उत्तराखंड के इस जिले में रहते है 110 कश्मीरी पंडितों के परिवार, पढिय़ें कैसे अपनी जान बचाकर भागे थे ये लोग

काशीपुर- सोमवार को 370 अनुच्छेद हटते ही ऊधमसिंह नगर जिले के सुल्तानपुर पट्टी स्थित पिपलिया गांव में खुशी मनाई गई। लोगों एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर गले लगाया और हाथों में तिरंगा लेकर भारत माता की जय के नारे भी लगाये। इस बीच जश्र में लोगों के आंखों से आंसू निकल आये बोले हमें असली आजादी
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उत्तराखंड के इस जिले में रहते है 110 कश्मीरी पंडितों के परिवार, पढिय़ें कैसे अपनी जान बचाकर भागे थे ये लोग

काशीपुर- सोमवार को 370 अनुच्छेद हटते ही ऊधमसिंह नगर जिले के सुल्तानपुर पट्टी स्थित पिपलिया गांव में खुशी मनाई गई। लोगों एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर गले लगाया और हाथों में तिरंगा लेकर भारत माता की जय के नारे भी लगाये। इस बीच जश्र में लोगों के आंखों से आंसू निकल आये बोले हमें असली आजादी आज मिली है। कई बुजुर्गो ने अपने काले दिनों को याद किया और रो पड़े। उन्होंने कहा कि अगर सरकार सुरक्षा व रोजगार दे तो हम कश्मीर ही जाएंगे। अपनी मिट्टी की खुशबू और हमारे सारे रिश्तेदार वहीं हैं।

उत्तराखंड के इस जिले में रहते है 110 कश्मीरी पंडितों के परिवार, पढिय़ें कैसे अपनी जान बचाकर भागे थे ये लोग

घरों में बंद कर लोगों के जलाया तो भाग आये

इस दौरान लोगों ने बताया कि वर्ष 1947 में ब्लूचिस्तान के आंतकियों ने उनके घरों में लोगों को बंद कर जला दिया। उनके साथ मारपीट की और कश्मीर से उन्हें भगा दिया। इस समय राज हरीशसिंह ने आर्मी की मदद से 110 कश्मीरी पंडितों के परिवारों को ऊधमङ्क्षसह नगर जिले में भेजा। जो उस समय नैनीताल जिले में शामिल था। नैनीताल के सुपरिटेंडेंट ने इन परिवारों के रहने की व्यवस्था की और सरकार ने जीवन यापन के लिए यहां 1000 एकड़ जमीन दी। यहां इन लोगों ने खेती बाड़ी कर अपनी जिंदगी काटी। उन्होंने कहा कि 370 हटने के बाद हम अपने वतन जाना चाहते है बस सरकार हमें सुरक्षा दें।

पपलिया गांव में रहते है 110 कश्मीरी परिवार

कई परिवारों ने बताया कि हमारे रिश्तेदार कठुआ, जम्मू, राजौरी में रहते हैं। अब हम वहां जाकर रह सकते हैं। यहां की जमीन-जायदाद बेचकर हम वहीं चले जाएंगे। यदि सरकार हमारी मदद करे और रोजगार की व्यवस्था करा दे तो। सरकार जम्मू में रहने वालों को 25 लाख तक मुआवजा दे रही है, लेकिन जो लोग दूसरे राज्यों में चले गए उन्हें कुछ नहीं मिला।एक परिवार के मुखिया ने बताया कि वर्ष 1947 में यहां आए तो सरकार ने महज साढ़े तीन हजार हमें जीने-खाने व रहने के लिए दिए थे। उसके बाद सारे कश्मीरियों ने मेहनत मजदूरी करके किसी तरह जिंदगी बिताई व आनेवाली पीढ़ी का पालन-पोषण किया। सरकार के निर्णय से हमारे बच्चे भी बहुत खुश हैं कि अब हम कश्मीर में बस सकते हैं। लेकिन सुरक्षा को लेकर डर जरूर लग रहा है।