देहरादून- उत्तराखंड की इस महिला मेजर को मिलेगा ये अनोखा अवार्ड, इसलिए बनी पहली भारतीय

भारतीय सेना में उत्तराखंड के जवानों के पराक्रम और बलिदान इसे सैन्य भूमि बनाता है, यही कारण है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड को सैन्य धाम भी कहा था। माना जाता है कि आज भी उत्तराखंड के हर परिवार से एक शख्स सेना में है। इसके साथ ही उत्तराखंड मातृशक्ति के लिए
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देहरादून- उत्तराखंड की इस महिला मेजर को मिलेगा ये अनोखा अवार्ड, इसलिए बनी पहली भारतीय

भारतीय सेना में उत्तराखंड के जवानों के पराक्रम और बलिदान इसे सैन्य भूमि बनाता है, यही कारण है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड को सैन्य धाम भी कहा था। माना जाता है कि आज भी उत्तराखंड के हर परिवार से एक शख्स सेना में है। इसके साथ ही उत्तराखंड मातृशक्ति के लिए भी जाना जाता है। सैन्य भूमि की मातृशक्ति ने अब शांति सेना में संसुक्त राष्ट्र का एक प्रतिष्ठित अवॉर्ड अपने नाम किया है। देवभूमी की मेजर सुमन गवानी को संयुक्त राष्ट्र के जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड 2019 के लिए चुना गया है। यह सम्मान पाने वाली वह पहली भारतीय हैं।

देहरादून- उत्तराखंड की इस महिला मेजर को मिलेगा ये अनोखा अवार्ड, इसलिए बनी पहली भारतीय

ऑनलाइन मिलेगा पुरस्कार

जब से आर्मी में बेटियों के लिए राह खोली है, तब से जल, थल और नभ तीनों सेनाओं में पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की बेटियां अपना परचम लहरा रही हैं। ऐसी ही एक बेटी है मेजर सुमन गवानी, जिन्हें शांति सेना में अपने विशेष प्रदर्शन के चलते संयुक्त राष्ट्र के प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है। मूल रूप से टिहरी के पोखर गांव की रहने वाली मेजर सुमन गवानी देश की पहली महिला हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला है। मेजर सुमन गवानी को संयुक्त राष्ट्र के जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड-2019 के लिए चुना गया है। लॉकडाउन के चलते उन्हें यह सम्मान आगामी 29 मई को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेंस ऑनलाइन कार्यक्रम में देंगे।

क्या कहना है मेजर सुमन के पिता का

मेजर सुमन संयुक्त राष्ट्र के मिशन पर भारतीय सेना की ओर से दक्षिण सूडान में एक सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में तैनात रही हैं। जहां उन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। यह पहली बार है कि यह प्रतिष्ठित पुरस्कार किसी भारतीय शांतिदूत को मिल रहा है। सुमन के पिता प्रेम सिंह गवानी ने एक इंटव्यू में बताया कि उनकी बेटी की प्रारंभिक शिक्षा उत्तरकाशी और टिहरी में हुई है। फिर सुमन ने देहरादून की डीएवी कॉलेज से बीएड किया।

देहरादून- उत्तराखंड की इस महिला मेजर को मिलेगा ये अनोखा अवार्ड, इसलिए बनी पहली भारतीय

लेकिन शिक्षक बनने के बजाय उन्होंने सेना में जाकर देश सेवा करने की ठानी और सेना में अफ़सर बनने के लिए तैयारी शुरु की। उनका भारतीय सेना में चयन भी हो गहया और 2010 में वह भारतीय सेना में प्रशिक्षण पूरा कर अफ़सर बनी। मेजर सुमन की मां एक ग्रहणी है और पिता अग्निशमन विभाग से सेवानिवृत्त हैं सुमन का छोटा भाई वायु सेना में और बहन थल सेना में अफसर है।