इस वजह से नहीं होती गंगाजल से कोई महामारी , तभी माना जाता है अमृत समान

भारत में सदियों से लोगों के मन में गंगाजल के प्रति आस्था बरकरार है, लेकिन कई बार यह सवाल पूछे जाते हैं कि कुंभ और अन्य स्नान पर्वों पर करोड़ों लोगों के डुबकी लगाने के बावजूद गंगाजल से कोई महामारी नहीं फैलती। इस विषय पर देश में भले ही कम रिसर्च हुए हैं, लेकिन विदेशी
 | 
इस वजह से नहीं होती गंगाजल से कोई महामारी , तभी माना जाता है अमृत समान

भारत में सदियों से लोगों के मन में गंगाजल के प्रति आस्था बरकरार है, लेकिन कई बार यह सवाल पूछे जाते हैं कि कुंभ और अन्य स्नान पर्वों पर करोड़ों लोगों के डुबकी लगाने के बावजूद गंगाजल से कोई महामारी नहीं फैलती। इस विषय पर देश में भले ही कम रिसर्च हुए हैं, लेकिन विदेशी इस दिव्यता को स्वीकार करते हैं। अमेरिकी पत्रकार जूलियन क्रेंडल हॉलिक ने अपनी किताब गंगा में कई ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह साबित किया है कि गंगाजल दिव्य है।

इस वजह से नहीं होती गंगाजल से कोई महामारी , तभी माना जाता है अमृत समान

बैक्टीरियोफेज है वजह: हॉलिक ने लिखा है कि गंगाजल में खुद को शुद्ध करने की अद्वितीय ताकत है। मुगल बादशाह अकबर सिर्फ गंगा का पानी पीते थे। उनके लिए ड्रमों में विशेष तौर पर गंगाजल आगरा मंगवाया जाता था। 17वीं शताब्दी में फ्रेंच यात्री जीन बेपटिस्ट ने भारत यात्रा के बाद कहा था कि गंगा के पानी में दवाओं जैसी ताकत है।

ब्रिटिश राज के दौरान कई बार विदेशी वैज्ञानिकों ने हैजा जैसी बीमारियों से मरे लोगों के शव गंगा में देखे। जब शवों से थोड़ा नीचे का गंगाजल लेकर लैब टेस्ट किया गया तो उसमें बिल्कुल भी हानिकारक बैक्टीरिया नहीं थे। कहा जाता है कि बैक्टीरियोफेज नाम का मित्र बैक्टीरिया गंगाजल को साफ रखता है। स्नान के दौरान लोगों के शरीर से निकलने वाले बैक्टीरिया को बैक्टीरियोफेज कुछ घंटों में खत्म कर देता है। इसलिए स्नान पर्वों पर कभी गंगाजल से कोई महामारी नहीं हुई। गंगा के कच्चे पानी में बैक्टीरिया 2-3 घंटे से ज्यादा जिंदा नहीं रहते।

गंगा किनारे के शहरों में आज भी ऐसी दंतकथाएं सुनने को मिल जाती हैं कि गंगाजल में नहाकर लोगों के गंभीर रोग भी ठीक हो गए।ऐसा धार्मिक विश्वास है कि कुंभ का शुभ संयोग होने पर गंगा जल में अमृत घुल जाता है। इसमें स्नान करने से दैहिक, दैविक और भौतिक ताप दूर होता है।