उत्तराखंड- सालों से बंद पड़े इस खतरनाक ट्रैक का चौकाने वाला है इतिहास, पर्यटक जल्द कर सकेंगे दीदार

उत्तराखंड वैसे तो अपनी खूबसूरती के लिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है। यहां के घुमाऊंदार रास्ते, हरी भरी वादियां, सुंदर नीली नदिया, साफ वातावरण काफी है देवभूमी का परिचय देने को। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक यहां सुकुन की तालश में खिचे चले आते है। पर्यटक यहां आकर खुद को प्रकृति के करीब महसूस
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उत्तराखंड- सालों से बंद पड़े इस खतरनाक ट्रैक का चौकाने वाला है इतिहास, पर्यटक जल्द कर सकेंगे दीदार

उत्तराखंड वैसे तो अपनी खूबसूरती के लिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है। यहां के घुमाऊंदार रास्ते, हरी भरी वादियां, सुंदर नीली नदिया, साफ वातावरण काफी है देवभूमी का परिचय देने को। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक यहां सुकुन की तालश में खिचे चले आते है। पर्यटक यहां आकर खुद को प्रकृति के करीब महसूस करते है। उत्तराखंड में आने वाले पर्यटक एडवेंचर स्पोर्ट्स का भी आंदद ले सकते है।

उत्तराखंड- सालों से बंद पड़े इस खतरनाक ट्रैक का चौकाने वाला है इतिहास, पर्यटक जल्द कर सकेंगे दीदार

यहां के प्रसिद्श ट्रैकिंक रास्ते ट्रैकर्स के लिए भुलाना आसान नहीं है। आज हम आपको एक ऐसे ट्रैक व पर्यटन स्थल के बारे में बताने ने जा रहे है, जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा। ये ट्रैक इंसानी कारिगरी का एक बेहतर नमूना है। दो देशों के बीच व्यापार के लिए कभी इस्तेमाल होने वाले इस ट्रैक में अभी तक चुनिंदा पर्यटक या ट्रैकर्स ही पहुंच सकें है। लेकिन अब त्रिवेन्द्र सरकार इस खास पर्यटक स्थल को आम बनाने जा रही है।

पेशावर के पठानों किया था निर्माण

ये ट्रैक है उत्तराखंड के उत्तरकाशी में गंगोत्री नेशनल पार्क चीन सीमा से सटा गर्तांगली की सीढ़ियां। बताया जाता है कि 300 मीटर लंबी गर्तांगली सीढ़ियों का निर्माण सतरवीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने 11 हजार फीट की ऊंचाई पर खड़ी चट्टान को किनारे से काटकर किया था। ये मार्ग भैरवघाटी से नेलांग को जोडता है। इसे जाड़ गंगा घाटी में बनाया गया है।

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वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले तक इसी मार्ग से भारत-तिब्बत के बीच व्यापार होता था। लेकिन युद्ध के बाद गर्तांगली को आमजन के लिए बंद कर दिया गया। मगर सेना वर्ष 1975 तक इसका उपयोग करती रही। इसके बाद से गर्तांगली पर आवाजाही पूरी तरह बंद है। देखरेख कम होने के कारण इस मार्ग में बनी सीढ़ियां और किनारे लगाई गई लकड़ी की सुरक्षा बाड़ भी जर्जर होती चली गई।

पर्यटकों के लिए जल्द खोला जाएगा

वही अब 45 साल के लंबे इंतजार के बाद गर्तांगली सीढ़ियां पर्यटन के नक्शे पर आने जा रही है। विश्वभर के खतरनाक रास्तों में से एक इस ट्रैक को खोलने के लिए थीं। अब वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस की बाधा दूर हो गई है। अब गर्तांगली की सीढ़ियों और किनारे लगी सुरक्षा बाढ़ को दुरुस्त किया जाएगा। यह कार्य पूरा होने के बाद चट्टान पर बनी गर्तांगली

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से रोमांच के शौकीनों को गुजरने की अनुमति मिल सकेगी। इसके दुरुस्त होने पर इसे ट्रैकिंग और पर्यटन के लिहाज से खोला जाएगा। कभी भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र रहा यह मार्ग अब पर्यटकों को रोमांच का अनुभव कराएगा। पर्यटक यहां जाकर इंसानी कारीगरी का अद्भुद नमूना देख सकेंगे। सालों पुराने उस दौर को इस रास्ते से सहारे महसूस कर सकेंगे।

सीएम योजना से मिले 75 लाख

बता दें कि वर्ष 2018 में पर्यटन विभाग ने इस मार्ग को ठीक करने के लिए 26 लाख की राशि जारी की थी। जिसके बाद गंगोत्री नेशनल पार्क ने कुछ कार्य भी कराया था। मगर सफलता नहीं मिली। बाद में सरकार ने गर्तांगली को पर्यटन और ट्रैकिंग के लिहाज से विकसित करने के मद्देनजर यह कार्य लोनिवि को सौंपने का निर्णय लिया। मगर वन कानून आड़े आ गए। बीती 29 जून को हुई उत्तराखंड राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में गर्तांगली का मसला फिर उठा।

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वही अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसकी राह में आने वाली अड़चनों को दूर कर दिया है। उन्होंने गर्तांगली की मौलिकता को बरकरार रखते हुए इसका पुनरुद्धार करने के निर्देश दिए है। अब गर्तांगली को लेकर तेजी से कदम उठाए जा रहे हैं। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के अनुसार गर्तांगली के जीर्णोद्धार के लिए लोक निर्माण विभाग को वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस के मद्देनजर अनापत्ति प्रमाणपत्र दे दिया गया है। मुख्यमंत्री सीमांत क्षेत्र विकास योजना के तहत लोनिवि को 75 लाख रुपये पहले ही दिए जा चुके हैं।