उत्तराखंड- सतपाल महाराज की लापरवाह मंत्री बनने की होने लगी चर्चा, न वहां दिखे न यहाँ मिले

यह मिस्टर इंडिया यानी कहीं दिखाई नहीं देना वाली कहावत उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज पर भी चरितार्थ होती दिखती है सतपाल महाराज का न तो कोई योगदान भाजपा को आगे बढ़ाने में दिखा और न ही भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने दल बदलू समझ कर इन्हे अपनाया। उल्टा हालात यह हो गए
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उत्तराखंड- सतपाल महाराज की लापरवाह मंत्री बनने की होने लगी चर्चा, न वहां दिखे न यहाँ मिले

यह मिस्टर इंडिया यानी कहीं दिखाई नहीं देना वाली कहावत उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज पर भी चरितार्थ होती दिखती है सतपाल महाराज का न तो कोई योगदान भाजपा को आगे बढ़ाने में दिखा और न ही भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने दल बदलू समझ कर इन्हे अपनाया। उल्टा हालात यह हो गए की सब आने वाले चुनाव में भाजपा के कार्यकर्ता इन सबसे पीछा छुड़ाने की रणनीति अपना रहे है जिससे पार्टी को दुबारा सत्ता में लाया जा सके जिसका मुख्य कारण सतपाल महाराज का एक जिम्मेदार और राज्य के नंबर 2 मंत्री रहते हुए ही लगातार लापरवाही करते रहना है जिसके कई कारण सामने आ रहे है।

13 जिले 13 डेस्टिनेशन कार्यक्रम

ऐसे ही कुछ मामलों में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज घिरते नजर आ रहे है और जनता से उनकी दूरियां इतनी बढ़ गई कि चाहे 13 जिले 13 डेस्टिनेशन कार्यक्रम हो या अन्य पर्यटन रोजगार योजनाओ को आगे बढ़ान का मामला हो सतपाल महाराज कही नहीं दिखे। सतपाल महाराज उत्तराखंड की जनता के प्रति संवेदनशील होते तो उन्हें पर्यटन के हर कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए था।

डोबरा चांटी पुल

विश्व स्तरीय एक ऐसा आयोजन जिससे उत्तराखंड ही नहीं लाखो लोगो फायदा हुआ, ऐसे आयोजन में सतपाल महाराज दिखाई ही नहीं दिए जबकि उन्हें प्रदेश में मुख्यमंत्री के बाद नबर 2 मंत्री माना जाता है पर इतने बड़े कार्यक्रम को नजरअंदाज करना मिस्टर इंडिया ही कहलाएगा। पर्यटन को पंख लगने वाली इस बड़ी योजना के संबंध में इतनी बड़ी लापरवाही सतपाल महाराज कैसे कर सकते है? यह सोचने का विषय है।

राज्य कैबिनेट में अक्सर न आना

राज्य सरकार की अधिकांशत बैठकों में सतपाल महाराज आते ही नहीं है जिससे पता चलता है कि राज्य के कार्यों में इनकी कितनी दिलचस्पी है और कितना सीरियसली वो राज काज को लेते है।

कोरोना में पूरी राज्य कैबिनेट व सचिवालय को हताहत करना

कोर्रोना होने के बावजूद भी बिना बताए कैबिनेट में आकर पूरी राज्य सरकार, सचिवालय, अपने मातहतों को हताहत कर दिया और बाहर से भी कई कोरोना पीड़ित साथ लाने का आरोप सतपाल महाराज पर लगा उस वजह से इन्हे तो कवारेंटेन तो रहना ही पड़ा बल्कि इनकी वजह से मुख्यमंत्री सहित पूरी कैबिनेट व राज्य सचिवालय को कई दंश झेलने पड़े और आज भी जनता सचिवालय में एंट्री नहीं कर पा रही है लोग दूर दूर से आकर वापस जा रहे है जिसके पूर्ण जिम्मेदार सतपाल महाराज है जिन्होंने कोरोना को सचिवालय में प्रवेश दिया।

एडवेंचर स्पोर्ट्स का आज ऐतिहासिक कार्यक्रम न्यार घाटी कार्यक्रम

वहीं बात करें आज हुए खेरासैंण, सतपुली का कार्यक्रम की तो इतने बड़े कार्यक्रम में सतपाल महाराज वो भी पर्यटन मंत्री होने के नाते भी ,नदारद होना यह दर्शाता है जी वो अपने कार्य व जनता के प्रतिं कितने जिम्मेवार है और दिखाई नहीं दे रहे जो जनता के बीच एक बड़ी लापरवाही का संदेश है और साफ दर्शा रहा है कि जनता और रोजगार के प्रति महाराज कितने जवाबदेह है ।

पिछले 4 साल की कोई अहम उपलब्धि नहीं

देखा जाए तो मुख्यमंत्री के बाद नंबर 2 कहलाए जाने वाले वरिष्ठ मंत्री सतपाल महाराज 4 साल में चाहे तो बहुत कुछ कर सकते थे पर इन 4 सालो में कोई एक भी ऐसी उपलब्धि नहीं है जिसे जनता सर माथे बैठाकर कह सके कि इन्होंने कुछ कार्य उत्तराखंड के लिए किया हो उल्टा पर्यटन के कार्यक्रमों में न जाना जनता को बहुत अखरा है

राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रम में हरिद्वार के प्रभारी मंत्री के रूप में कार्यक्रम में न जाना

कितनी बड़ी बात है जब पता चलता है कि राज्य स्थापना दिवस जैसे भव्य व ऐतिहासिक कार्यक्रम जिसमे उत्तराखंड कि जन भावना अपने आंदोलनकारियों और शहीदों को सम्मान दे रही हो और कार्यक्रम के प्रभारी मंत्री मुख्य अतिथि ही कार्यक्रम में ना आए और शहीदों के परिवारों और आंदोलन कारियो के दिल पर क्या बीती होगी की जिसे उन्होंने अपना नेता चुना वो ही उनका साथ छोड़ गया और आगे तो क्या ही उम्मीद करे? राज्य स्थापना दिवस के कार्यक्रम में सतपाल महाराज ने न जाकर एक बहुत बड़ी लापरवाही बौर निकम्मेपन का परिचय दिया है । जिस कारण अचानक राज्य सरकार को उसकी वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ी।

जब देखो दिल्ली हीं दिल्ली तो उत्तराखंड से क्या लेना

सतपाल महाराज को जब देखा गया दिल्ली दौड़ते ही देखा गया है मौका मिलते ही सोनिया गांधी के दरबार और मौका मिलते ही भाजपा के दरबार में सतपाल महाराज आते जाते दिखे है और महाराज के आश्रम में भी प्रवचन आदि में अधिक समय बीत जाता है जो हम टी वी पर प्रवचन देखते रहते है तो संत व्यक्ति को राजनीति की जरूरत ही कहां है और जब समय ही न हो जनता के लिए और राजकीय कार्यक्रम मे न जाना हो तो राजनीति से संन्यास लेकर ही बैठ जाना उचित होगा। क्यूंकि जब जनता के काम ही नहीं करने और न रोजगार और ना विकास करना है तो ये सब आडम्बर क्यों?