जानिए, कब और कहां हुआ था भगवान श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार, कहां त्यागी थी देह…

गुजराज न्यूज टुडे नेटवर्क : सोमनाथ एक ऐसी जगह है, जहां नटराज और नटवर का मिलन है। नटवर मतलब कृष्ण, जसोदा के कृष्ण, द्वारिका के राजा कृष्ण। यही सोमनाथ वो जगह है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने सांसारिक देह को त्याग कर वापस अपने गौलोक धाम को प्रस्थान किया थाा। रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग में भगवान राम और
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जानिए, कब और कहां हुआ था भगवान श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार, कहां त्यागी थी देह…

गुजराज न्यूज टुडे नेटवर्क : सोमनाथ एक ऐसी जगह है, जहां नटराज और नटवर का मिलन है। नटवर मतलब कृष्ण, जसोदा के कृष्ण, द्वारिका के राजा कृष्ण। यही सोमनाथ वो जगह है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने सांसारिक देह को त्याग कर वापस अपने गौलोक धाम को प्रस्थान किया थाा। रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग में भगवान राम और शिव का मिलन है। लेकिन सोमनाथ में कृष्ण और शिव के मिलन की अनूठी दास्तां है। मंदिर से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर एक जगह है भालका तीर्थ। एक छोटा सा मंदिर है, एक वट वृक्ष के नीचे। मंदिर के बाहर सडक़ का कोलाहल है, लेकिन अंदर एक खामोशी है। अभी मंदिर का गर्भग्रह छोडक़र बाकी पुर्ननिर्माण के चरण में हैं।

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गांधारी ने दिया था श्रीकृष्ण का ये शाप

महाभारत के मुताबिक, जब गांधारी ने सभी सौ पुत्रों की मौत हो गई तो कृष्ण गांधारी से मिलने गए।
इस दौरान विलाप करते हुए गांधारी ने कहा कि इस युद्ध में शामिल होने वाले सभी यादवों का 36 साल बाद नाश हो जाएगा। कृष्ण सब जानते थे, तो वे तथास्तु बोलकर आगे बढ़ गए। और हुआ भी वही, महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद 36 साल बाद तक यादव कुल मद में आ गए। आपस में ही झगडऩे लगे और एक दूसरे को ही खत्म करने लगे। इसी कलह से परेशान होकर कृष्ण सोमनाथ मंदिर से करीब सात किलोमीटर दूर वैरावल की इस जगह पर विश्राम करने आ गए। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जब मन खिन्न होता था तो वह द्वारिका को छोडक़र सोमनाथ के गुमनाम इलाकों में आ जाते थे। एक दफा भी ऐसा ही हुआ, जब अपने स्वजनों की वजह से वह बहुत खिन्न थे, तो द्वारिका से निकलकर इसी जगह वट वृक्ष के नीचे गहन चिंतन की मुद्रा में लेट गए।

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जब श्री कृष्ण के पैर में जा लगा तीर

वह ध्यान मुद्रा में लेटे हुए थे कि वहां से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर मौजूदा जरा नाम के भील का कुछ चमकता हुआ नजर आया। उसे लगा कि यह किसी मृग की आंख है और बस उस ओर तीर छोड़ दिया, तो सीधे कृष्ण के बाएं पैर में जा धंसा। जब जरा करीब पहुंचा तो देखकर रुदन करने लगा, उसके वाण से खुुद श्रीकृष्ण घायल हुए थे। जिसे उसने मृग की आंख समझा था, वह कृष्ण के बाएं पैर का पदम था, जो चमक रहा था। भील जरा को समझाते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि क्यों व्यर्थ विलाप कर रहे हो, यह नियति है। तुम पिछले जन्म में राजा बालि थे, जिसे मैने राम अवतार में छुपकर मारा था। वो एक नियति थी ओर आज भी एक नियति है, जिसके तहज तुमने अनजाने में मुझ पर तीर छोड़ा है।
शास्त्रों का मत है कि भगवान श्रीकृष्ण ने 17-18 फरवरी को दोपहर में 2:20 बजे इस लोक को छोडक़र अपने धाम चले गए।

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महाभारत का युद्ध कब हुआ था?

शोधानुसार महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व हुआ था। तब भगवान  55 या 56 वर्ष के थे। हालांकि कुछ विद्वान मानते हैं कि उनकी उम्र 83 वर्ष की थी।  के 36 वर्ष बाद उन्होंने देह त्याग दी थी। इसका मतलब 119 वर्ष की आयु में उन्होंने देहत्याग किया था। महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था। कुरुक्षेत्र हरियाणा में स्थित है। लड़ाई के लिए कुरुक्षेत्र का चयन श्री कृष्ण ने ही किया था।  भगवान कृष्ण की आठ पत्नियां थी जिनसे उनके 80 पुत्र प्राप्त हुए थे, इन आठ महिलाओं को अष्टा भार्या कहा जाता था। इनके नाम हैं:- अष्ट भार्या : कृष्ण की 8 ही पत्नियां थीं यथा- रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इन सभी महिलाओं से 10-10 पुत्रों का जन्म हुआ था। एक पुत्री भी थी जिसका नाम चारूमिता था।कृष्ण कुल का नाश गांधारी के शाप के चलते भगवान श्री कृष्ण के कुल का नाश हो गया था।
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जहां हुआ था श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार

द्वारका पुरी में स्थापित कस्बा सोमनथा पट्टल के पास हिरण्य, सरस्वती और कपिला इन तीन नदियों का संगम हैं। इस संगम के पास ही भगवान श्री कृष्ण जी का अंतिम संस्कार किया गया था। इस कस्बे तक पहुंचने के लिए समुद्र के रास्ते विरावल बंदरगाह पर उतरना पड़ता है इसके बाद दक्षिण पूर्व स्थित कस्बा सोमनाथ पट्टल आता है।

भगवान श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार त्रिवेणी के घाट पर किया गया, जहां आज भी उनके पदचिन्ह बने हुए हैं। इस तीर्थ को गौलोकधाम भी कहा जाता है। भील जरा ने जहां से तीर मारा था, उस जगह पर सागर के अंदर तीन शिवलिंग नजर आते हैं। कहा जाता है कि यह खुद प्रकट हुए हैं। इनका नाम वाणसागर है, कहा जाता है कि कृष्ण के शरीर छोडऩे के साथ ही द्वापर युग का अंत हो गया था और कलियुग की शुरुआत हो गई थी।

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जहां शेषनाग ने जल में समाधि ले ली

गौलोक धाम में एक अजीब सी शांति है, या कहें कि एक खामोशी है। जीवन जैसे स्थायित्व पर गया हो, कुछ पाना शेष न रहा हो, ऐसी शांति अनूभूति। हिरण, कपिला और सरस्वती नदियों का पानी भी बिल्कुल शांत है, जैसे वह भी कृष्ण के वियोग में अपना तेज और बहाव भूल सी गई हों। शांत चित्त जीवन का प्रवाह कर रही हैं तीनों नदियां।
शास्त्रो का कहना है कि यही वह जगह है जहां श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने अपने मूल शेषनाग स्वरूप कर इन नदियों में प्रवेश कर अपने धाम को चले गए थे। उनकी गुफा कृष्ण के पदचिन्हों के समीप ही है। गुफा भी खुद में एक अजीब सी सिहरन पैदा करती है। अंदर मौजूद दो बड़े छेद इस बता की गवाही देते हैं कि जैसे बड़ा सांप यहां से कहीं पर विलुप्त हुआ हो। अजीब से आनंद की अनुभ्ूाति, गजब है सोमनाथ और गजब है भालका तीर्थ।