हल्द्वानी-देवभूमि के इस शहीद की शौर्य व बलिदान की गाथा जानेंगी पूरी दुनियां, 18 जनवरी को रिलीज होगी फिल्म

हल्द्वानी-न्यूज टुडे नेटवर्क- वर्ष 1962 में हुए भारत-चीन के ऐतिहासिक युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेने वाले देवभूमि उत्तराखंड के शहीद जसवंत रावत पर बनी फिल्म 72 ऑवर्स-मार्टियर हू नेवर डाइड 18 जनवरी को रिलीज हो रही है। फिल्म का ट्रेलर 24 दिसंबर को दून में रिलीज किया जाएगा। इस फिल्म में देहरादून के अविनाश
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हल्द्वानी-देवभूमि के इस शहीद की शौर्य व बलिदान की गाथा जानेंगी पूरी दुनियां, 18 जनवरी को रिलीज होगी फिल्म

हल्द्वानी-न्यूज टुडे नेटवर्क- वर्ष 1962 में हुए भारत-चीन के ऐतिहासिक युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेने वाले देवभूमि उत्तराखंड के शहीद जसवंत रावत पर बनी फिल्म 72 ऑवर्स-मार्टियर हू नेवर डाइड 18 जनवरी को रिलीज हो रही है। फिल्म का ट्रेलर 24 दिसंबर को दून में रिलीज किया जाएगा। इस फिल्म में देहरादून के अविनाश ध्यानी ने शहीद जसवंत रावत का किरदार निभाया है। फिल्म की कहानी लिखने के साथ ही उन्होंने इसका निर्देशन भी किया है। बतौर निर्देशक वह इस फिल्म से डेब्यू कर रहे हैं। इससे पहले वह फिल्म फ्रेड्रिक में अभिनय कर चुके हैं। फिल्म के प्रोड्यूसर दून के ही जेएस रावत हैं। बताया जा रहा है कि इसमें ज्यादातर कलाकार उत्तराखंड के हैं। इस फिल्म की शूंटिंग उत्तराखंड के चकराता के वैराट खाई, हर्षिल, दून आदि इलाकों में शूट की गई है।

हल्द्वानी-देवभूमि के इस शहीद की शौर्य व बलिदान की गाथा जानेंगी पूरी दुनियां, 18 जनवरी को रिलीज होगी फिल्म

अकेले 300 चीनों सैनिकों को उतारा था मौत के घाट

फिलहाल फिल्म का टीजर यूट्यूब पर लांच हो चुका है। जिसे 1.7 मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके हैं। फिल्म में राइफल मैन जसवंत रावत कैसे अकेले 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार देते हैं, दिखाया गया है। सुखविंदर सिंह ने देशभक्ति गीत अब तो चल पड़े हैं डगर डगर, शान ने दूर मैं खुद से हुआ दूर और श्रेया घोषाल ने ओर चंदा गीत गाया है। बताया जा रहा है कि आज भी शहीद जसवंत रावत को प्रमोशन भी मिलता है, छुट्टियां भी मंजूर होती है। जसवंत सिंह भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिलना शुरू हुआ। पहले नायक फिर कैप्टन और अब वह मेजर जनरल के पद पर पहुंच चुके हैं। उनके परिवार वाले जब जरूरत होती है, उनकी तरफ से छुट्टी की दर्खास्त देते हैं। जब छुट्टी मंज़ूर हो जाती है तो सेना के जवान उनके चित्र को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गांव ले जाते हैं और जब उनकी छुट्टी समाप्त हो जाती है तो उस चित्र को ससम्मान वापस उसके असली स्थान पर ले जाया जाता है।

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शहीद होने के बाद भी ड्यूटी करता है जाबांज

जसवंत सिंह रावत के मारे जाने के बाद भी उनके नाम के आगे न तो शहीद लगता है और ना ही स्‍वर्गीय। ऐसा इसलिए क्‍योंकि सेना का यह जाबांज जवान आज भी ड्यूटी करता है। ऐसा कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के जिस इलाके में जसवंत ने जंग लड़ी थी उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं और भूत-प्रेत में यकीन न रखने वाली सेना और सरकार भी उनकी मौजूदगी को चुनौती देने का दम नहीं रखते। जसवंत सिंह का ये रुतबा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि सीमा के उस पार चीन में भी है। हर दिन उनका जूता पॅालिश होता है लेकिन जब रात में जूते को देखा जाता है तो ऐसा लगता है जैसे जूता पहनकर कोई कहीं गया था।