पंतनगर- उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने की ये अनोखी खोज़, अब ऐसे होगा ई-वेस्ट का निस्तारण

वैश्विक समस्या बन चुके ई-वेस्ट के निस्तारण के लिए उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने तवनीक खोल ली है। मिट्टी में इसका विघटन होता है और जलाने पर इससे निकलने वाली विषाक्त गैसें पर्यावरण सहित मानव जीवन को हानि पहुंचाती हैं। लेकिन, अब जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 18 सालों की अथक मेहनत
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पंतनगर- उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने की ये अनोखी खोज़, अब ऐसे होगा ई-वेस्ट का निस्तारण

वैश्विक समस्या बन चुके ई-वेस्ट के निस्तारण के लिए उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने तवनीक खोल ली है। मिट्टी में इसका विघटन होता है और जलाने पर इससे निकलने वाली विषाक्त गैसें पर्यावरण सहित मानव जीवन को हानि पहुंचाती हैं। लेकिन, अब जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 18 सालों की अथक मेहनत के बाद ई-वेस्ट के निस्तारण की बायोडिग्रेडेशन (जैव विघटन) तकनीक खोज निकाली है। इसका पेटेंट भी इन वैज्ञानिकों को हासिल हो गया है। इससे विश्वविद्यालय में खुशी का माहौल है।

18 वर्ष से कर रहे थे प्रयास

मृदा में विघटन न होने के कारण वर्तमान में ई-वेस्ट (बेकार कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, टीवी, रेडियो आद) का उपयोग रिसाइकिल से दोयम दर्जे का प्लास्टिक बनाने में किया जाता है। इससे सस्ते एवं घटिया मानकों के घरेलू एवं इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाए जाते हैं। ई-वेस्ट की रिसाइकिलिंग से उत्सर्जित होने वाली विषाक्त गैसें पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं। ई-वेस्ट को जमा करके रखना तथा उनका रिसाइकिलिंग से दैनिक जीवन में उपयोगी वस्तुओं के निर्माण के लिए उत्पादों में परिवर्तित करना पर्यावरण हितैषी नहीं होता है। समस्या के समाधान के लिए पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक बीते 18 वर्षों से विभिन्न प्लास्टिक पदार्थों के बैक्टीरिया द्वारा जैविक विघटन की विधि एवं तकनीक विकसित करने में लगे थे।

पंतनगर- उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने की ये अनोखी खोज़, अब ऐसे होगा ई-वेस्ट का निस्तारण

इस संबंध में विश्वविद्यालय के सीबीएसएच कॉलेज में सूक्ष्म जीव विज्ञान की पूर्व विभागाध्यक्ष व सेवानिवृत्त प्राध्यापिका डॉ. रीता गोयल, रसायन विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ. एमजीएच जैदी व उनके सहयोगी ने बैक्टीरिया समूहों द्वारा जैव विघटन विधि की तकनीक विकसित भारत सरकार को पेटेंट के लिए भेजा था। यह इंडियन पेटेंट जनरल में 31 जुलाई 2020 को प्रकाशित हुआ था। इस पेटेंट में छह क्लेम व सात तकनीकी चित्रों का समावेश है, जो विकसित तकनीक का महत्व एवं वर्तमान परिवेश में ई-वेस्ट की बढ़ती समस्या के निराकरण में सकारात्मक प्रयास को दर्शाता है। इसका पेटेंट मंगलवार चार अगस्त को हासिल हो गया। कुलपति डॉ. तेज प्रताप व निदेशक शोध डॉ. एएस नैन ने पेटेंट हासिल होने पर वैज्ञानिकों की टीम को बधाई दी है।

क्या है ई-वेस्ट बायो डिग्रेडेशन तकनीक

प्राध्यापक डॉ. गोयल एवं डॉ. जैदी ने बताया कि इस तकनीक में ई-वेस्ट के चिप्स को चूरा बनाकर मृदा में पाए जाने वाले विशिष्ट प्रकार के निश्चित मात्रा में सूक्ष्म जीवों के समूहों द्वारा विघटन कराया गया था। सात दिनों के अध्ययन में पता चला कि इनमें से कुछ जीवों ने शुरुआत के दो दिनों में विघटन शुरू कर दिया है। बताया कि साल्ट के घोल में चिन्हित सूक्ष्म जीवों को डालकर ई-वेस्ट को उसमें डालने पर पानी का रंग धीरे धीरे सफेद होने लगा और सात दिनों बाद ई-वेस्ट लगभग समाप्त हो गया।

दो पेटेंट का इंतजार

सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ. रीता गोयल को विभिन्न प्रकार की प्लास्टिकों के बायोडिग्रेडेशन (सूक्ष्म जीवों द्वारा जैव विघटन की विधि) में यूएस 9057058/2015, आईएन 27736/2016, आईएन 278739/2017 और आईएन 307178/2020 पेटेंट हासिल हो चुके हैं। डॉ. गोयल ने बताया कि उनकी दो और तकनीकें पेटेंट के लिए गई हैं, जिन्हें जल्द पेटेंट मिलने की उम्मीद है।