उत्तराखंड- जाने क्या है पद्मश्री कुंवर सिंह नेगी की कहानी, क्यों सरकार ने दिया अनोखा सम्मान

कुंवर सिंह नेगी उत्तराखण्ड का एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने समाज के लिए अपना विशिष्ट योगदान दिया। ब्रेल लिपि के संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण काम करने के साथ ही उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का ब्रेल में लिप्यान्तरण कर उन्हें नेत्रहीनों के लिए आसान बनाया। 20 नवम्बर 1927 को पौड़ी के अयाल गाँव में जन्मे
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उत्तराखंड- जाने क्या है पद्मश्री कुंवर सिंह नेगी की कहानी, क्यों सरकार ने दिया अनोखा सम्मान

कुंवर सिंह नेगी उत्तराखण्ड का एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने समाज के लिए अपना विशिष्ट योगदान दिया। ब्रेल लिपि के संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण काम करने के साथ ही उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का ब्रेल में लिप्यान्तरण कर उन्हें नेत्रहीनों के लिए आसान बनाया। 20 नवम्बर 1927 को पौड़ी के अयाल गाँव में जन्मे कुंवर सिंह नेगी की प्रारंभिक शिक्षा देहरादून में हुई।

स्नातक की पढ़ाई के दौरान उन्हें ब्रेल लिपि और भारत में उसकी दुर्दशा की जानकारी मिली। उन्हें जानकारी मिली कि अंग्रेजी की तरह हिंदी में नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि के विकास की दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ है। वही से कुंवर को वह रास्ता मिला जिसकी तलाश में वह छटपटा रहे थे। जिसके बाद उन्होंने ‘नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ विजुअली हैंडीकैपट’ देहरादून में ब्रेल ट्रांसलेटर के रूप में नई नौकरी शुरू की।

कुंवर सिंह नेगी ने बांग्ला, उड़िया, गुरमुखी (पंजाबी), मराठी, गुजराती, उर्दू और रूसी भाषा में कई किताबों का ब्रेल में लिप्यान्तरण किया। इनके द्वारा 300 से ज्यादा पुस्तकें ब्रेल में लिप्यन्तरित की गयी। इनमें सिखों की धार्मिक पुस्तकों के अलावा इस्लाम और बौद्ध धर्मों के महत्वपूर्ण ग्रन्थ शामिल हैं। नेत्र हीनों के लिए किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत सरकार द्वारा कुंवर सिंह नेगी को 1981 में पद्मश्री और 1990 में पद्मविभूषण अवार्ड से नवाजा गया। 20 मार्च 2014 को देहरादून में उनका निधन हो गया।