उत्तराखंड- गुलदारों के बढ़ते हमलों पर सरकार का ऐक्शन, भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ तैयार किया ये प्लान

71.05 फीसद वन भूमी वाले उत्तराखंड में गुलदारों ने सबसे ज्यादा नींद उड़ाई हुई है। ये घर-आंगन से लेकर खेत-खलिहानों तक ऐसे धमक रहे हैं, मानो पालतू जानवर हों। प्रदेश में गुलदार के हमले भी लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले पांच सालों के आकड़े देखें तो गुलदारों ने 99 व्यक्तियों की जान ले ली है।
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उत्तराखंड- गुलदारों के बढ़ते हमलों पर सरकार का ऐक्शन, भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ तैयार किया ये प्लान

71.05 फीसद वन भूमी वाले उत्तराखंड में गुलदारों ने सबसे ज्यादा नींद उड़ाई हुई है। ये घर-आंगन से लेकर खेत-खलिहानों तक ऐसे धमक रहे हैं, मानो पालतू जानवर हों। प्रदेश में गुलदार के हमले भी लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले पांच सालों के आकड़े देखें तो गुलदारों ने 99 व्यक्तियों की जान ले ली है। जबकि बाघ, हाथी, भालू, सूअर समेत दूसरे वन्यजीवों के हमलों में 159 व्यक्ति मारे गए है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने गुलदारों के व्यवहार पर अध्ययन कराने की ठानी है। इसके लिए गुलदारों पर रेडियो कॉलर लगाने की योजना बनाई जा रही है। जिससे इनके हमलों पर अंकुश लगाया जा सके।

गुलदारों पर करेंगे अध्ययन

सरकार ने इस कड़ी में जर्मन फंडिंग एजेंसी जीआइजेड के सहयोग से मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने के लिए वन महकमा तमाम उपायों को लेकर कसरत में जुटा है। इसी के तहत राजाजी टाइगर रिजर्व और इससे सटे देहरादून और हरिद्वार वन प्रभागों में उपाय तलाशे जा रहे हैं। बात देहरादून-हरिद्वार राजमार्ग से लगे इलाकों की करें तो यहां 40 गुलदारों के सक्रिय होने का अनुमान है। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के अनुसार इन परिस्थितियों को देखते हुए यहां 15 गुलदारों पर रेडियो कॉलर लगाने का निर्णय लिया गया है, जिससे इनके व्यवहार का अध्ययन कर इसके अनुरूप प्रभावी कार्ययोजना तैयार की जा सके।

केन्द्र से अनुमति का इंतजार

उन्होंने बताया कि जीआइजेड ने रेडियो कॉलर और अन्य उपकरण मुहैया कराए हैं। रेडियो कॉलर लगाने का कार्य भारतीय वन्यजीव संस्थान करेगा। भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक डॉ. धनंजय मोहन ने बताया कि केंद्र से अनुमति मिलने के बाद गुलदारों पर रेडियो कॉलर लगाए जाएंगे। रेडियो कॉलर लगने के बाद गुलदारों के मूवमेंट पर नजर रहेगी। साथ ही पता चल सकेगा कि ये किस वक्त, किस क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय रहते हैं। इससे ये भी जानकारी मिलेगी कि गुलदार कहीं आबादी के नजदीक तो नहीं है। यानी, यह एक प्रकार का अर्ली वॉर्निंग सिस्टम भी होगा। इस मुहिम के तहत गुलदारों के व्यवहार का पता चलने के बाद इसके आधार पर सुरक्षात्मक कदम उठाने को आधार मिल सकेगा।