ट्रेन के सामने जानवर या इंसान आने के बाद भी क्यों नहीं रुकती है ट्रेन, जानिए क्या है वजह

देश के कई जंगली इलाकों से हो कर ट्रेन गुजरती है जिसके कारण आए दिन जंगली हाथी से लेकर जंगली जानवर ट्रेन हादसे का शिकार होकर जान गंवा देते हैं जिसकी वजह लोग ट्रेन ड्राइवर को ही मानते है लेकिन क्या कभी आपने ऐसे सोचा है कि ट्रेन के ड्राइवर जब किसी व्यक्ति को ट्रेन
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ट्रेन के सामने जानवर या इंसान आने के बाद भी क्यों नहीं रुकती है ट्रेन, जानिए क्या है वजह

देश के कई जंगली इलाकों से हो कर ट्रेन गुजरती है जिसके कारण आए दिन जंगली हाथी से लेकर जंगली जानवर ट्रेन हादसे का शिकार होकर जान गंवा देते हैं जिसकी वजह लोग ट्रेन ड्राइवर को ही मानते है लेकिन क्या कभी आपने ऐसे सोचा है कि ट्रेन के ड्राइवर जब किसी व्यक्ति को ट्रेन के सामने आते हुए देखते हैं तो वह ट्रेन पर क्यों नहीं काबू कर पाते। हर किसी के मन में एक ही प्रश्न उठा था कि आखिर ड्राइवर ने क्यों नही लगाया ब्रेक?

ट्रेन के सामने जानवर या इंसान आने के बाद भी क्यों नहीं रुकती है ट्रेन, जानिए क्या है वजह

इमरजेंसी ब्रेक लगाने के बाद कितनी दूरी पर ट्रेन रुकती है?

अगर 24 डिब्बों की ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हो और लोकोपायलट इमरजेंसी ब्रेक लगा दे, तो ब्रेक पाइप का प्रेशर पूरी तरह खत्म हो जाएगा और गाड़ी के हर पहिए पर लगा ब्रेक शू पूरी ताकत के साथ रगड़ खाने लगेगा। इसके बावजूद ट्रेन 800 से 900 मीटर तक जाने के बाद ही पूरी तरह रुक पाएगी। मालगाड़ी के मामले में रुकने की दूरी इस बात पर निर्भर करती है कि गाड़ी में कितना माल लदा है। मालगाड़ी में इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर वो 1100 से 1200 मीटर जाकर रुकती है। जब आप डिब्बे में लगी इमरजेंसी चेन खींचते हैं, तब भी कमोबेश यही होता है. ब्रेक पाइप का प्रेशर बड़ी तेज़ी से कम होता है और पूरी ताकत से ब्रेक लग जाते हैं। ये वैसा ही है, जैसे ड्राइवर या गार्ड पूरी ताकत से ब्रेक लगाएं।

ट्रेन के सामने जानवर या इंसान आने के बाद भी क्यों नहीं रुकती है ट्रेन, जानिए क्या है वजह

गाड़ी के सामने आ जाने पर ड्राइवर ट्रेन क्यों नहीं रोकता ?

अब तक आप समझ गए होंगे कि ड्राइवर अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाना भी चाहे, तो उसे बड़ी दूर से नजर आ जाना चाहिए कि कोई पटरी पर है। आमतौर पर रेल हादसों में लोग, जानवर या गाड़ी अचानक ट्रेन के सामने आ जाते हैं। ऐसे में ड्राइवर के पास इमरजेंसी ब्रेक लगाने का समय ही नहीं होता। और अगर इमरजेंसी ब्रेक लगा भी दिया जाए तो टक्कर हो ही जाती है। अगर पटरी पर मोड़ हो तो ट्रैक पर कुछ भी देखना और मुश्किल हो जाता है। खासकर तेज़ रफ्तार पर। ऐसे में मामूली से मामूली मोड़ तक पर कोई चीज़ तभी नजऱ आती है जब वो बिलकुल पास आ जाती है। रात को इमरजेंसी ब्रेक का इस्तेमाल और मुश्किल हो जाता है। ड्राइवर को रात में उतना ही ट्रैक नजर आता है, जहां तक इंजन के लाइट की रोशनी जाती है। कोई भीड़ अगर रात के वक्त ट्रैक पर हो, तो ड्राइवर को लगभग एक किलोमीटर के दायरे में होने पर नजर आएगी, और तब इमरजेंसी ब्रेक लगाकर भी गाड़ी रोकना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में ड्राइवर की आखिरी उम्मीद होती है इंजन में लगा हॉर्न। वो उसे लगातार बजाता है। भारतीय रेल के लोकोपायलट जोर देकर कहते हैं, कि कोई जानबूझकर अपनी गाड़ी से किसी को नहीं कुचलता। अगर ट्रैक पर कुछ नजऱ आता है और ड्राइवर के पास उसे बचाने का कोई भी रास्ता होता है तो उसे जरूर अमल में लाया जाता है।

इमरजेंसी ब्रेक कब लगाए जाते हैं?

भारतीय रेल का लोकोपायलट हर उस स्थिति में इमरजेंसी ब्रेक लगा सकता है, जिसमें उसे तुरंत ट्रेन रोकना ज़रूरी लगता है। सामने कुछ आ जाए, पटरी में खराबी दिखे, ट्रेन में कोई खराबी हो, कुछ भी कारण हो सकता है। इमरजेंसी ब्रेक उसी लीवर से लगता है जिससे सामान्य ब्रेक। लीवर को एक तय सीमा से ज़्यादा खींचने पर इमरजेंसी ब्रेक लग जाते हैं।