दुल्ला भट्टी की कहानियों के साथ आज मनेगी लोहड़ी, जानें महत्व और परंपराएं

न्यूज टुडे नेटवर्क। देशभर में आज लोहड़ी का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। हालांकि कोरोना संकट के कारण इस बार लोहड़ी मेलों का आयोजन नहीं हो सकेगा। यह उत्तर भारत का प्रमुख पर्व है। लोहड़ी का त्योहार फसल की कटाई और बुआई के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन लोग आग
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दुल्ला भट्टी की कहानियों के साथ आज मनेगी लोहड़ी, जानें महत्व  और परंपराएं

न्‍यूज टुडे नेटवर्क। देशभर में आज लोहड़ी का त्‍यौहार हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जा रहा है। हालांकि कोरोना संकट के कारण इस बार लोहड़ी मेलों का आयोजन नहीं हो सकेगा। यह उत्तर भारत का प्रमुख पर्व है। लोहड़ी का त्योहार फसल की कटाई और बुआई के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन लोग आग जलाकर इसके इर्द-गिर्द नाचते-गाते और खुशियां मनाते हैं। आग में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक डालने और इसके बाद इसे एक-दूसरे में बांटने की परंपरा है। आज के दिन सुबह और दिन में गुरूद्वारोंं में अरदास पाठ, लंगर और शाम को लोहड़ी जलाकर त्‍यौहार मनाया जाएगा।

ये त्योहार मकर संक्रांति के एक दिन पहले आता है। पंजाब और हरियाणा के लोग इसे बेहद धूम-धाम से मनाते हैं। आज के दिन आग में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाने का रिवाज होता है। लोहड़ी का त्‍यौहार किसानों का नया साल भी माना जाता है। लोहड़ी को सर्दियों के जाने और बसंत के आने का संकेत भी माना जाता है। कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोड़ी भी कहा जाता है।

इस दिन पॉपकॉर्न और तिल के लड्डू भी बांटे जाते हैं। इस दिन रबी की फसल को आग में समर्पित कर सूर्य देव और अग्नि का आभार प्रकट किया जाता है। आज के दिन किसान फसल की उन्नति की कामना करते हैं.

दुल्ला भट्टी की कहानी बेहद महत्‍व

लोहड़ी के दिन अलाव जलाकर उसके इर्द-गिर्द डांस किया जाता है. इसके साथ ही इस दिन आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है। लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है। मान्यता है कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स पंजाब में रहता था। उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। कहते हैं तभी से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाने की पंरापरा चली आ रही है।

इस पर्व का संबंध हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत् और मकर संक्रांति से भी बताया गया है। पंजाब क्षेत्र में इस त्योहार (माघी संग्रांद) को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मुगल काल के दौरान सौदागर लड़कियों को खरीदते और बेचते थे। इन सौदागरों से लड़कियों को छुड़वाकर दुल्ला भट्टी लड़कियों की शादी हिंदू लड़कों से करवाता था। वह लड़कियों के रक्षक के रूप में आज भी पंजाब और हरियाणा में प्रसिद्ध है। दुल्ला भट्टी की ही याद में लोग लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं और इस दिन दुल्ला भट्टी के किस्सों को गाकर उन्हें याद करते हैं।

लोहड़ी का त्योहार धीरे-धीरे पूरे भारत के साथ अब पूरे विश्व में मनाया जाने लगा है। यह त्योहार दुल्ला भट्टी की याद में तो मनाया ही जाता है साथ ही इस दौरान किसान अपनी अच्छी फसलों के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं। फसलों के भविष्य के लिए भी किसान ईश्वर से कामना करते हैं। इस त्योहार के दौरान बच्चे लोगों के घरों में जाकर लोक गीत सुनाते हैं और बदले में उन्हें मिठाई या पैसे मिलते हैं।
त्योहार के दौरान घर की चौखट से बच्चों को खाली हाथ लौटाना शुभ नहीं माना जाता। रात के समय लोग लोहड़ी का जश्न मनाते हैं। इस दौरान लोग लोक गीत गाते हैं और एक दूसरे को लोहड़ी बांटते हैं। भोजन में भी इस त्योहार के दौरान खीर, मक्के की रोटी और सरसों के साग का बड़ा महत्व है। पंजाब, हरियाणा समेत देश के कई क्षेत्रों में इस दौरान पतंगबाजी भी की जाती है।

बरेली महानगर में पंजाबी महासभा की ओर से लोहड़ी का कार्यक्रम धूमधाम से मनाया जाता है। महासभा की ओर से लोहड़ी की पूर्व संध्‍या पर एक शाम बेटियों के नाम कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया।  जिसका शुभांरभ चौपाई साहब के पाठ से किया गया और फिर लोहड़ी प्रज्जवलित की गई। सभी महिलाओं ने गिद्दा व भांगड़ा पर नृत्य किया और गाना गाया। मुख्य अतिथि महिला जनकल्याण विभाग की डिप्टी डायरेक्टर नीता अहिरवार ने कहा कि बेटियां समाज की नींव होती हैं। उन्हें पढा लिखाकर बराबरी का स्थान दिया जाना चाहिए।