नैमिषारण्य जाने मात्र से ही मिल जाती है पापों से मुक्ति, यहां की यात्रा किए बिना सारी यात्राएं अधूरी, जानिए क्या है यहां खास

नैमिषारण्य तीर्थ स्थल का इतिहास- उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सीतापुर 92 किमी की दूरी पर स्थित है, यही वह पवित्र जगह है जहां महापुराण लिखे गएं, नाम है नैमिषारण्य। नैमिषारण्य सतयुग से ही प्रसिद्ध है। इस पवित्र स्थान पर आकर लोग अपने पाप से मुक्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि नैमिषारण्य
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नैमिषारण्य जाने मात्र से ही मिल जाती है पापों से मुक्ति, यहां की यात्रा किए बिना सारी यात्राएं अधूरी, जानिए क्या है यहां खास

नैमिषारण्य तीर्थ स्थल का इतिहास- उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सीतापुर 92 किमी की दूरी पर स्थित है, यही वह पवित्र जगह है जहां महापुराण लिखे गएं, नाम है नैमिषारण्य। नैमिषारण्य सतयुग से ही प्रसिद्ध है। इस पवित्र स्थान पर आकर लोग अपने पाप से मुक्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि नैमिषारण्य का भम्रण करने पर आदमी मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। पुराणों में इस स्थान को नैमिषारण्य, नैमिष या नीमषार के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सारे धामों की यात्रा करने के बाद यदि इस धाम की यात्रा न की गई तो आपकी यात्रा अपूर्ण है। इस धाम का वर्णन पुराणों में भी पाया जाता है। यह वह जगह है, जहां पर पहली बार सत्यनारायण की कथा हुई थी। इसी तपोभूमि पर ही ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए अपने वैरी देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां दान की थीं।

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नैमिषारण्य का पौराणिक महत्त्व

ऐसा भी कहा जाता है कि नैमिषारण्य का यह नाम नैमिष नामक वन की वजह से रखा गया है। इस जंगल का भी बड़ा महत्त्व है। इसके पीछे कहानी यह है कि महाभारत युद्ध के बाद साधु-संत जो कलियुग के प्रारंभ के विषय में अत्यंत चिंतित थे, वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। कलियुग के दुष्प्रभावों से चिंतित साधु-संतों ने ब्रह्मा जी से किसी ऐसे स्थान के बारे में बताने के लिए कहा जो कलियुग के प्रभाव से अछूता रहे। बह्माजी ने एक पवित्र चक्र निकाला और उसे पृथ्वी की तरफ घुमाते हुए बोले कि जहां भी यह चक्र रुकेगा, वही स्थान होगा जो कलियुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा। संत इस चक्र के पीछे-पीछे आए जो कि नैमिष वन में आकर रुका। इसीलिए साधु-संतों ने इसी स्थान को अपनी तपोभूमि बना लिया।
ब्रह्म जी ने स्वयं इस स्थान को ध्यान योग के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान बताया था। प्राचीन काल में 88 हजार ऋषि -मुनियों ने इस स्थान पर तप किया था। रामायण में उल्लेख मिलता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया था और महर्षि वाल्मीकि, लव-कुश भी उन्हें यहीं मिले थे। महाभारत काल में यहां पर युधिष्ठिर और अर्जुन भी आए थे।

नैमिषारण्य के प्रमुख आकर्षण केन्द्र

चक्रतीर्थी, भेतेश्वरनाथ मंदिर,व्यास गद्दी, हवन कुंड, ललिता देवी का मंदिर, पंचप्रयाग, शेष मंदिर, क्षेमकाया, मंदिर, हनुमान गढ़़ी, शिवाला-भैरव जी मंदिर, पंच पांडव मंदिर, पंचपुराण मंदिर, मां आनंदमयी आश्रम, नारदानन्द सरस्वती आश्रम-देवपुरी मंदिर, रामानुज कोट, अहोबिल मंठ और परमहंस गौड़ीय मठ आदि।

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चक्रतीर्थ

यह एक गोलाकार पवित्र सरोवर है। लोग इसमें स्नान कर परिक्रमा करते हैं। आप इसमें उतर जाएं फिर इसका अद्भुत जलप्रवाह आपको अपने आप परिक्रमा कराता है। आपको लगेगा एक चक्कर और लगाया जाए। इसमें चक्रनुमा गोल घेरा है, जिसके अंदर एवं बाहर जल है। ब्रम्हा जी द्वारा छोड़ा गया चक्र इसी स्थल पर गिरा था। पूरी दुनिया में इस चक्रतीर्थ की मान्यता है कहते है की इस पावन चक्रतीर्थ के जल में स्नान करने से मनुष्य समस्त पापो से छुटकारा पा जाता है। कहा जाता है कि यहां पर पाताल लोक के अक्षय जल स्रोत से जल आता है।

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ललिता देवी मन्दिर

चक्रतीर्थ में स्नान करने के बाद आप ललिता देवी मन्दिर अवश्य जाएं इस मंदिर में साल भर भक्तो का तांता लगा रहता है, ललिता देवी का मंदिर बहुत पुराना मंदिर है कुछ लोग इस पवित्र मन्दिर को लिंगधारिणी भी कहते है, इस मन्दिर का आधार काफी सुन्दर बना हुआ है। इस मन्दिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। जब देव-दानव का युद्ध हो रहा था तो ब्रम्हा जी के कहने पर ललिता देवी दानवो के संहार के लिए इस स्थान पर प्रकट हुई थी। पंचप्रयाग नाम का एक छोटा सा पवित्र कुण्ड ललिता देवी मंदिर के समीप ही है कुछ लोग यहां भी स्नान या यहां के जल का आचमन करते है।

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व्यास गद्दी

यहाँ वेद व्यास ने वेद को चार मुख्य भागों में विभाजित किया और पुराणों का निर्माण किया। उन्होंने अपने शिष्यों जैमिनी, वैशम्पायन, शुक देव, सुथ, अंगीरा और पैल को श्रीमद् भगवद्गीता और पुराणों का उपदेश किया। यहाँ एक प्राचीन बरगद का पेड़ है जिसे आशीर्वाद माना जाता है और माना जाता है कि जो इस पेड़ के नीचे योग करता है वह असाध्य रोग से छुटकारा पा सकता है।

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हनुमान गढ़ी

पाताल लोक में अहिरावण पर अपनी जीत के बाद भगवान हनुमान पहले यहाँ प्रकट हुए थे, इसलिए यह जगह उनके भक्तों के लिए उच्च महत्व रखती है। भगवान हनुमान की पत्थर की नक्काशी वाली एक शानदार मूर्ति है, जिसमें भगवान राम और लक्ष्मण उनके कंधों पर बैठे हैं। मंदिर को दक्षिणेश्वर भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान हनुमान की प्रतिमा यहाँ दक्षिण की ओर मुख करके स्थित है।

नैमिषारण्य तीर्थ में कहां पर रुकें

नैमिषारण्य में रुकने के लिए कई धर्मशालाएं कई होटल आपको मिल जायेंगे, यहां ठहरने की कोई भी समस्या नहीं है आप जाइये नैमिषारण्य और आराम से रूककर वहां का सारे धर्मस्थल देख सकते हैं। यदि आप ऑनलाइन बुकिंग करना चाहते तो आप इस वेबसाइट http://namisharanya.com  पर जाकर कर बुक करा सकते हैं।

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कैसे पहुचें नैमिषारण्य तीर्थ स्थल सीतापुर

नैमिषारण्य तीर्थ उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर जिले में स्थित है, नीमसार सीतापुर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है, लखनऊ से इसकी दूरी वही 82-88 किमी. लगभग होगी नीमसार के निकट ही हरदोई जनपद भी है हरदोई से नीमसार की दूरी 40 किलोमीटर है तो यहां पहुचने के कई सारे रास्ते है।

वायु मार्ग- यदि आप वायुमार्ग से जाना चाहते है तो Naimisharanya Neemsaar Tirth Sitapur का सबसे निकटवर्ती हवाई अड्डा लखनऊ का अमौसी एअरपोर्ट है तो आप सबसे पहले अमौसी एअरपोर्ट आइये फिर वहा से आपको तमाम साधन मिल जायेंगे।

रेल मार्ग- यदि आप रेलवे मार्ग से जाना चाहते है तो दोस्तों यहां का रेलवे स्टेशन बहुत ही छोटा है फिर भी मै आपको बताना चाहूँगा की कानपुर और बालामऊ के रेलवे स्टेशन से नीमसार के लिए पैसेंजर ट्रेन उपलब्ध है, अच्छा बालामऊ हरदोई से 40 किलोमीटर आगे है और बालामऊ के लिए आपको कई ट्रेन मिल जाएँगी।

सडक़ मार्ग– यदि आप सडक़ मार्ग से आना चाहते है तो आपको लखनऊ, सीतापुर , हरदोई से आपको बड़ी आसानी से साधन मिल जायेंगे।