अब उत्तराखंड में भी ले सकेंगे नीदरलैंड के सेब का स्वाद , इस जिले में होगी पैदावार

देवभूमि पहाड़ी फलों के उत्पादन के लिये हमेशा से ही जाना जाता है, यहां की पथरीली जमीन पौष्टिक फलों का उत्पादन करने में लोगों के लिये बेहद फायदेमंद साबित होती है। उत्तराखंड के हर जिले मे अनेक प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। बात अगर चम्पावत जिले की करे तो यहां इन दिनों
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अब उत्तराखंड में भी ले सकेंगे नीदरलैंड के सेब का स्वाद , इस जिले में होगी पैदावार

देवभूमि पहाड़ी फलों के उत्पादन के लिये हमेशा से ही जाना जाता है, यहां की पथरीली जमीन पौष्टिक फलों का उत्पादन करने में लोगों के लिये बेहद फायदेमंद साबित होती है। उत्तराखंड के हर जिले मे अनेक प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। बात अगर चम्पावत जिले की करे तो यहां इन दिनों नीदरलैंड की प्रजाति के सेब का उत्पादन किया जा रहा है। चम्पावत में तीन साल पहले नीदरलैंड की फ्लोरिंग नर्सरी से सन लाइट व मौन लाइट प्रजाति के 80 तथा सीआईटीएस जम्मू कश्मीर से 20 पौध लाकर खेतीखान में लगाए गए थे।

इस बार इन पेड़ों पर फल आने से काश्तकारों में खुशी की लहर दौड़ रही है। यहां 100 पौधों में आठ क्विंटल से अधिक सेब का उत्पादन हुआ है।जिसको देखकर अब बायफ संस्था ने यहां गोल्डलेनए रेडलेनए सनलाइटए मून लाइट के पौधों की नर्सरी तैयार करने का निर्णय लिया है। सेब की इन प्रजातियों की विशेषता यह है कि यह महज छह फिट तक लंबे होते हैं तथा एक नाली में 800 से 1200 पेड़ लगाए जा सकते हैं।ये पेड़ तीन वर्ष के अंदर ही फल देने लग जाते हैं। जबकी परंपरागत सेब के पेड़ पांच से छह साल में फल देते हैं।

बायफ परियोजना निदेशक डॉ. दिनेश रतूड़ी ने बताया कि आज से तीन वर्ष पूर्व बायफ ने बंजर पड़े खेतों में नीदरलैंड का सेब उगाने का निर्णय लिया था और इसके लिए करीब 100 पौधे लगाए गए थे। उन्होने बताया कि इन पेड़ों में इस बार आठ क्विंटल से भी अधिक सेब लगा है। सेब की बाजार में अधिक मांग होने के कारण इसे स्थानीय बाजारों में भी पहुंचाया दिया गया है। सेब की पैदावार देख अब खेतीखान के बांजगांव व मानर गांव में नीदरलैंड के सेब की नर्सरी तैयार की जा रही है। इस नर्सरी के पौधे काश्तकारों को भी उपलब्ध किये जायेंगे।

एक पेड़ में लगते है, करीबन 20 किलो सेब

नीदरलैंड के इस सेब की प्रजाति के एक पेड़ में 20 किलो तक फल लगते हैं। इनका स्वाद भी बेहद अच्छा है। चम्पावत का वातावरण इस सेब की खेती के लिये काफी उपयुक्त है। जिस कारण सेब का अधिक उत्पादन होने से इसका प्रयोग सफल हुआ है।