जानिए, कैसे हाजी ने गीत की लहरियों से गंगा स्नान और वुजू को एक दर्जे में खड़ा कर दिया, देखें यह इंटरव्यू..

न्यूज टुडे नेटवर्क। बरेली हमेशा से गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल रही है। मजहब धर्म संप्रदायों और इनके झगड़ों से ऊपर उठकर बरेली ने हर बार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की है। बरेली से कई बड़े शायर और साहित्यकारों का भी जुड़ाव रहा है। आज भी तमाम कला प्रेमियों के दिलों में बरेली बसती
 | 
हाजी शकील कुरैशी का इंटरव्‍यू

न्‍यूज टुडे नेटवर्क। बरेली हमेशा से गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल रही है। मजहब धर्म संप्रदायों और इनके झगड़ों से ऊपर उठकर बरेली ने हर बार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम की है। बरेली से कई बड़े शायर और साहित्‍यकारों का भी जुड़ाव रहा है। आज भी तमाम कला प्रेमियों के दिलों में बरेली बसती है।

वर्ष 2021 में हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। ऐसे में बरेली से मां गंगा पर एक नया गीत इस समय बेहद कर्णप्रिय और लोकप्रिय हो रहा है। इस गीत में गंगा स्‍नान से लेकर वुजू तक को जिस तार्किकता के साथ पेश किया गया है वह अकाट्य है। इस गीत को मां गंगा की आस्‍था से जोड़ते हुए बताया गया है कि जिस तरह हिन्‍दू धर्म में मां गंगा का पतित पावन स्‍थान है उसी प्रकार अन्‍य धर्मों के लिए भी मां गंगा किसी जननी से कम नहीं है।

इस गीत को लिखने वाले बरेली के मशहूर कारोबारी हाजी शकील कुरैशी हैं। हाजी शकील यूपी के नामी गिरामी कारोबारियों में गिने जाते हैं। बरेली को प्रमुख रूप से हाजी शकील ने अपनी कर्मभूमि बना रखा है। हाजी को लिखने पढ़ने से लेकर साहित्‍य जगत में बेहद रूचि है। हाजी  में समाजसेवा का भी गजब का जज्‍बा है। कोरोनाकाल में हाजी ने तमाम जरूरतंदों की मदद की, लंगर चलाए और इंसानियत की मिसाल भी पेश की। मां गंगा पर लिखा हाजी का यह गीत आजकल बेहद पसन्‍द किया जा रहा है।

न्‍यूज टुडे नेटवर्क ने बरेली में हाजी शकील से मुलाकात की और उनकी रूचि, अभिरूचि और अभिव्‍यक्‍ति के बारे में जाना। मां गंगा पर यह गीत उन्‍होंने कैसे लिखा, कैसे इसे लिखने की प्रेरणा मिली, व्‍यस्‍त कारोबार के बीच कैसे इसके लिए समय निकाला, और भी बहुत कुछ यह जानने के लिए आईए हाजी से ही सुनते हैं उनकी पूरी बात…