Nikay Election - मेयर, चेयरमैन और पार्षद की कितनी होती है सैलरी, जानकर आप भी पकड़ लेंगे अपना माथा
 

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Mayor,Chairman salary-  उत्तराखंड में इन दिनों नगर निकाय चुनावों का बिगुल बच चुका है, शहरी क्षेत्रों में  लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव के साथ ही नगर निकायों का चुनाव भी काफी महत्वपूर्ण होता है, ऐसे में उत्तराखंड में शहरी स्थानीय निकाय चुनावों का शोर चरम पर है.नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह से चुनावी तैयारियों में जुट गई हैं. ऐसे में सभी लोग ये जानना चाहते हैं कि जिन पदों पर चुनाव लड़ने के लिए मारामारी हो रही हैं, उन पदों पर बैठने के बाद आखिरकार उन्हें कितनी तनख्वाह या कितना फायदा मिलता है. 

नगर निकायों में नगर प्रमुख यानी मेयर के साथ ही सभासद, नगर पालिका परिषद अध्यक्ष, नगर पालिका परिषद सदस्य, नगर पंचायत अध्यक्ष और नगर पंचायत सदस्य शामिल होते हैं. लिहाजा ये शहरी क्षेत्र में गठित होने वाली स्थानीय सरकार होती है जो अपने क्षेत्र में तमाम विकास कार्यों को धरातल पर उतारने के साथ ही साफ सफाई समेत तमाम व्यवस्थाओं को दुरुस्त करती है. 


नगर निकायों के चुनाव हर 5 साल में कराए जाते हैं. लेकिन आपको ये जानकर बहुत हैरानी होगी कि जिस चुनाव के लिए उत्तराखंड में इन दिनों काफी शोर मचा हुआ है. इस चुनाव में जीतने वाले नेता को भले ही एक बड़ा पद मिल रहा हो, लेकिन उन्हें सैलरी के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता है. यानी की इन्हें फूटी चव्वनी भी नसीब नहीं होती है।  हालांकि, पद की गरिमा के अनुसार उन्हें तमाम सुविधाएं जरूर उपलब्ध कराई जाती हैं, जिसका सारा खर्च नगर निगम प्रशासन की ओर से उठाया जाता है. कुल मिलाकर नगर निकाय चुनाव में जीतने वाले नेता मेयर हों, सभासद हों, नगर पालिका परिषद अध्यक्ष हों, नगर पालिका परिषद सदस्य हों, नगर पंचायत अध्यक्ष हों या फिर नगर पंचायत सदस्य हो, इन्हें किसी भी तरह की कोई सैलरी नहीं दी जाती है


मेयर बनने पर व्यक्ति का सामाजिक और राजनीतिक कद जरूर बढ़ता है। इसे राजनीति में "प्रारंभिक सीढ़ी" के रूप में देखा जाता है। यह पद राजनीतिक प्रतिष्ठा और सामाजिक सम्मान का प्रतीक है, जिससे आगे के राजनीतिक रास्ते खुलते हैं। गौरतलब है की चुनाव लड़ने में बड़े पैमाने पर धन खर्च होता है। देहरादून जैसे क्षेत्रों में खर्च की सीमा 30 लाख रुपए है, लेकिन वास्तविक खर्च इससे कई गुना अधिक होता है। टिकट पाने और चुनाव जीतने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जाने की बातें सामने आती हैं। फिर भी बिना वेतन के इन पदों के लिए उम्मीदवार लालायित क्यों रहते हैं।  

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