यात्रीगण कृपया ध्यान दें : अब रेलवे स्टेशनों पर प्लास्टिक या पेपर कप में नहीं मिलेगी चाय, जानिए क्या है वजह…

नई दिल्ली-न्यूज टुडे नेटवर्क। उत्तर रेलवे एवं उत्तर पूर्व रेलवे के मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक बोर्ड की ओर से जारी परिपत्र के अनुसार रेल मंत्री पीयूष गोयल ने वाराणसी और रायबरेली स्टेशनों पर खान-पान का प्रबंध करने वालों को टेराकोटा या मिट्टी से बने ‘कुल्हड़ों’, ग्लास और प्लेट के इस्तेमाल का निर्देश दिया है। अधिकारियों ने
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यात्रीगण कृपया ध्यान दें : अब रेलवे स्टेशनों पर प्लास्टिक या पेपर कप में नहीं मिलेगी चाय, जानिए क्या है वजह…

नई दिल्ली-न्यूज टुडे नेटवर्क। उत्तर रेलवे एवं उत्तर पूर्व रेलवे के मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक बोर्ड की ओर से जारी परिपत्र के अनुसार रेल मंत्री पीयूष गोयल ने वाराणसी और रायबरेली स्टेशनों पर खान-पान का प्रबंध करने वालों को टेराकोटा या मिट्टी से बने ‘कुल्हड़ों’, ग्लास और प्लेट के इस्तेमाल का निर्देश दिया है। अधिकारियों ने बताया कि इस कदम से यात्रियों को न सिर्फ ताजगी का अनुभव होगा बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रहे स्थानीय कुम्हारों को इससे बड़ा बाजार मिलेगा।

यात्रीगण कृपया ध्यान दें : अब रेलवे स्टेशनों पर प्लास्टिक या पेपर कप में नहीं मिलेगी चाय, जानिए क्या है वजह…

कुल्हड़ों इस्तेमाल करें सुनिश्चित

सर्कुलर के अनुसार, ‘जोनल रेलवे और आईआरसीटीसी को सलाह दी गई है कि वे तत्काल प्रभाव से वाराणसी और रायबरेली रेलवे स्टेशनों की सभी ईकाइयों में यात्रियों को भोजन या पेय पदार्थ परोसने के लिए स्थानीय तौर पर निर्मित उत्पादों, पर्यावरण के अनुकूल टेराकोटा या पक्की मिट्टी के कुल्हड़ों, ग्लास और प्लेटों का इस्तेमाल सुनिश्चित करें ताकि स्थानीय कुम्हार आसानी से अपने उत्पाद बेच सकें।’

यात्रीगण कृपया ध्यान दें : अब रेलवे स्टेशनों पर प्लास्टिक या पेपर कप में नहीं मिलेगी चाय, जानिए क्या है वजह…

खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष पिछले साल दिसंबर में यह प्रस्ताव लेकर आये थे। उन्होंने गोयल को पत्र लिखकर यह सुझाव दिया था कि इन दोनों स्टेशनों का इस्तेमाल इलाके के आस पास के कुम्हारों को रोजगार देने के लिए किया जाना चाहिए।

कुम्हार समुदाय ने रेलवे का किया शुक्रिया

केवीआईसी अध्यक्ष वी के सक्सेना ने बताया, ‘हमें बिजली से चलने वाले चाक दिए गए हैं जिससे हमारी उत्पादकता बढ़ गई है। इसकी मदद से हम दिन में 100 से लेकर करीब 600 कप बना लेते हैं। ऐसे में यह अहम हो जाता है कि हमें अपना उत्पाद बेचने और आय के लिए एक बाजार मिले। हमारे प्रस्ताव पर रेलवे के सहमत होने से लाखों कुम्हारों को अब तैयार बाजार मिल गया है।’

यात्रीगण कृपया ध्यान दें : अब रेलवे स्टेशनों पर प्लास्टिक या पेपर कप में नहीं मिलेगी चाय, जानिए क्या है वजह…
उन्होंने कहा कि हमारे लिए यह जीत की तरह है। समूचा समुदाय रेलवे का शुक्रगुजार रहेगा और उम्मीद करते हैं कि आखिरकार हम समूचे रेल नेटवर्क में इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। उम्मीद है कि दोनों स्टेशनों की मांग पूरी करने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उत्पादन ढाई लाख प्रतिदिन तक पहुंचेगा।