बरेली के रुहेलखंड विवि के एनएसएस स्वयंसेवक ने कैंसर दिवस पर दी ये महत्वपूर्ण जानकारी, पढि़ए

न्यूज टुडे नेटवर्क, बरेली। रुहेलखंड विवि के एनएसएस स्वयं सेवक मोहित शर्मा ने बताया कि भारत में कैंसर के करीब दो तिहाई मामलों का बहुत देर से पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। लोगों को कैंसर होने के संभावित कारणों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से ही हर साल 4 फरवरी को “विश्व कैंसर दिवस” मनाया जाता है।

वास्तव में यह महज एक दिवस भर नहीं है बल्कि कैंसर से लड़ रहे उन तमाम लोगों में नई चेतना का संचार करने और नई उम्मीद पैदा करने वाला दिवस है। इस अवसर पर ऐसे लोगों का उदाहरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है, जिन्होंने अपने जज्बे और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की बदौलत लाइलाज मानी जाने वाली इस बीमारी पर विजय प्राप्त की और सालों से स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।

ऐसी बीमारी जिसे सुनते ही परिवार वालों की सांसें गले में अटक जाती हैं
कैंसर एक ऐसा शब्द है, जिसे अपने किसी परिजन के लिए डॉक्टर के मुंह से सुनते ही परिवार के तमाम सदस्यों की सांसें गले में अटक जाती हैं और पैरों तले की जमीन खिसक जाती है। ऐसे में परिजनों को परिवार के उस अभिन्न अंग को सदा के लिए खो देने का डर सताने लगता है। इसके लिए मुख्य कारण बढ़ते प्रदूषण तथा पोषक खानपान के अभाव में यह बीमारी एक महामारी के रूप में तेजी से फैल रही है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का मानना है कि हमारे देश में पिछले 20 सालों के दौरान कैंसर पेशेंट की संख्या दोगुनी हो गई है हर साल कैंसर से पीड़ित लाखों मरीज मौत के मुंह में समा जाते हैं।
अब तक लाइलाज रोग माना जाता था
कुछ साल पहले तक कैंसर को लाइलाज रोग माना जाता था, लेकिन कुछ सालों में ही कैंसर के उपचार की दिशा में क्रांतिकारी रिसर्च हुई और अब अगर समय रहते कैंसर की पहचान कर ली जाए तो उसका उपचार किया जाना काफी हद तक संभव है। कैंसर के संबंध में यह समझ लेना बेहद जरूरी है कि यह बीमारी किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकती है पर अगर इसका सही समय पर पता लग जाए तो इस बीमारी का उपचार अब संभव है यही वजह है कि देश में कैंसर के मामलों को कम करने के लिए कैंसर और उसके कारणों के प्रति लोगों को जागरूक किए जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि वे इस बीमारी इसके लक्षणों और इसके भयावह खतरे के प्रति जागरूक रहें।
कैंसर के प्रति लोगों में जागरूकता जरूरी
कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने का सबसे बेहतर और मजबूत तरीका यही है कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता हो, जिसके चलते जल्द से जल्द इस बीमारी की पहचान हो सके और शुरुआती चरण में ही इसका इलाज संभव हो सके। यदि कैंसर का पता लगा लिया जाए तो उसके उपचार पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाता है और यही वजह है कि जागरूकता के जरिए इस बीमारी को शुरुआती दौर में ही पहचान लेना बेहद जरूरी माना गया है, क्योंकि ऐसे मरीजों के इलाज के बाद उनके स्वास्थ्य एवं सामान्य जीवन जीने की संभावना काफी ज्यादा होती है।
हालांकि देश में कैंसर के इलाज की तमाम सुविधाओं के बावजूद अगर हम इस बीमारी पर लगाम लगाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं, तो इसके पीछे इस बीमारी का इलाज महंगा होना सबसे बड़ी समस्या है वैसे देश में सुविधाओं का अभाव भी कैंसर के इलाज में एक बड़ी रुकावट है। जो बहुत से मामलों में इस बीमारी के देर से पता लगने का एक अहम कारण होता है। इसी के तहत विश्व कैंसर दिवस की थीम ‘मैं हूं और मैं रहूंगा’ रखी गई हैं जिससे लोगो को अधिक से अधिक जागरूक किया जा सके।
प्रमुख कारण और लक्षण
मोटापा, शारीरिक सक्रियता का अभाव, ज्यादा मात्रा में अल्कोहल, नशीले पदार्थों का सेवन, पौष्टिक आहार की कमी इत्यादि इन कारणों में शामिल हो सकते हैं। कभी कभार ऐसा भी होता है कि कैंसर के कोई भी लक्षण नजर नहीं आते किंतु किसी अन्य बीमारी के इलाज के दौरान कोई जांच कराते वक्त अचानक पता चलता है कि मरीज को कैंसर है, लेकिन फिर भी कई ऐसे लक्षण हैं जिनके जरिए अधिकांश व्यक्ति कैंसर के शुरुआती स्टेज में ही पहचान कर सकते हैं।
ये हैं कैंसर के प्रमुख लक्षण
वजन का घटते जाना, निरंतर बुखार का बने रहना, शारीरिक थकान और कमजोरी होना,चक्कर का आना, दौरे पड़ना,आवाज में बदलाव,सांस में दिक्कत, खांसी के दौरान खून आना, कुछ भी निगलने में दिक्कत,शरीर के किसी भी हिस्से में गांठ या सूजन इत्यादि का होना।
ये है इलाज
वैसे तो कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी,बायोलॉजिकल थेरेपी, स्टेम सेल ट्रांसप्लांट इत्यादि के जरिए कैंसर का इलाज होता है. किंतु यह अक्सर इतना महंगा होता है कि एक गरीब व्यक्ति इसका खर्च उठाने में सक्षम नहीं होता,इसलिए जरूरत इस बात की महसूस की जाती है कि कैंसर के सभी मरीजों का इलाज सरकारी अस्पतालों में हो या निजी अस्पतालों में सरकार ऐसे मरीजों के इलाज में यथासंभव सहयोग करे क्योंकि जिस तेजी से देश में कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए केवल सरकारी अस्पतालों के भरोसे कैंसर मरीजों के इलाज की कल्पना करना बेमानी होगी, इसके लिए सरकार को आगे आकर हर संभव प्रयास करने की जरूरत है।