देहरादून- उत्तराखंड में इसलिए जिम कार्बेट को कहते थे “गोरा ब्राह्मण”, नैनीताल जिले से था खास लगाव

जेम्स एडवर्ड जिम कार्बेट आयरिश मूल के भारतीय लेखक व दार्शनिक (Philosopher) थे। उनका जन्म नैनीताल जिले के कालाढूंगी में 25 जुलाई 1875 को हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के सेंट जोसेफ कॉलेज से हुई। जिम कार्बेट लेखक के साथ-साथ एक अच्छे शिकारी, पर्यावरणविद व दयावान व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय
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देहरादून- उत्तराखंड में इसलिए जिम कार्बेट को कहते थे “गोरा ब्राह्मण”, नैनीताल जिले से था खास लगाव

जेम्स एडवर्ड जिम कार्बेट आयरिश मूल के भारतीय लेखक व दार्शनिक (Philosopher) थे। उनका जन्म नैनीताल जिले के कालाढूंगी में 25 जुलाई 1875 को हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के सेंट जोसेफ कॉलेज से हुई। जिम कार्बेट लेखक के साथ-साथ एक अच्छे शिकारी, पर्यावरणविद व दयावान व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय नैनीताल जिले के कालाढूंगी के जंगलो में बिताया। उस वक्त वहां बाघो की संख्या अधिक थी, जिनमें से कई आदमखोर भी थे। वर्ष 1907 से 1938 के बीच जिम कार्बेट ने 33 नरभक्षियों का शिकार कर उन्हें मार गिराया।

“मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं” में लिखी ये बात

इनमें 19 बाघ और 14 तेदुंए शामिल थे। सरकारी रिकार्ड ने अनुसार इन जानवरों ने गांव के 1200 लोगों को मौत के घाट उतारा था। जिम हमेशा अकेले शिकार करना पंसद करते थे, वे जंगल में पैदल घूमते और शिकार करते। उत्तराखंड में लोग उन्हें “गोरा ब्राह्मण” के नाम से भी जानते थे। अपनी “मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं” नामक पुस्तक में उन्होंने आदमखोर जानवरों का जिक्र करते हुए लिखा था कि अधिकांश जानवर प्राकृतिक शिकार करने में असमर्थ होने के चलते आदमखोर बनते है।

देहरादून- उत्तराखंड में इसलिए जिम कार्बेट को कहते थे “गोरा ब्राह्मण”, नैनीताल जिले से था खास लगाव

उनकी माने तो इस तरह के जानकर किसी बिमारी या चोट से ग्रसित होते है। शिकार कथाओं के कुशल लेखकों में जिम कार्बेट का नाम विश्र्व में अग्रणीय है। आज कुमाऊं- गढ़वाल की धरती पर उनके नाम से स्थापित जिम कार्बेट नेश्नल पार्क है, जो कि विक्ष्व प्रसिद्ध है। जिम कार्बेट का नाम विश्र्व के प्रसिद्ध शिकारी के रूप में दर्ज है। कालाढूंगी में उनका म्यूजियम भी है जहां उनकी पुस्तकें उनकी बंदूक, उनके कपड़े और अन्य वस्तुएं आज भी सुरक्षित है।