लोस 2019 : बेरोजगारी पर उम्मीदवारों की चुप्पी, अतीत में खो गया कानपुर की बंद मिलों का चुनावी मुद्दा, वजह है ये…

कानपुर-न्यूज टुडे नेटवर्क : उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे बसा औद्योगिक शहर कानपुर देश की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों मे से एक है। इसे ‘लेदर सिटी’ के नाम से भी जाना जाता है। एक दौर में कपड़ा उद्योग के चलते इसे ‘पूर्व का मैनचेस्टर’ कहा जाता था। लेकिन वक्त और सरकार की उपेक्षा के
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लोस 2019 : बेरोजगारी पर उम्मीदवारों की चुप्पी, अतीत में खो गया कानपुर की बंद मिलों का चुनावी मुद्दा, वजह है ये…

कानपुर-न्यूज टुडे नेटवर्क : उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे बसा औद्योगिक शहर कानपुर देश की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों मे से एक है। इसे ‘लेदर सिटी’ के नाम से भी जाना जाता है। एक दौर में कपड़ा उद्योग के चलते इसे ‘पूर्व का मैनचेस्टर’ कहा जाता था। लेकिन वक्त और सरकार की उपेक्षा के चलते यह शहर अपनी पहचान खोता चला गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो उम्मीदवारों ने मिलों को चालू कराने के मुद्दे पर चुप्पी साध ली है। कोई भी उम्मीदवार किसी भी जनसभा में अब इसे मुद्दा नहीं बना रहा है जिससे कानपुर की जनता अब यह समझने लगी है कि अब शायद ही कानपुर की चिमनियों से धुआं निकल पायेगा।

लोस 2019 : बेरोजगारी पर उम्मीदवारों की चुप्पी, अतीत में खो गया कानपुर की बंद मिलों का चुनावी मुद्दा, वजह है ये…

कानपुर में उद्योग की शुरुआत अंग्रेजों के समय हुई

देश की आजादी तक कानपुर ने भारत ही नहीं एशिया में औद्योगिक नगरी के रूप में अपनी पहचान बना ली। दूर दराज के लोगों को रोजगार पाने का कानपुर माध्यम बन गया था। 1995 आते-आते धीरे-धीरे यहां की मिलें बंद होती गईं और लोगों का रोजगार छिनता चला गया। हालांकि लाल इमली चलती रही पर आज उसकी भी स्थित दयनीय हो गयी है और इन दिनों बंदी पर है। इसके साथ ही वेतन न मिलने से कर्मचारियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कानपुर की बीआईसी व एनटीसी की बंद मिलें बीते लगभग तीन दशकों से विभिन्न सियासी दलों के लिए वोट बटोरने का जरिया बनती चली गर्इं, लेकिन चुनाव बाद किसी दल या नेता ने इन्हें बदहाली से उबारने की कोशिश नहीं की। इसे यूं भी कह सकते हैं कि बीते चुनावों में जीता-हारा कोई भी हो लेकिन बंद मिलों की चिमनियां ठंडी ही पड़ी रहीं हैं।

लाल झंडे की हड़तालों ने बिगाड़ा खेल

ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन (बीआईसी) की एल्गिन मिल नंबर एक व नंबर दो, लाल इमली, एनटीसी की म्योर मिल या लक्ष्मीरतन जैसी पांच बड़ी मिलों का एक समय धुआं बराबर निकलता था। इसके साथ ही कानपुर में करीब एक दर्जन मिलों से हजारों कामगारों की रोजी-रोटी जुड़ी थी। इन मिलों में मशीनों का नवीनीकरण न करने और प्रबंधन की खामियों के चलते भारी कर्ज बढ़ता गया। रही सही कसर लाल झंडे (कम्युनिस्टों) के नेतृत्व में होने वाली हड़तालों ने पूरी कर दी। हड़ताल होने से यहां की मिलें भारी घाटे में चलने लगी और धीरे-धीरे इनमें ताला पड़ता गया।

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1995 के बाद शुरू हुआ आरोप-प्रत्यारोप का दौर

ब्रिटिश काल से चल रही इन मिलों की आर्थिक दशा 1990 तक इतनी बिगड़ गयी कि इन मिलों पर बंदी का खतरा मंडराने लगा। सरकार, प्रबंधन या कर्मचारी यूनियनों, किसी भी पक्ष ने मिलों की बदहाली या इन पर मंडरा रहे बंदी के खतरे को गंभीरता ने नहीं लिया। नतीजतन वर्ष 1995 आते-आते लाल इमली छोड़ शेष लगभग सभी मिलें बंद हो गईं। इसके बाद शुरू हुआ इन बंद मिलों का सियासी इस्तेमाल। चुनाव ही नहीं इसके आगे-पीछे भी कानपुर आने वाले सभी सियासी दलों के नेताओं ने मिलों की बंदी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के साथ-साथ आश्वासनों और घोषणाओं का सिलसिला शुरू कर दिया लेकिन इन मिलों की चिमनियों से धुआं नहीं निकल सका और लोग बेरोजगार होते चले गए।

अटल से लेकर मोदी तक ने किया वादा

इन मिलों की चिमनियों से धुआं उगलने की आस 1996 में बंधी थी। जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फूलबाग मैदान की चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए कहा था कि अगर भाजपा सरकार में आई तो कानपुर की बंद मिलों में से कम से कम एक को तत्काल चालू करा दिया जाएगा। इसके बाद वर्ष 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 यानी बारहवीं लोकसभा से लेकर सोलहवीं लोकसभा के चुनावों तक मिलों की बंदी कानपुर से चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों और सियासी दलों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा बनी रही। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने भी यहां की मिलों को चालू करने का वादा किया था।

लोस 2019 : बेरोजगारी पर उम्मीदवारों की चुप्पी, अतीत में खो गया कानपुर की बंद मिलों का चुनावी मुद्दा, वजह है ये…

इस बार तो मुद्दा ही नहीं बना

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावों में यहां की मिलों को चालू करने का वादा भी किया था लेकिन अबकी बार लोकसभा चुनाव में तो मिलों को चालू करने का मुद्दा ही नहीं बन पाया। किसी भी पार्टी का उम्मीदवार जनसभाओं में इस बात की अब चर्चा भी नहीं कर रहा है जिससे रोजगार की आस लगाये यहां की जनता अब टूटती दिख रही है।

प्रदेश में भाजपा सरकार आने से बंधी थी आस

इंडियन इंड्रस्ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए) के अध्यक्ष सुनील वैश्य का कहना है कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार आई तो उम्मीद बंधी थी कि प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ के चलते कानपुर की मिलें चालू हो होंगी। यह उम्मीद तब और बढ़ गयी जब प्रदेश सरकार ने कानपुर से दो विधायकों को मंत्री बना दिया लेकिन आज भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। यह अलग बात है कि डिफेंस, इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल एवं होजरी, चमड़ा की जरुरतों के आधार पर बनने वाले टूल रुम का शिलान्यास 18 अक्टूबर 2016 को अथर्टन मिल परिसर में केंद्रीय एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्र ने किया था।

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शहर की शान हो सकती हैं एनटीसी और बीआईसी

सुनील वैश्य का कहना है कि एक समय था जब मिलों के सायरन से यह शहर चलता था। अगर ये मिलें चालू हुईं तो फिर शहर की शान हो सकती हैं। नगर में एनटीसी के अर्न्तगत लक्ष्मी रतन काटन मिल, अथर्टन वेस्ट काटन मिल, स्वदेशी काटन मिल, न्यू विक्टोरिया मिल और म्योर मिल आती हैं। इसी तरह बीआईसी के अर्न्तगत लाल इमली, एल्गिन मिल नंबर एक, एल्गिन मिल नंबर दो आती हैं।