Mussoorie Golikand - आंदोलनकारी आज भी नहीं भूल पाते 1994 का मसूरी गोलीकांड, पुलिस ने क्यों चलाई थी ताबड़तोड़ गोलियां
Mussoorie Golikand: अतीत के पन्नों में सितम्बर का महीना उत्तराखंड वासियों के लिए मानों काले दिवसों से कम नहीं है, पहले 1 सितम्बर साल 1994 को खटीमा गोलीकांड और फिर ठीक एक दिन बाद दो सितंबर को हुआ मसूरी गोलीकांड, तब इन दोनों घटनाओं ने उत्तराखंड वासियों को झकझोर कर दिया था। आज मसूरी गोलीकांड की 29 वीं बरषी है। दो सितंबर का दिन आज भी मसूरीवासियों की धड़कनें तेज कर देता है। आंदोलन की अलख जगाने के लिए पुरुषों के साथ महिलायें भी राज्य आंदोलन में कूद पड़ी।
2 सितम्बर को भी उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन अन्य दिनों की तरह ही शांतिपूर्वक चल रहा था। मसूरी के झूलाघर के पास संयुक्त संघर्ष समिति के कार्यालय में आंदोलनकारी इकठा होकर एक सितंबर को खटीमा में हुए गोलीकांड के विरोध में अनशन कर रहे थे। इस दौरान पीएसी और पुलिस ने मिलकर उत्तराखंड राज्य आंदोलन को आगे बढ़ा रहे मसूरी के निहथे आंदोलनकारियों पर बिना चेतावनी के ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं।
राज्य आंदोलन में भाग लेने महिलाएं आगे आई तो उन्हें भी गोली मार दी गई, जिसमें बेलमति चौहान और हंसा धनैई शहीद हो गईं। इस गोलीकांड में मसूरी के छह आंदोलनकारी बलबीर सिंह नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी, मदनमोहन ममगाईं, बेलमती चौहान और हंसा धनाई शहीद हो गए, मसूरी के डीएसपी रहे उमाकांत त्रिपाठी ने गोली चलाए जाने का विरोध किया तो उन्हें भी गोली मार दी गई, उन्हें भी बाद में शहीद का दर्जा मिला।
इसके बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों की धरपकड़ शुरू की। इससे पूरे शहर में अफरातफरी मच गई। क्रमिक अनशन पर बैठे पांच आंदोलनकारियों को पुलिस ने एक सितंबर की शाम को ही गिरफ्तार कर लिया था। जिनको अन्य गिरफ्तार आंदोलनकारियों के साथ पुलिस लाइन देहरादून भेजा गया। वहां से उन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया गया था। वर्षों तक कई आंदोलनकारियों को सीबीआई के मुकदमे झेलने पड़े थे। बाद में फिर आंदोलन ने तेजी पकड़ ली और नौ नवंबर साल 2000 को 42 शहादत के बाद हमें अलग राज्य मिला। दुर्भाग्य है की आज तक खटीमा और मसूरी गोली कांड के दोषियों को सजा तक नहीं मिल पाई है।