बरेली: फाइलेरिया से बचाव को 15 जनवरी से चलेगा दस दिवसीय दवा वितरण अभियान

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न्‍यूज टुडे नेटवर्क। फाइलेरिया ग्रस्त रोगियों की रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता से बचाव के लिए एम‌ओआईसी एवं बीसीपीएम को मास्टर ट्रेनिंग दी गई। इस ट्रेनिंग का आयोजन मगंलवार को बरेली के एक होटल में किया गया।

बरेली के एसीएमओ ‌(वीबीडी) डॉ. आरपी मिश्रा ने बताया कि 2030 तक  भारत से फाइलेरिया का उन्मूलन करना है। 2 साल तक एक सिंगल डोज आईडीए की खाई जाए तो 96 प्रतिशत इस बीमारी को खत्म किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि 15 जनवरी से 10 दिनों तक आइवरमेटीन, डीईसी और एल्बेंडाजोल की दवा सभी को खिलाई जाएगी। यह दवा आशा एक दिन में 25 घरों या 125 लोगों को अपने सामने खिलाएंगी। अभी तक जनपद में फाइलेरिया उन्मूलन के लिए दो दवा दी जा रही थी लेकिन इस बार से इनमें आइवरमेटीन दवा को जोड़ा गया है। जिससे फाइलेरिया के साथ-साथ स्क्रेबिज बीमारी भी दूर होगी।

डब्ल्यूएचओ के जोनल कार्डिनेटर डॉ. नित्यानंद ने बताया कि फाइलेरिया की बीमारी के कारण हाथी पांव, स्तनों में सूजन, हाइड्रोसिल, घात रोग जैसी समस्याएं होती हैं। इस बीमारी बढ़ने पर मरीज विकलांग हो सकता है। डॉ नित्यानंद ने बताया कि अब तक की जानकारी के अनुसार यूपी में 88 हजार फाइलेरिया के मरीज हैं। जनपद के एमओआईसी और बीसीपीएम को बताया कि शरीर में वूचेरिया पैरासाइट के प्रवेश करने पर शुरुआत में लक्षणों को समझकर अगर मरीज को सही इलाज और सही सलाह दी जाए तो मरीज को इसके गंभीर परिणामों से बचाया जा सकता है। फाइलेरिया क्यूलेक्स नामक मादा मच्छरों के काटने से फैलता है यह मच्छर रात में ही काटते हैं और गंदे पानी में जन्म लेते हैं। मच्छर काटने पर  एक धागे समान परजीवी हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। मगर इस बीमारी के लक्षण 8 से 10 वर्ष के उपरान्त ही दिखाई देते हैं।

फाइलेरिया से बचाव

फाइलेरिया से बचाव के लिए सबसे आसान तरीका है कि सरकार की तरफ से दी जाने वाली आईडीए दवा का सेवन किया जाए। जोकि समय-समय पर अभियान के दौरान दी जाती हैं। इस दवा का सेवन सभी के लिए फायदेमंद होता है लेकिन दवा खाली पेट नहीं खानी चाहिए। इसका सेवन गर्भवती और 2 साल से छोटे बच्चों को नहीं कराना चाहिए।

रात में खून की जाँच अवश्य करवाएं तभी तो सब फाइलेरिया से मुक्ति पाएं - रात के समय रक्त की बूंद लेकर उसका परीक्षण ही एक मात्र ऐसा निश्चित उपाय है। जिससे इस बात पता चल सकता है कि किसी व्यक्ति में हाथी पांव रोग के कीटाणु है अथवा नहीं। यह इसलिए क्योंकि रात को ही फाइलेरिया कीटाणु रक्त-परिधि में दिखाई पड़ते हैं। जिस व्यक्ति में ये कीटाणु पाए जाते हैं, उनमें साधारणतः रोग के लक्षण व चिन्ह प्रकट रूप में दिखाई नहीं देते। उन्हें अपने रोग का अहसास नहीं होता। ऐसे व्यक्ति इस रोग के अन्य लोगों में फैलाने का श्रोत बनते हैं। यदि इन व्यक्तियों का समय पर उपचार कर दिया जाता है तो इसे न केवल इस रोग की रोकथाम होगी बल्कि हाथी पांव रोग को फैलने से भी रोका जा सकता है। इस ट्रेनिंग में डब्ल्यूएचओ के एसएमओ डॉ. पीवी कौशिक एसीएमओ अखिलेश्वर सिंह, रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज की डीएमएस डॉ. मेधावी, एसआरएम मेडिकल कॉलेज के डॉ. आरिफ मौजूद रहे।

फाइलेरिया के मरीज ध्यान दें--

पाथ  संस्था के आर‌एनटीडी नोडल ऑफिसर डॉ. मानककदंन नितिन गोपी ने बताया कि एम‌ओआईसी और बीसीपीएम को कार्यशाला में आए मरीज 3 मरीजों के साथ लाइव डेमोंसट्रेशन देकर बताया कि मरीज के पैर की सूजन देखकर हाथी पांव की विभिन्न स्टेज को कैसे पता करें और पैर की साफ सफाई कैसे करें। 

- अपने पैर को नान सेंटिड साबुन व् गुनगुने पानी से रोज धोये।

- सूती कपड़े  से हल्के हल्के अपने पैर को पोंछिये।

- पैर की सफाई करते समय ब्रश का प्रयोग न करें, इससे पैरों पर घाव हो सकते हैं।

- घाव को खुजलाना नहीं चाहिए, प्रतिदिन डॉक्टरों की बताई गई दवा लगानी चाहिए।

फाइलेरिया के लक्षण--

बार-बार बुखार आना

अंगों, जननांगों और स्तनों में सूजन,हाइड्रोसील,त्वचा का एक्सफोलिएट होना

हाथों और पैरों में सूजन,

 कुछ व्यक्तियों में इसके लक्षण नहीं भी दिखाई देते हैं।

फायरिया से बचने के उपाय--

- मच्छरों से बचने के लिए शाम के वक्त बाहर या घर में पूरे कपड़े पहनें।

- सोने से पहले मच्छरदानी लगाएं।

- घर में मच्छर भगाने वाली लिक्विड दवाओं का उपयोग करें।

- बीच-बीच में बॉडी चेकअप के लिए भी डॉक्टर के पास जरूर जाएं।

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