नई दिल्ली- उत्तराखंड के रामगढ़ से जाने क्या है रबींद्रनाथ टैगोर का नाता, पढ़े उनके बारे में दिलचस्प तत्व

कविगुरु जिन्होंने मोहन चंद करम चंद गांधी को महात्मा नाम दिया, का उत्तराखंड में आगमन 1903, 1914 एवं 1937 में हुआ। गुरूदेव द्वारा इन अवधियों में उत्तराखडं की सास्ंकृतिक नगरी अल्मोडा एवं अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध पहाडी़ क्षेत्र रामगढ में प्रवास किया। अपने उत्तराखंड प्रवास के दौरान गुरूदेव द्वारा ”गीतांजली“ के कुछ भाग
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नई दिल्ली- उत्तराखंड के रामगढ़ से जाने क्या है रबींद्रनाथ टैगोर का नाता, पढ़े उनके बारे में दिलचस्प तत्व

कविगुरु जिन्होंने मोहन चंद करम चंद गांधी को महात्मा नाम दिया, का उत्तराखंड में आगमन 1903, 1914 एवं 1937 में हुआ। गुरूदेव द्वारा इन अवधियों में उत्तराखडं की सास्ंकृतिक नगरी अल्मोडा एवं अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध पहाडी़ क्षेत्र रामगढ में प्रवास किया। अपने उत्तराखंड प्रवास के दौरान गुरूदेव द्वारा ”गीतांजली“ के कुछ भाग की रचना के साथ ही आधुनिक विज्ञान पर आधारित ग्रंथ ”विश्व परिचय“ की रचना की गई। कविगुरु ने उत्तराखंड प्रवास में खगोल विज्ञान, इतिहास, संस्कृत के साथ ही कालिदास की शास्त्रीय कविताओं को खूब पढ़ा साथ ही कई कविताओं की रचना भी यहीं की। इसी प्रवास के दौरान अपने बच्चों के जीवन से प्रेरित मातृविहीन बच्चों की व्यथा पर उन्होने ”शिशु“ शीर्षक से कविताओं की श्रंखला की भी रचना की।

नई दिल्ली- उत्तराखंड के रामगढ़ से जाने क्या है रबींद्रनाथ टैगोर का नाता, पढ़े उनके बारे में दिलचस्प तत्व

टैगोर टॉप से क्या है वासता

सन् 1903 ई0 में गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर अपनी बेटी रेणुका के स्वास्थ्य लाभ के लिए रामगढ आये थे। काठगोदाम से पैदल चलते हुए जब वे भीमताल पहुँचे तो उनके एक प्रशंसक स्विट्जरलैण्ड निवासी मिस्टर डेनियल उनके स्वागत हेतु आये और गुरुदेव को अपने साथ रामगढ लाये। पहले तो वे डैनियल के अतिथि के रुप में उसके बगंले में रहे, खण्डहर में तब्दील हो चुके इस बगंले को स्थानीय लोग आज भी ”शीशमहल“ के नाम से जानते हैं। कुछ ही दिनों बाद डेनियल ने गुरुदेव के लिए एक सबसे ऊँची चोटी पर एक भवन बनवाया। इस जगह को आज “टैगोर टॉप” के नाम से जाना जाता है। इस बात के भी प्रमाण है कि टैगोर ने अपनी कालजयी रचना ‘गीतांजलि’ का कुछ हिस्सा रामगढ़ में लिखा। वही प्रसिद्ध कवि रबींद्रनाथ टैगोर ने भारत का राष्ट्रगान लिखा।

राष्ट्रगान………..

जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जय गाथा।
जन गण मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

शांतिनिकेतन का अधूरा सपना

यह बहुत महत्वपूर्ण बात इसलिए है कि टैगोर बंगाल के रहने वाले थे, जिसके करीब ही पहाड़ों की रानी कहा जाने वाला दार्जिलिंग है, इसके बावजूद टैगोर ने ‘गीतांजलि’ के कुछ हिस्से लिखने के लिए रामगढ़ को चुना। रामगढ़ के लोग बताते हैं कि गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर शांतिनिकेतन की स्थापना रामगढ़ में ही करना चाहते थे, लेकिन क्षयरोग से पीड़ित बेटी के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं होने और उसका स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ने से गुरुदेव निराश होकर यहाँ से चले गए और गुरुदेव का रामगढ में शांतिनिकेतन की स्थापना का सपना पूरा नहीं हो सका।

नई दिल्ली- उत्तराखंड के रामगढ़ से जाने क्या है रबींद्रनाथ टैगोर का नाता, पढ़े उनके बारे में दिलचस्प तत्व

शांतिनिकेतन का इतिहास

शांति निकेतन पश्चिम बंगाल, भारत, के बीरभूम जिले में बोलपुर के निकट एक छोटा शहर है, जो कोलकाता (पहले कलकत्ता) के लगभग 180 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस शहर को प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बनाया था। टैगोर ने यहाँ विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की थी और यह शहर प्रत्येक वर्ष हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है। शांति निकेतन एक पर्यटन आकर्षण इसलिए भी है क्योंकि टैगोर ने अपनी कई साहित्यिक कृतियाँ यहाँ लिखीं थीं और यहाँ स्थित उनका घर ऐतिहासिक महत्व रखता है।

शांति निकेतन पहले Bhubandanga बुलाया (Bhuban Dakat, एक स्थानीय डाकू के नाम) गया था और टैगोर परिवार के स्वामित्व में था। 1861 में, महर्षि देवेंद्रनाथ जबकि रायपुर के लिए एक नाव यात्रा पर टैगोर, लाल मिट्टी और हरे भरे धान के खेतों के Meadows के साथ एक परिदृश्य में आए थे। Chhatim पेड़ों की तारीख और हथेलियों की पंक्तियाँ उसे मन मोह लिया। वह देखना बंद कर दिया, के लिए अधिक पौधे संयंत्र और एक छोटा सा घर बनाया का फैसला किया। उसने फोन अपने घर शांति के निवास () शांति निकेतन. शांति निकेतन एक आध्यात्मिक, जहां सभी धर्मों के लोगों के लिए ध्यान और प्रार्थना में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया केंद्र बन गया। वह स्थापना ‘एक’ आश्रम यहाँ 1863 में और ब्रह्म समाज के चालक बन गए।

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