''हल्द्वानी - डीपीएस के स्टूडेंटस ने जाना महाराष्ट्र की संस्कृति और विरासत, आप भी जानिए स्टाल पर और क्या क्या था''

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हल्द्वानी - ( जिया सती ) दिल्ली पब्लिक स्कूल , हल्द्वानी  में 26 अप्रैल, 2025 को वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव “धरोहर” का आयोजन बड़े धूमधाम से किया गया। हर वर्ष की तरह इस बार भी कार्यक्रम ने अपनी रंगारंग प्रस्तुतियों और समृद्ध विषयवस्तु के जरिए दर्शकों का मन मोह लिया। इस बार उत्सव की थीम महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत रही, जिसमें राज्य की परंपराओं, लोक जीवन और कलात्मक विविधताओं को खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया।

"धरोहर" सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जो भारत की विविध संस्कृतियों को एकत्र कर, उनकी एकता और समरसता को दर्शाता है। यह आयोजन विशेष रूप से इस बात को उजागर करता है कि भारत की ताकत उसकी सांस्कृतिक विविधता में ही निहित है। देश के विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक धरोहरों को जानने और समझने का इससे बेहतर अवसर शायद ही कोई और हो।

इस वर्ष की टैगलाइन “महाराष्ट्र – असीमित” रखी गई थी, जो इस बात को दर्शाती है कि यह राज्य न केवल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, बल्कि आधुनिक सोच और ऐतिहासिक गहराई से भी परिपूर्ण है। कार्यक्रम में महाराष्ट्र के विविध पक्षों को समाहित किया गया – लोकनृत्य, कला, वेशभूषा और खान-पान के माध्यम से।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में एम.पी.जी. इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य श्री डी.के. पंत जी उपस्थित रहे। उनकी गरिमामयी उपस्थिति ने कार्यक्रम को विशेष सम्मान प्रदान किया। उन्होंने छात्रों की प्रस्तुतियों की सराहना की और इस तरह के आयोजनों को विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण बताया।

कार्यक्रम की शुरुआत गणपति वंदना से हुई, जिसके बाद पारंपरिक लावणी, दही हांडी नृत्य और गणपति विसर्जन जैसे शानदार नृत्य प्रस्तुत किए गए। इसके साथ-साथ स्टालों के माध्यम से महाराष्ट्र की वारली चित्रकला, पारंपरिक मराठी वेशभूषा, स्वादिष्ट व्यंजन और हस्तशिल्प का प्रदर्शन किया गया। विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों ने मिलकर पूरे वातावरण को जीवंत बना दिया।

अंत में, प्रो-वाइस चेयरमैन श्री विवेक अग्रवाल ने सभी प्रतिभागियों और उपस्थित लोगों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने “धरोहर” को न केवल एक आयोजन, बल्कि संस्कृति और विरासत के सम्मान का प्रतीक बताया। इस उत्सव ने न केवल महाराष्ट्र की संस्कृति को करीब से समझने का अवसर दिया, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता की भावना को भी सशक्त रूप से प्रस्तुत किया।

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