जानिए, रावण की छोटी सी भूल के कारण कहां भारत में स्थापित हो गया लंका जाने वाला अद्भुत शिवलिंग (VIDEO)
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न्यूज टुडे नेटवर्क। सावन माह में भगवान भोलेनाथ के भक्त पूरे देश के विभिन्न अलग अलग स्थानों पर स्थित मन्दिरों में जाकर भोले के दर्शन पूजन करते हैं। देश में विभिन्न स्थानों पर भगवान शिव के कई प्राचीन और ऐतिहासिक मन्दिर स्थित हैं जिनका पुराणों में भी वर्णन किया गया है। कई धार्मिक तीर्थ स्थलों पर ऐसी दैवीय घटनाएं हुयीं जिनके कारण ये सभी स्थान आध्यात्मिक आस्था का केन्द्र बन गए। इसी कड़ी में हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे अद्भुत शिवलिंग की जो लंकापति रावण की एक छोटी सी भूल के कारण भारत में स्थापित हो गया। अगर लंकापति रावण यह छोटी सी भूल न करता तो आज यह दिव्य शिवलिंग भारत से बाहर श्री लंका में स्थापित होता। या यूं कहें कि खुद भगवान भोलेनाथ रावण के साथ लंका नहीं जाना चाहते थे, तब उन्होंने अपनी योगमाया से रावण को शिवलिंग जमीन पर रखने को विवश कर दिया। हम बात कर रहे हैं गोला गोकर्णनाथ मन्दिर की जोकि लखीमपुर खीरी में स्थित है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ को रावण ने तपस्या के बल पर प्रसन्न किया था। भोलेनाथ ने रावण से वरदान मांगने को कहा- जिस पर रावण ने खुद भगवान भोलेनाथ से साथ चलने को कहा। चूंकि भोलेनाथ रावण को वरदान मांगने को कह चुके थे, इसलिए वे रावण की बात नहीं टाल सके। भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में लंकापति रावण के साथ चलने को तैयार हो गए। तब भगवान भोलेनाथ का एक अंश शिवलिंग के रूप में प्रकट हुआ। भोलेनाथ ने रावण से कहा, वह इस शिवलिंग को सीधे लंका ले जाए। यदि रास्ते में कहीं भी उसने यह शिवलिंग रखा, यह शिवलिंग वहीं स्थापित हो जायेगा। यहीं से गोला गोकर्णनाथ तीर्थ की स्थापना हुयी। रावण जब भोलेनाथ के दिव्य शिवलिंग को आकाश मार्ग से लंका ले जाने लगे। तभी भगवान की योगमाया के कारण रावण को लघु शंका लगी। तब रावण ने धरती पर उतरकर लघु शंका करने की सोची।
रावण घने वन में उतरकर लघु शंका को जाने लगे, लेकिन उसने सोचा कि यदि शिवलिंग को जहां रखा ये तो वहीं स्थापित हो जायेगा। यह सोचकर रावण बेचैन हो उठा, तभी घने जंगल में एक गड़रिया रावण को आता दिखायी दिया। रावण ने गड़रिये को शिवलिंग पकड़ने को कहा और खुद लघु शंका करने चला गया। लेकिन वह गड़रिया शिवलिंग का भार नहीं सह सका और शिवलिंग को धरती पर रख दिया। जिस कारण वह शिवलिंग वहीं वन में स्थापित हो गया। बाद में इसी स्थान को गोला गोकर्णनाथ तीर्थ के नाम से जाना गया।
पौराणिक कथा
त्रेता युग में राम और रावण के बीच होने वाले युद्ध के समय रावण ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था जिससे भगवान शिव खुश होकर रावण को वरदान दे दें और वे युद्ध जीत जाएं। शिवजी ने शिवलिंग का आकार लेकर रावण को लंका में शिवलिंग स्थापित करने का संकेट दिया था। इसके लिए भगवान शिव ने एक शर्त भी रखी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि शिवलिंग को बीच में कहीं पर भी नीचे नहीं रखना है।
लेकिन रास्ते में रावण को पेशाब लगी तो उसने एक गड़रिये को शिवलिंग पकड़ने को कहा। कहते हैं कि जब रावण ने शिवलिंग एक गड़रिये को पकड़ने को दिया था तो भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ा दिया था और यही वजह थी कि गड़रिये वजन को सहन नहीं कर सका और उसने शिवलिंग को नीचे रख दिया। रावण को भगवान शिव की चालांकी समझ में आ गई और वह बहुत क्रोधित हुआ। रावण समझ गया कि शिवजी लंका नहीं जाना चाहते ताकि राम युद्ध जीत सकें। क्रोधित रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया। गड़रिये को मारने के लिए रावण ने उसका पीछा किया। अपनी जान बचाने के लिए भागते समय वह एक कुएं में गिर कर मर गया।