शाहजहांपुर: शहीद दिवस पर याद किए गए भारत पाकिस्तान युद्ध के नायक शहीद यदुनाथ

न्यूज टुडे नेटवर्क। यूपी के शाहजहांपुर जिले में शनिवार को सेना के बड़े अफसरों का जमावड़ा लगा रहा। कलान तहसील से 15 किलोमीटर पश्चिम की ओर गांव खजुरी में शहीद परमवीर चक्र विजेता नायक यदुनाथ सिंह के 74 में बलिदान दिवस पर यहां भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सेना के अफसरों के गांव पहुंचने
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शाहजहांपुर: शहीद दिवस पर याद किए गए भारत पाकिस्तान युद्ध के नायक शहीद यदुनाथ

न्‍यूज टुडे नेटवर्क। यूपी के शाहजहांपुर जिले में शनिवार को सेना के बड़े अफसरों का जमावड़ा लगा रहा। कलान तहसील से 15 किलोमीटर पश्चिम की ओर गांव खजुरी में शहीद परमवीर चक्र विजेता नायक यदुनाथ सिंह के 74 में बलिदान दिवस पर यहां भव्‍य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सेना के अफसरों के गांव पहुंचने पर कौतूहलवश ग्रामीणों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। हालांकि शहीद यदुनाथ की याद में आयोजित कार्यक्रम की तैयारियां पिछले चार दिनों पहले ही शुरू हो गई थीं।

शहीद यदुनाथ के गांव में सेना के ब्रिगेडियर और कैप्‍टन ने पहुंचकर दी श्रद्धांजलि, भव्‍य कार्यक्रम आयोजित

शनिवार को ब्रिगेडियर(आई.एम.एस) परमार व कैप्टन अतुल कुरुश्रेष्ठ ने परमवीर चक्र विजेता नायक यदुनाथ सिंह के पैतृक गांव खजूरी पहुंच कर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित की। फतेहगढ़ से आए राजपूत  रेजीमेंट के सैन्य अधिकारियों व कर्मचारियों ने  बलिदान दिवस को लेकर 4 दिन पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी थी। इस बार कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने के लिए ग्रामीण,क्षेत्रीय लोगों के साथ भाजपा नेता पूर्व राज्य गृह मंत्री स्वामी चिन्मयानंद  ने श्रद्धांजलि दिवस पर पहुंचकर शहीद यदुनाथ सिंह को नमन किया।

कैप्टन अतुल कुमार कुरुश्रेष्ठ ने बताया कि यह जो गांव है यह एक हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है, जहां हर एक नौजवान सुनकर नायक यदुनाथ सिंह की वीर गाथा से ओतप्रोत हो जाता है। अगर नायक जदुनाथ सिंह की बात की जाए तो इनका जन्म 1916 मैं जन्म हुआ और यह यही खेल कूद कर पले-बडे और उन्होंने यही गांव के एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की।

इनका कुश्ती में बहुत ही मनोबल बड़ा था और यह कुश्ती के लिए बहुत बहुत दूर तक चले जाते थे, क्योंकि इन्हें कुश्ती लड़ना बहुत अच्छा लगता था। यह हनुमान जी के भक्तों थे इन्हें कुछ लोग ब्रह्मचारी के नाम से भी जानते थे।  इनकी माता का नाम जमुना कुँवर और  पिता का नाम बीरबल सिंह था इनके सात बच्चे थे। जिसमे (6 भाई और एक बहन) में तीसरे नंबर के थे। अपने गांव के स्थानीय स्कूल में चौथी तक के मानक का अध्ययन किया था लेकिन वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण अपनी शिक्षा को आगे नहीं बढ़ा सके।

उन्होंने अपने बचपन का अधिकांश समय अपने खेत में कृषि कार्य में अपने परिवार की मदद करने में बिताया। खेल क्रीड़ा में उन्होंने कुश्ती की और अंततः अपने गांव के कुश्ती चैंपियन बन गए। अपने चरित्र और कल्याण के लिए, उन्हें “हनुमान भगत बाल ब्रह्मचारी” नाम से जाना जाता था। हनुमान जी की पूजा करने के साथ-साथ ही इन्होंने शादी भी नहीं की थी। यह जब  17 अट्ठारह साल के हुए तो यह चोरी से भाग गए थे।  इनको परिवार वालों ने  हर जगह ढूंढा पर उनका कहीं पता नहीं चला। कुछ दिन पश्चात पता चला कि यह फतेहगढ़ में है तो वहां इनके माता-पिता पहुंचे तो उन्होंने देखा कि यह राजपूत रेजीमेंट सेना में सिपाही के पद पर अपनी ट्रेनिंग कर रहे थे।

इसके बाद वे चुपचाप घर वापस चले आए। सन 1941 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इन्होने बर्मा में जापान के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया था। उन्होंने बाद में भारतीय सेना के सदस्य के रूप में 1947 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया। 6 फरवरी 1948 को नौशेरा, जम्मू और कश्मीर के उत्तर में युद्ध में योगदान के कारण नायक यदुनाथ सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

राजपूत भारतीय सेना के ब्रिगेडियर (आई.एम.एस) परमार ने बताया कि नायक यदुनाथ सिंह परमवीर चक्र विजेता के शहादत दिवस को मनाने के लिए आज के ही दिन 6 फरवरी 1948 को एक उन्होंने एक पोस्ट जो कि नौशेरा सेक्टर में है। वहां उसे तायेदार पोस्ट कहते हैं, पाकिस्तानी हमले से बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी और जो नायक यदुनाथ सिंह और उनके साथियों ने किया। आज भी राजपूत रेजीमेंट ही नहीं साथ ही पूरे भारत के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।