आस्था है. सावन में मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है. साथ ही बाबा गौरीशंकर की मनमोहक श्रृंगार आरती की जाती है. जिसके दर्शन पाने के लिए मंदिर में हज़ारों श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है. सावन के महीने में आसपास के तमाम श्रद्धालु अलग-अलग गंगा घाटों से जल ला कर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. मंदिर के महंत बताते हैं कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग आज से करीब 500 साल पहले यहां रहने वाले बंजारों को मिला था. उस समय यह इलाका एक जंगल के रूप में था. बंजारों को खेती के दौरान एक शिवलिंग मिला. जिसके बाद उसी स्थान पर शिवलिंग स्थापित कर मंदिर बना दिया गया.

इस सावन हर सोमवार होगी विशेष श्रंगार आरती
सावन के पवित्र माह में हर सोमवार एक अनूठे तरह से बाबा का श्रंगार कर उनकी आरती की जाएगी. हर सोमवार को एक विशेष थीम के आधार पर बाबा के दीवानों द्वारा उनका श्रंगार किया जाएगा. जिसके बाद उसी स्वरूप में उनकी आरती की जाएगी. आरती का समय शाम 7.30 बजे है.सभी श्रद्धालु आरती में शामिल होकर मंदिर की रौनक बढ़ाएंगे.

अपने आप में अनूठा है मंदिर का शिवलिंग
मंदिर का शिवलिंग अपने आप में बहुत ही अनूठा है. एक ही शिवलिंग में शिव पार्वती दोनों विराजमान हैं. शिवलिंग के इस विशेष स्वरूप के चलते ही इस मंदिर का नाम गौरीशंकर पड़ा. गौरीशंकर स्वरूप के कारण ही लोगों में मंदिर की मान्यता है.

दो साल बाद कांवड़िए करेंगे जलाभिषेक
कोरोना महामारी अपने साथ कई पाबंदिया भी लेकर आई थी.इसी कारण से बीते दो सालों से सरकार ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगा रखी थी. लेकिन इस साल सरकार ने कावड़ यात्रा से रोक हटा दी है. ऐसे में अनुमान है कि इस सावन में मंदिर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में शिव भक्त बाबा का जलाभिषेक करेंगे.

रूहेला सरदार ने बनाया है मंदिर का भव्य द्वार
हाफिज़ रहमत खां ने लगभग 18वीं शताब्दी में बंजारों से जंग जीत कर पीलीभीत शहर बसाया. जिसके बाद दिल्ली की जामा मस्जिद की तर्ज पर जामा मस्जिद बनाई गई. उसी दौरान रुहेला सरदार ने जनता की आस्था को देखते हुए मंदिर के भव्य द्वार का निर्माण कराया था. यह भव्यद्वार आज भी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बना हुआ है.

ऐसे पहुंचें गौरीशंकर मंदिर
अगर आप पिथौरागढ़, टनकपुर या खटीमा से रहे हैं तो आप नकटादाना चौराहे से खकरा चौकी होते हुए मंदिर जा सकते हैं. शाहजहांपुर, बरेली, लखीमपुर से आने वाले लोग नौगवां चौराहे से बाजार के रास्ते गौरीशंकर मंदिर पहुंच सकते हैं.

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