रूद्रपुर-रिक्शा चलाकर दो बच्चों को बनाया शिक्षक तो एक को वकील, पढ़िये इस पिता का संघर्ष

रूद्रपुर के एक पिता ने अपने बच्चों को पढ़ाकर कामयाब बनाने के लिए पूरे 42 सालों तक संघर्ष किया है। पिता ने बच्चों को पढ़ाने की चाह में अपनी पूरी जिन्दगी दाव पर लगा दी। जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में स्थित रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप निवासी रविंद्र विश्वास गरीब परिवार के होने के कारण उनकी
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रूद्रपुर-रिक्शा चलाकर दो बच्चों को बनाया शिक्षक तो एक को वकील, पढ़िये इस पिता का संघर्ष

रूद्रपुर के एक पिता ने अपने बच्चों को पढ़ाकर कामयाब बनाने के लिए पूरे 42 सालों तक संघर्ष किया है। पिता ने बच्चों को पढ़ाने की चाह में अपनी पूरी जिन्दगी दाव पर लगा दी। जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में स्थित रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप निवासी रविंद्र विश्वास गरीब परिवार के होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। उन्होने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए 42 साल तक रिक्शा चलाया है। उन्होने एक बेटी को पीएचडी कराकर शिक्षिका बलाया तो दूसरी बीएससी करने के बाद अफसर बनने की चाह में तैयारी कर रही है।

रूद्रपुर-रिक्शा चलाकर दो बच्चों को बनाया शिक्षक तो एक को वकील, पढ़िये इस पिता का संघर्ष

वहीं दोनों बेटों में एक को वकील तो दूसरे को शिक्षक बनाया है। उनकी गरीबी का बच्चों की पढ़ाई पर कोई बसर न पडे़ इसलिए उन्होने किच्छा से रुद्रपुर और रामपुर तक रिक्शा चलाया। जिससे बच्चों की फीस और उनकी जरूरतें पूरी हो सकती थी। उन्होने साक्षरता को सब कुछ मानकर अपनी संतान को कामयाम बनाने की ठान ली। उनकी बड़ी बेटी प्रतिमा संस्कृत विषय से डबल एमएए फिर पीएचडी के बाद गढ़वाल के एक विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं। वहीं छोटी़ बेटी निर्मला बीएससी की पढ़ाई के बाद सिविल की तैयारियों में लगाया है।

वहीं बड़ा बेटा शिक्षा के बाद आयकर अधिवक्ता हैं तो छोटा बेटा विश्वजीत बीएडए बीपीएड करने के बाद एक निजी विद्यालय में शिक्षक रहने के साथ ही तैयारी कर रहे हैं। रविंद्र का कहना है कि बेटी को बेटे से कम मत समझो सब बराबर हैं। उन्हें भी खूब पढ़ाओं बेटियां पढ़ेंगी तभी समाज आगे बढ़ेगा। रविन्द्र आज भी रिक्शा चलाते है उनका कहना की उनके जिस काम ने उन्हें इतनी बडी सफलता दिलाई है, वह उस काम को ऊर्म के अनुसार अभी नही छोड़ना चाहते।